◼️ यूपी के गाजीपुर जनपद निवासी 6 माह के लड्डू के सिर के पीछे बने एक और सिर का किया सफल ऑपरेशन

◼️ जयपुर गोल्डन अस्पताल, पंजाबी बाग, दिल्ली में आधुनिक चिकित्सा उपकरणों से सुसज्जित ऑपरेशन थियेटर में शनिवार को किया ऑपरेशन

◼️ऑपरेशन के बाद बच्चा है स्वस्थ और माता-पिता प्रसन्नचित

कमलेश पांडेय/वरिष्ठ पत्रकार


दिल्ली/गाजियाबाद :- नजफगढ़ न्यूरो केयर सेंटर के प्रख्यात न्यूरो सर्जन डॉ मनीष कुमार ने शनिवार को जयपुर गोल्डन अस्पताल, पंजाबी बाग, दिल्ली में 6 महीने के लड्डू के सिर के पीछे भी बने एक सिर का सफल ऑपरेशन किया। उनकी इस सफलता से लड्डू के आगे की परेशानी टल गई, वहीं उसके माता-पिता ने भी राहत की सांस ली है। इस बारे में पत्रकारों से बातचीत करते हुए डॉ कुमार ने बताया कि पानी से भरे इस दूसरे सिर की वजह से वह न तो ठीक से सो पाता था और न ही खेल पाता था। वहीं इसमें चोट लगने और फटने का डर भी हमेशा बना रहता था, जो ऑपरेशन की सफलता से अब दूर हो चुका है। 

न्यूरोसर्जन डॉ मनीष कुमार ने बताया कि एनसीफैलोसील नामक इस दुर्लभ (रेयर) बीमारी से जूझ रहे लड्डू का जीवन खतरे में था, लेकिन दिल्ली के बड़े अस्पताल में उपलब्ध बेशकीमती चिकित्सा उपकरणों के सहारे हमने इस बच्चे की सफल सर्जरी करने की चुनौती स्वीकार की है और इसे सफल बनाने में जुट गए। पूर्व के पेशेवर अनुभवों और ईश्वर के साथ से यह कार्य पूरा हुआ। 

नजफगढ़ न्यूरो केयर सेंटर के न्यूरो सर्जन डॉक्टर मनीष कुमार ने बताया कि मेडिकली इस बीमारी को एनसीफैलोसिल कहा जाता है। जिसमें एन्सेफैल का मतलब ब्रेन होता है और सील का मतलब होता है उसका बाहर निकलना। यानी जब ब्रेन का कोई हिस्सा बाहर निकल जाए तो बच्चा इस प्रकार की बीमारी का शिकार हो जाता है। उन्होंने बताया कि यह जन्मजात और दुर्लभ (रेयर) बीमारी है तथा लगभग 10-11 हजार नवजात बच्चों में से किसी एक को यह बीमारी होती रहती है, जिसका एकमात्र इलाज सर्जरी ही है। उन्होंने कहा कि सर्जरी में इस हिस्से को सफलतापूर्वक बाहर निकाल कर सिर को बंद किया जाता है। यह सर्जरी आसान नहीं है, बल्कि एक बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। लेकिन संभव है और लोग इसका फायदा उठाते रहते हैं।

डॉक्टर मनीष का कहना है कि यह ट्यूमर नहीं है, बल्कि  ट्यूमर की तरह दिखता है। दरअसल, सिर के आकार के बने इस हिस्से में ब्रेन का एक छोटा सा हिस्सा है, जो हड्डी से बाहर आ गया है, जिसमें ज्यादातर पानी ही है। लेकिन सिर को जिस प्रकार से हड्डियों का प्रोटेक्शन प्राप्त होता है, इसमें वह नहीं है। इसलिए चोट लगने पर इसके फटने का डर था, जिससे बच्चे को और दिक्कत हो सकती थी।

न्यूरोसर्जन डॉ मनीष कुमार ने बताया कि यूपी के गाजीपुर इलाके में एक गरीब परिवार में लड्डू का जन्म हुआ। हालांकि, जन्म के साथ ही उसे यह परेशानी थी, जो धीरे-धीरे बढ़ती चली गई। कई जगहों पर उसके माता-पिता ने इलाज कराया। लेकिन कोई सर्जरी को तैयार नहीं हुआ। ऐसे में गाजियाबाद में एक डॉक्टर ने उनसे यानी डॉ मनीष कुमार से मिलने की सलाह दी, क्योंकि वह पहले भी इस तरह की सर्जरी कर चुके हैं। 

डॉक्टर कुमार ने आगे कहा कि यह बड़ी सर्जरी थी, इसलिए जयपुर गोल्डन अस्पताल में ही किया। क्योंकि वहां समस्त आधुनिक उपकरण उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि बच्चे की एमआरआई जांच में पता चला कि उसके स्पाइन में भी यह पानी जा रहा था, जिससे हाथ पैर के मूवमेंट में दिक्कत हो सकती थी। वहीं, सिर से ब्रेन का जो हिस्सा निकला हुआ था, उसी से पानी भी बाहर निकल रहा था, और ज्यादातर पानी बाहर बने हिस्से में जा रहा था और कुछ पानी स्पाइनल कोड में जा रहा था। जो चिंताजनक बात थी। लेकिन उन्हें पूरी उम्मीद थी कि पहली सर्जरी में ही यह कवर हो जाएगा। यदि पहली सर्जरी में ठीक नहीं होता है तो 6 महीने बाद दूसरी सर्जरी करेंगे। उन्होंने बताया कि शनिवार को हुई सर्जरी सफल रही। 

डॉक्टर मनीष कुमार ने कहा कि अपने देश में अक्सर लोग ऐसे बच्चों को भगवान का रूप मान लेते हैं और ऐसी बीमारी को लाइलाज समझकर इलाज नहीं कराते हैं। जबकि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इसका इलाज है और सम्बन्धित इलाज के द्वारा कोई भी बच्चा सामान्य जिंदगी जी सकता है। उन्होंने बताया कि इस बात में कोई दो राय नहीं कि इस तरह की सर्जरी काफी महंगी होती है, जिसके चलते लड्डू के माता-पिता को भी परेशानी उठानी पड़ रही है। वहीं, लड्डू के पिता भी पूरी तरह से ठीक नहीं हैं और वह दाहिने पैर से हैंडीकैप हैं, लेकिन वह अपने बच्चे को अच्छा जीवन देने के लिए यह सर्जरी कराया। उनकी इस पॉजिटिव थिंकिंग यानी सकारात्मक सोच को हमें सलाम करना चाहिए और बाकी लोगों को भी ऐसी कठिन परिस्थिति में भी यही फैसला लेना चाहिए।
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