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नई दिल्ली :- सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति से जुड़े मामले में बड़ा फैसला सुनाया है, जिसे लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है। दरअसल कोर्ट ने कहा कि  महिला मायके पक्ष को भी अपनी संपत्ति दे सकती है। कोर्ट का मानना है कि हिंदू विवाहिता के मायके पक्ष के उत्तराधिकारियों को बाहरी नहीं कहा जा सकता, वे लोग भी महिला के परिवार का हिस्सा माने जाएंगे।


महिला ने भाई के बेटों ने नाम की जमीन 
जस्टिस अशोक भूषण और आर सुभाष रेड्डी की बेंच ने जिस मामले में यह फैसले सुनाया वह गुड़गांव के बाजिदपुर तहसील के गढ़ी गांव है। यहां एक महिला ने पति की मौत के बाद अपने हिस्से की जमीन भाई के बेटों के नाम कर दी। पारिवारिक समझौते के तहत दी गई  जमीन के विरोध में महिला के देवर के बच्चों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। कोर्ट में दायर याचिका में दलील दी गई कि पारिवारिक समझौते में बाहरी लोगों को परिवार की जमीन नहीं दी जा सकती।

पीठ ने किया धारा 15(1)(d) का जिक्र
याचिका में कहा गया कि अगर महिला ने भाई के बेटों को जमीन दी है तो उसे रजिस्टर्ड कराया जाना चाहिए था क्योंकि वह लोग परिवार के सदस्य नहीं माने जाएंगे। पीठ ने  धारा 15(1)(d) का जिक्र करते हुए कहा कि  हिंदू विधवा महिला के पिता पक्ष के लोगों को अजनबी नहीं समझा सकता है और उन्हें संपत्ति सौंपी जा सकती है। 

परिवार को सीमित नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए: कोर्ट 
कोर्ट ने कहा था कि परिवार को सीमित नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि व्यापक रूप में लिया जाना चाहिए। परिवार मे सिर्फ नजदीकी रिश्तेदार या उत्तराधिकारी ही नहीं आते बल्कि वे लोग भी आते हैं जिनका थोड़ा भी मालिकाना हक बनता हो या जो थोड़ा भी हक का दावा कर सकते हों।
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