डॉ दिनेश चंद्र सिंह, विशेष सचिव, संस्कृति विभाग,                         उत्तरप्रदेश सरकार

किसी भी सभ्य समाज का तकाजा है कि वहां दोषारोपण नहीं, आत्मावलोकन किया जाता है। किसी भी आसन्न समस्या का हल मिलजुलकर किया जाता है। हमारी परंपरा भी यही रही है और कोविड 19 महामारी से उतपन्न विडम्बना भरी परिस्थितियों में आज हमारे देश की मांग भी यही है। हमारे राजनैतिक, प्रशासनिक व सामाजिक कर्णधार भी उसी अंतःचेतना से प्रेरित हैं, लेकिन कुछ विघ्नसंतोषी भी अपनी नापाक हरकतों से बाज आने वाले भी तो नहीं हैं। 

गत सप्ताह भले ही ईद एवं अक्षय तृतीया जैसा महत्वपूर्ण त्यौहार सम्पूर्ण भारत में कोविड-19 की निर्धारित गाइड लाइन के अनुसार सद्‌भावपूर्वक ढंग से मनाया गया। लेकिन विगत एक महीने से समाज में जो भय का माहौल व्याप्त है, उसका प्रतिकूल असर यह है कि प्रत्येक नागरिक चाहे वह किसी भी आयु सीमा का हो, पहली बार भयाक्रांत हुआ है। परन्तु मेरी राय में भयाक्रांत होने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि उससे अधिक निर्भीक होकर अनुशासन, संयम एवं धैर्य से सम्मुख खड़ी चुनौती का सामना करें।

दुर्भाग्यवश, हममें से बहुतेरे लोग कर रहे हैं इसके प्रतिकूल। एक दु:खद अवसर को अपनी स्वार्थ साधना का अवसर बनाने के प्रयास में मशगूल, वास्तिवकता से दूर रह कर। वहीं, सरकार एवं सरकारी क्षेत्र में लोग निष्ठापूर्वक अपने प्राणों को हथेली पर रख कर जनसेवा कर रहे हैं। ऐसे लोगों की आलोचना में जो लोग अपना समय लगाकर और इधर उधर की अफवाहों के माहौल को हवा देकर अपनी कुंठा मिटा रहे हैं, वह अनुचित है। उन्हें नहीं पता कि वे लोग इसे अपनी चेतना का विषय बनाकर, अन्दर से डरकर भी बाहर से कठोर एवं निडर होने का प्रयास कर हैं, जिसके कारण हम वास्तविकता से विमुख हो रहे हैं और सत्ता प्रतिष्ठान व सेवा भावी लोगों की अनर्गल आलोचना कर रहे हैं।

यह तो सभी को मालूम है कि भारत निर्वाचन आयोग या राज्य निर्वाचन आयोग, भारतीय संविधान द्वारा दी गई व्यवस्था के अन्तर्गत एक स्वतंत्र अस्तित्व धारण किये हुए है। वह लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा में निहित जनतांत्रिक मूल्यों, भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु, निष्पक्ष सरकारों के गठन हेतु, व्यस्क मताधिकार के आधार पर सभी भारतीय नागरिक में से मतदाताओं को अपना जनप्रतिनिधि चुनने का अधिकार देती है। वहीं, वह चुनाव की तिथियों की घोषणा सभी राजनैतिक दलों के साथ बैठक करने के पश्चात विहित रीति-नीति से करता है। भारत निर्वाचन आयोग ही सरकार के गठन हेतु चुनाव की तिथियों का निर्धारण करता है। 

जिस प्रकार विगत एक महीने से बंगाल के चुनाव के परिणाम घोषित होने के पश्चात कोविड-19 के संक्रमण फैलाने के लिए भारत की चुनी हुई सरकार की आलोचना की जा रही है, वह सच्चाई से मुंह फेरने सरीखा है। भारत के यशस्वी, सुयोग्य, राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय स्तर पर भारत को अतीत की वैभवशाली व गौरवपूर्ण परम्परा के साथ योग, अनुशासन, धैर्य, संयम, जप, तप, परिश्रम, न्याय एवं अन्याय का प्रतिवाद करने जैसे वैचारिक मुद्दों के साथ भारत की प्रतिष्ठा का डंका स्थापित करने वाले परम प्रतापी  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना कर रहे हैं। परंतु यह नहीं देखा कि निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित तिथियों की घोषणा पर 15 अप्रैल से किसी भी राजनैतिक दल अथवा संस्था द्वारा कोई लिखित प्रत्यावेदन सरकार, निर्वाचन आयोग अथवा पीआईएल के माध्यम से भारत की न्यायपालिका के समक्ष नहीं आया। इनके समक्ष कोई इसे प्रस्तुत किया हो, ऐसा मेरे संज्ञान में या जनसामान्य के संज्ञान (पब्लिक डोमेन) में नहीं है। फिर जब चुनाव घोषित है तो लोकतंत्र में अपने-अपने विचारों की सरकार स्थापित करने का प्रयत्न करना उस पार्टी के मुखिया का नैतिक उत्तरदायित्व भी है। इसी बीच इस वायरस के संक्रमण से निपटने के लिए राष्ट्रीय सरकार व प्रदेश सरकार सभी ऐसे प्रयास कर रही थी कि इससे निपटा जा सके; जैसे वैज्ञानिकों के भगीरथ प्रयास से कोविड-19 के वैक्सीन की खोज परीक्षण एवं उसका जन सामान्य में वैक्सीनेशन। परन्तु उस समय कुछ संगठन-दल वैज्ञानिकों की खोज को भी पुष्ट नहीं मान रहे थे। 
वस्तुतः, 10 अप्रैल केे पश्चचात कोविड 19 के संक्रमण से पैदा हुईं परिस्थितियां इतनी भयावह हुईं कि उन्हें संभालने में थोड़ा वक्त लगा। यह वैसे ही हुई, जैसे आंधी-तूफान, बाढ़ व भूकंप आने पर किया जाता है। जैसे भूकम्प की तीव्रता एवं उसके आने के समय की गणना/आकलन अभी पूर्णत: सटीक/सही नहीं माना जाता है। वैसे ही इस महामारी की भयावहता/आक्रामकता के साथ अतितीव्रता से इसका फैलाव हुआ है, जिसे काबू में करने के लिए सरकार काफी ततपर दिखाई दी। 

कहना न होगा कि हमने अपने जीवन में ऑक्सीजन की कमी महसूस नहीं की थी। अपितु वैज्ञानिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं के निर्देश, आदेश एवं प्रचार की अनदेखी कर निरंतर हम वनों एवं वृक्षों के अवैध/औद्योगिक विकास के लिये कटान कर रहे थे, जिसका परिणाम भूकम्प एवं भूस्खलन तथा अन्य तबाही के साथ हम देख सकते हैं। 
इस बात में कोई दो राय नहीं कि सरकार यथा श्रेष्ठ कर रही है। इसलिए उसके कार्यों एवं प्रतिबद्धतता पर भरोसा रखें। बेशक आलोचना करें, परन्तु आधारहीन आलोचना से बचें। 
कहीं ऐसा न हो कि आपकी आलोचना अन्य स्वार्थी तत्वों व मौकापरस्त लोगों को बिना प्रयास/योगदान के घर बैठे ही ऐसा अवसर प्रदान कर रहे हैं, जिससे बाद में सबको  पश्चाताप करना पड़े। लोकतंत्र का तकाजा है कि सभी राजनैतिक दल आपदा की इस घड़ी में देश, प्रदेश एवं नागरिकों का साहस बनें। क्योंकि जब देश-प्रदेश एवं यहां के नागरिक बचेंगे, तभी राजनीतिक परिदृश्य भी सही रह पाएगा। अतः बंगाल के चुनावों के आधार पर किसी एक राजनैतिक दल को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। निष्पक्ष भाव से हम सबको इस पर सोचना चाहिए।

अब करते हैं उत्तरप्रदेश सरकार की बेमिसाल ततपरता की बात। गौर कीजिए, जिस प्रकार से  प्रदेश में यशस्वी, योग्य एवं कर्मठ, जप, तप, धैर्य एवं अनुशासन में निष्ठा रखने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में प्रदेश की बड़ी जनसंख्या लगभग 25 करोड़ के लिए जिस तत्परता से अस्पतालों का निर्माण (एल-1, एल-2, एल-3), टेस्टिंग की सुविधाओं का विस्तार हुआ है, उसकी सराहना होनी चाहिए। 

मुझे याद है कि उत्तर प्रदेश की ओर से लोक सभा की निगरानी समिति की प्रथम बैठक, जो मार्च 2020 में लोकसभा में इन कार्यों हेतु नियत सभागार में हुई थी, तो उसमें मैं भी उपस्थित था। यह बैठक वरिष्ठ राजनीतिज्ञ एवं एमपी जगदम्बिका पाल की अध्यक्षता में हुई थी। उसमें दिल्ली सरकार एवं अन्य सभी राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि थे। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि उस समय के संसाधनों की तुलना में आज 1000 गुणा से अधिक वृद्धि हुई है। 

वास्तव में, प्रदेश में उस समय मात्र दो या तीन मेडिकल कॉलेज में कोविड-19 की टेस्टिंग की सुविधा थी, जिसके वनिस्पत आज हजारों गुणा से भी अधिक की सुविधा उपलब्ध है। यही स्थिति अप्रैल 2021 में ऑक्सीजन की आपूर्ति के प्रकरण में भी कही जी सकती है। वहीं, वर्तमान में उत्तरप्रदेश सरकार ने अपने परिश्रम एवं त्याग से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संरक्षण में ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सार्थक प्रयास हुए। जिसका सकारात्मक नतीजा आपके सामने है। यूपी में दवाईयों की उपलब्धता सुनिश्चित कराना, अस्पताल में बीमारों की भर्ती आदि सभी क्षेत्रों में संसाधनों में आशातीत अनुकरणीय एवं उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

लिहाजा, विघ्नसंतोषी व्यक्तियों से निवेदन है कि धैर्य रखिए, अपने वात, कफ, पित्त को सन्तुलित रखिए। किसी भी  प्रकार के लोभ, मोह, क्रोध एवं अहंकार से दूर रहिए। क्योंकि इससे वात, कफ, पित्त का सन्तुलन बिगाड़ता है, जिससे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता का ह्वास होता है और  हम विभिन्न प्रकार के रोगों की चपेट में आकर परेशानी में पड़ जाते हैं। 

आपको स्मरण करा दें कि प्रदेश में पंचायत चुनाव की तिथियों की घोषणा पर उत्तरप्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट में तिथियों को स्थगित कराने के लिये प्रयास किया था। परन्तु माननीय उच्च न्यायालय ने कोविड-19 की गाइडलाइन के पालन के साथ चुनाव कराने की अनुमति दी थी। इसमें हम सभी का दोषी है कि हमने कहां तक कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन किया अथवा नहीं किया। इसमें मैं किसी की आलोचना करना उचित नहीं समझता, आप स्वयं सब जानते हैं कि फिर क्या हुआ। 

हम सभी इस बात से भलीभांति अवगत हैं कि सरकारी तंत्र अपनी पूर्ण क्षमता एवं सामर्थ्य के साथ सेवाएं दे रहे हैं। इसलिए उनके हौसले को बढ़ाएं। उसमें कार्य कर रहे अधिकारियों-कर्मचारियों की ऊर्जा को पॉजिटिव बनाएं। वहीं, जो कुछ लोग अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं, ऐसे लोगों को  कड़ी फटकार लगाएं, या फिर वैधानिक कार्यवाही से उन्हें  सुधारना भी हमारा ही दायित्व व कर्तव्य है, जिसे मिलजुल कर ही निभाया जा सकता है। 

गोया, जो लोग आपदा के अवसर को अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये, कालाबाजारी या अवैध धन्धे में लगे हैं, उनका सामाजिक बहिष्कार भी करिए। तभी हम अच्छे समाज की परिकल्पना का सपना साकार कर सकते हैं। वहीं, यदि कोई अच्छा कार्य करता है तो हमें उसकी तारीफ करनी चाहिए। यहां, इतावली कवि की कुछ प्रेरणादायक पंक्ति से हालात को समझिए-समझाइए। वह इस प्रकार है- "आप धीरे धीरे मरने लगते हो, यदि करते नहीं यात्रा, पढ़ते नहीं कोई किताब, सुनते नहीं अपने मन की अंतर्ध्वनि, करते नहीं किसी की तारीफ।" हालांकि, आज के दौर में यात्रा से बचिए, दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी, सरकारी नियमों का पालन कीजिए। खुश रहिए, मिलजुलकर खुशी का माहौल बनाइए।

निर्विवाद रूप से, कठिन संकट की इस घड़ी में निर्भय होकर प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने के लिए हम सब साथ आएं और मिलजुल कर इस अकल्पनीय महामारी का सामना करें, क्योंकि देर सबेर यह अँधेरा भी मिट जायेगा। फिर प्रकाश की किरणों से सभी लोग खुशी एवं प्रसन्नता के वातावरण में विकास पथ पर अग्रसर होंगे। इसी उम्मीद एवं विश्वास को हम आने वाले त्यौहारों में एक साथ मिलकर प्रतिभाग कर सकें। इस वास्ते ईश्वर और सभी धर्मों के ईष्ट, इसी प्रकार वातावरण में सृजन का आशीर्वाद प्रदान करें। 

निःसन्देह, हम सबने अपने-अपने रिश्तेदारों, अपने निजी सम्बंधितों, अपनों को खोया है। उसका दुःख, पीड़ा एवं वेदना सबको है, जिससे उत्पन्न कष्ट को भूलने में समय  लगेगा। परन्तु हम इसके लिये प्रार्थना एवं दुआ ही कर सकते हैं और उनको विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर उनकी आत्मा की शान्ति के लिये प्रार्थना ही कर सकते हैं। ॐ शांति: शान्ति: शान्ति:। यह मेरे निजी विचार हैं। इसमें कुछ त्रुटि भी हो सकती है, परन्तु भारतीय लोकतंत्र में एक मतदाता होने के कारण आज मैंने आपसे यह साझा किया। जय हिन्द, जय भारत। 
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