रिपोर्ट :- अजय रावत
गाज़ियाबाद :- विश्व ब्रह्मऋषि ब्राह्मण महासभा के संस्थापक अध्यक्ष ब्रह्मऋषि विभूति बीके शर्मा हनुमान ने बताया कि नवरात्र मूलतः शक्ति उपासना का पर्व है। इसमें देवी के जिन रूपों की आराधना की जाती है वे सभी शक्ति के मूर्तिमंत स्वरूप हैं और नारी शक्ति के परिचायक हैं। इससे ही आसुरी एवं तामसी शक्तियों पर विजय प्राप्त हो सकी। भगवान श्रीराम भी रावण पर तभी विजयी हुए, जब देवी की आराधना से दिव्य शक्ति प्राप्त कर ली। शिव भी शक्ति के बिना शव तुल्य हो जाते हैं। एक तुच्छ कण के स्पंदन के लिए भी शक्ति की अपेक्षा होती है। अतः शक्ति का अर्जन देवी आराधना का मुख्य उद्देश्य है।
हमारी सनातन संस्कृति में नारी शक्ति की अधिष्ठात्री रही है। शक्ति के अभाव में जब ब्रह्मा भी अपनी सृष्टि को जीवंत नहीं कर पा रहे थे तब आदिदेव शिव अपने एक अंश से नर और दूसरे से नारी बन गए। सृष्टि के कण-कण में शक्ति संचरित करने वाला यह उनका अर्धनारीश्वर रूप था। इससे उन्होंने जगत में नर-नारी के सह-अस्तित्व को प्रतिष्ठापित किया और पुरुष को अहसास कराया कि नारी सम्मान से ही पुरुष को शिवत्व (कल्याण) की प्राप्ति हो सकती है।
अर्धनारीश्वर रूप की वंदना करते हुए महाकवि कालिदास ने रघुवंश में शिव और शक्ति को शब्द और अर्थ के समान अभिन्न कहा है। अन्योन्याश्रय संबंध से दोनों का अस्तित्व एक-दूसरे पर निर्भर है। इसीलिए हर पुरुष में नारीत्व और हर नारी में पुरुषत्व का अंश होता है। यह समाज में नर-नारी के समभाव का द्योतक है। हमारे ऋषियों ने कहा भी है कि 'जहां नारियों का सम्मान होता है, वहां सभी क्रियाएं सफल होती हैं।' नारी सशक्तीकरण का यह महनीय संदेश लिए हुए है। जिस देश में कोई भी धार्मिक या सामाजिक अनुष्ठान कन्यापूजन के बिना पूर्ण नहीं होता, वहां कन्या भ्रूण हत्या से बड़ा कोई अभिशाप नहीं। जिस दिन नारियों के प्रति अत्याचार एवं भ्रूण हत्याएं बंद हो जाएंगी उसी दिन नवरात्र पर्व की सार्थकता सिद्ध हो जाएगी। अतः नारी का सम्मान ही शक्ति की आराधना है।