रिपोर्ट :- अजय रावत
गाजियाबाद :- श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर, श्रीपंच दशनाम जूना अखाडा अंतर्राष्ट्रीय प्रवक्ताए दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज ने कहा कि निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून को है। इस बार इस पर्व पर बन रहे तीन शुभ योग के चलते पर्व का महत्व और भी बढ गया है। श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज ने कहा कि हिन्दू धर्म में ििनर्जला एकादशी व्रत का बहुत अधिक महत्व है। धार्मिक ही नहीं व्रत मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी इस पर्व का बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है। भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित निर्जला एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करने व जल कलश का दान करने वालों को पूरे साल की एकादशियों का फल मिलता है। जो भी मनुष्य इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।
महाराजश्री ने कहा कि निर्जला यानि बिना जल ग्रहण किए यह उपवास किया जाता है। इसी कारण शास्त्रों में इस व्रत को कठिन तप और साधना के समान ही महत्त्व दिया गया है। सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत कर लेने से सभी एकादशियों का फल प्राप्त हो जाता है। जहाँ अन्य एकादशी व्रत में आहार संयम का महत्त्व है, वहीं निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ ही जल का संयम भी ज़रूरी है। इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है यानि निर्जल रहकर व्रत का पालन किया जाता है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु व छाता दान करने से जहां हर प्रकार का कष्ट दूर होता है, वहीं भगवान विष्णु की कृपा हमेशा बनी रहती है। इस व्रत को देवव्रत भी माना जाता है क्योंकि अपनी रक्षा व भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए मनुष्य ही नहीं देवता, दानव, यक्ष, किन्नर, गंधर्व सभी यह व्रत रखते हैं। पाँच पाण्डवों में भीमसेन ने इस व्रत का पालन किया था और वैकुंठ को गए थे। इसी कारण इस व्रत को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
श्रीमहंत नारायण गिरी महाराज ने कहा कि इस दिन महज जल का दान करने मात्र से ही हमारे जन्म-जन्मांतर के पाप भगवान विष्णु की कृपा से खत्म हे जाते हैं। यह व्रत हमें जल का महत्व भी बताता है। जल ही जीवन है का संदेश यह व्रत देता है। ज्येष्ठ माह की भीषण गर्मी में जब हम एक दिन निर्जल रहते हैं तो हमें अपने आप ही जल का महत्व समझ में आ जाता है। हमें यह पता चल जाता है कि बिना भोजन के तो हम कई दिन तक रह सकते हैं, मगर बिना जल व बिना वायु के नहीं रह सकते हैं। अतः हमें इस व्रत पर जल संरक्षण का संकल्प लेना चाहिए। साथ ही शुद्ध वायु के लिए पौधरोपण कर उसकी देखभाल करनी चाहिए।