◼️भागवत कथा में महारास, रुक्मिणी विवाह, कंस उद्धार का प्रसंग संपन्न

◼️श्रावण मास का महत्व बताया



रिपोर्ट :- अजय रावत 

गाजियाबाद :- राकेश मार्ग स्थित गुलमोहर एन्कलेव सोसाइटी के श्री शिव बालाजी धाम मन्दिर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन प्रसिद्ध कथा प्रवक्ता पं संजीव शर्मा ने गोपी महारास, महारास में भगवान शिव का आगमन, होली उत्सव, कृष्ण के मथुरा प्रस्थान और कंस उद्धार, देवी रुक्मणी विवाह के प्रसंग सुनाये। इसके साथ ही भगवान श्री कृष्ण और माता रुक्मिणी के विवाह की झांकी भी इस अवसर पर निकाली गई। कथा प्रवक्ता ने श्रावण मास का महत्व भी भक्तों को बताया।
    
पंडित संजीव शर्मा ने बताया कि सभी गोपियों की मनोकामना पूरी करने के लिए श्रीकृष्ण ने महारास की लीला की थी। महारास में गोपी रूप धारण कर भगवान शिव पहुंचे और उन्होंने भगवान श्री कृष्ण के उस अद्भुत स्वरूप के दर्शन किए। वहां पुरुष स्वरूप केवल भगवान श्रीकृष्ण थे, बाकी सब गोपियां। इस दर्शन को भगवान शिव कर ही रहे थे कि तभी भगवान कृष्ण की नजर उन पर पड़ी। श्रीकृष्ण भोलेनाथ की तरफ देखकर मुस्कुराए और उन्होंने तभी भगवान शिव को  गोपेश्वर की उपाधि दी। भगवान शिव को जब श्रीकृष्ण ने गोपेश्वर कहा, तब गोपियों ने भगवान से इस नाम को रखने का कारण पूछा जिस पर श्रीकृष्ण ने कहा कि जो गोपियों में श्रेष्ठ हो वही गोपेश्वर है।
   
इस अवसर पर सभी भक्तों ने मिलकर श्रीकृष्ण के साथ फूलों की होली भी खेली। बृज की होली गीतों पर भक्त जमकर थिरके और राधा-कृष्ण की जीवंत झांकी पर फूलों की वर्षा की। इसके बाद पं संजीव शर्मा ने श्रीकृष्ण के मथुरा प्रस्थान और कंस उद्धार का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि कंस के बढ़ते अत्याचारों को देखकर श्रीकृष्ण बलदाऊ को साथ लेकर वृंदावन से मथुरा पहुंचे। इसके बाद उन्होंने मथुरा जाकर कंस का वध किया और प्रजा को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। इसके बाद, सभी लोगों के अनुरोध पर वह मथुरा के सिंहासन पर बैठे। लेकिन कंस के मित्र जरासंध ने बदला लेने के लिए बार बार मथुरा पर आक्रमण किया। अपनी प्रजा को हानि होते देख श्रीकृष्ण सब कुछ अपने नाना को सौंपकर द्वारिका चले गए और द्वारिकाधीश कहलाये। इसके बाद पं संजीव शर्मा ने उद्धव प्रंसग सुनाते हुए कहा कि उद्धव को अपने ज्ञान का बहुत अभिमान था, क्योंकि वह गुरु बृहस्पति के शिष्य थे। 

भगवान ने उनको प्रेम का पाठ पढ़ाने के लिए वृंदावन गोपियों के समक्ष भेजा था। उद्धव को गोपियों का ऐसा रंग लगा कि उद्धव भी गोपियों के समक्ष अपने आप को समर्पित कर दिया। कथा में रुक्मिणी विवाह का प्रसंग सुनाया और धूमधाम से रुक्मिणी विवाह की झांकी भी प्रस्तुत की गई। कथा के अंत में सभी भक्तों ने मिलकर भगवान की आरती की और उसके बाद सभी को प्रसाद वितरण किया गया।
Previous Post Next Post