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गाज़ियाबाद :- विधि विशेषज्ञ गजेंद्र सिंह का कहना है कि अनुसूचित जातियों (एससी) में उप-वर्गीकरण को संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 341 में राज्यों द्वारा हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिसमें अनुसूचित जातियों का विवरण है।सन 2004 में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा दिए गए फैसले और 2020 में तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ द्वारा मामले को सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंपे जाना भी कानूनी प्रक्रिया के निर्धारित मानदंडों के विरुद्ध है, क्योंकि अनुसूचित जातियों की अलग सूची तैयार करने का मूल आधार हिंदू समाज में व्याप्त अस्पृश्यता है।
उन्होंने कहा कि इसीलिए अनुसूचित जातियों को विभाजित नहीं किया जा सकता इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति वेला त्रिवेदी की फाइल भी देखी जा सकती है। न्यायमूर्ति त्रिवेदी के अनुसार अनुच्छेद 341 भी अनुसूचित जाति में क्रीमी लेयर द्वारा अलग वर्गीकरण की अनुमति नहीं देता है, जिसमें पूरी जाति को अनुसूचित जाति के रूप में दर्ज किया जाता है। उनके अनुसार अनुसूचित जाति एक समरूप समूह को दर्शाती है और इसे विभाजित नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार समाज में समानता लाने के लिए सकारात्मक उपाय किए जा सकते हैं, लेकिन ये कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ नहीं होने चाहिए।