रिपोर्ट :- नासिर खान
लखनऊः
समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शुक्रवार को कहा कि किसानों के मसीहा चौधरी चरण की आशा के विपरीत सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से गांव और किसानो की भला करने की उम्मीद बेमानी है। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की 33वीं पुण्यतिथि के अवसर पर उनको पुष्पांजलि अर्पित करते हुए यादव ने कहा कि भाजपा नेतृत्व का भी गांवों से दूर-दूर तक कोई सम्बंध नहीं रहा। तभी तो कारपोरेट व्यवस्था को तरजीह देकर कोपरेटिव फार्मिंग की चर्चा शुरू की जा रही है।
इसका दूरगामी दुष्परिणाम होगा कि किसानों के खेत भी कारपोरेट के जाल में फंस जायेंगे तथा किसान के खेत की जमीन का स्वामित्व खतरे में पड़ सकती है। भाजपा की योजना है कि कृषि कारपोरेट संस्थाओं के हवाले हो जाये। अब भाजपा की कुद्दष्टि किसानों की खेती पर है। उन्होने कहा कि किसानो के मसीहा ने गांवों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कृषि को ताकत देने की नीतियों को लागू किया। चौधरी साहब ने सहकारी खेती का विरोध नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के प्रस्ताव पर बोलते हुए कहा था कि भारत के गांव और किसानों तथा छोटी जोत की कृषि के लिए सहकारी खेती की योजना अव्यवहारिक है।
यादव ने कहा कि चरण सिंह ने केन्द्र में वित्तमंत्री के समय जो बजट लोकसभा में पेश किया था उसमें कृषि क्षेत्र, गांवों और किसानों की समृद्धि के लिए 70 प्रतिशत की व्यवस्था की थी। उसी आधार पर समाजवादी सरकार में चार वर्ष पूर्व जो बजट उत्तर प्रदेश विधानसभा में प्रस्तुत किया गया उसमें खेती, किसान और गांवों के विकास के लिए बजट में 75 प्रतिशत हिस्सा रखा गया था लेकिन भाजपा से यह आशा करना अर्थहीन है कि उनकी सरकार किसानों के हित के लिए कभी भी संवेदनशील होगी। उन्होंने कहा कि 2022 तक किसानों की आय दुगुनी कैसे होगी, इस पर सरकार चर्चा करने के लिए भाजपा सरकार तैयार नहीं है, और तो और भाजपा की यह घोषणा कि फसल के उत्पादन लागत का डेढ गुना किसानों को दिया जायेगा का अमल आज तक नहीं हुआ। न्यूनतम समर्थन मूल्य तो कभी लागू ही नहीं हुआ।
यादव ने कहा कि समाजवादी पार्टी की सरकार में मण्डियों की योजना पर काम शुरू किया था लेकिन भाजपा सरकार की किसान विरोधी नीतियों के कारण उसे ठप्प कर दिया है, जबकि सरकार को किसान की उपज को क्रय करने की व्यवस्था करनी चाहिए। जिससे किसान की फसल की लूट बंद होगी तथा किसानों के साथ न्यायिक व्यवस्था विकसित होगी। किसान गांव और कृषि जब तक आत्मनिर्भर नहीं होंगे, तब तक आत्मनिर्भर भारत की बात करना दिवास्वप्न ही है।