रिपोर्ट :- अजय रावत


गाजियाबाद :-
         फिक्की एराइज नार्थ के चेयरमैन व खेतान पब्लिक स्कूल के मैनेजिंग ट्रस्टी वेदांत खेतान ने कहा कि कोविड-19 के चलते 161 देशों के 1.6 अरब बच्चे 28 मार्च, 2020 से स्कूल नहीं गए हैं। मानवता के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है। यह दुनिया में नामांकित विद्यार्थियों की कुल संख्या का लगभग 80 प्रतिशत है। भारत में भी विद्यार्थियों व शिक्षकों के जीवन की सुरक्षा और महामारी फैलने से रोकने के लिए स्कूलों को बंद करना पडा। स्कूलों के बंद होने के बाद आॅनलाइन शिक्षा का नया विकल्प खुला और स्कूलों ने बच्चों की पढाई के नुकसान को रोकने के लिए आॅनलाइन शिक्षा शुरू की, जिसके अच्छे परिणाम सामने आए हैं। शिक्षण कार्य निरंतर और बिना रुकावट चले, इसके लिए शिक्षक अव फैकल्टी मेम्बर पहले से अधिक समय दे रहे हैं। वेतन भुगतान की अनिश्चितता के सामने लगातार लंबे समय तक काम करने की यह बहुत बडी चुनौती है, जिसका सामना शिक्षक बखूबी कर रहे हैं। वेदांत खेतान ने बताया कि भारत में गैर सहायता प्राप्त स्कूलों की संख्या 3.03 लाख से अधिक है। इनमें लगभग तीन करोड शिक्षकों व गैर शिक्षक कर्मचारियों को रोजगार मिला हुआ है। इनमें यदि सहायक कर्मचारियों व स्टेशनरी आदि कामों से जुडे लोगों को भी जोड लिया जाए तो यह संख्या 12 करोड से अधिक हो जाती है। यानि देश के 12 करोड से अधिक लोगों की जीविका स्कूलों पर निर्भर है। कोरोना संकट के कठिन दौर में स्कूलों को इन 12 करोड लोगों की आजीविका की रक्षा करने के साथ अपने बुनियादी ढांचे को भी मजबूत करना है। लोगों को यह बड़ी गलतफहमी है कि सभी स्कूलों के पास धन का भंडार है, जो उन्हें काम जारी रखने में मदद करेगा। सच तो यह है कि अधिकांश व गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूल पिछले दो दशकों में ही बने है पिछले पंद्रह वर्षो में गैर-सहायता प्राप्त नजी स्कूलों में 73 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ऐसे स्कूलों लंबी अवधि के ऋण चुकाने हैं। इस स्थिति में यदि फीस लेने का चक्र टूट गया तो स्कूलों के लिए ऋण चुकाना मुश्किल हो जाएगा। इसका असर स्कूल पर तो पडेगा ही साथ ही करोडों लोगों की आजीविका भी प्रभावित होगी। ऐसी स्थिति ना आए इसके लिए अभिभावकों को आगे आना चाहिए और उन्हें फीस जमा करनी चाहिए। यदि किसी अभिभावक को फीस देने में कोई दिक्कत है तो वह बेहिचक अपने स्कूल से सम्पर्क कर सकता है। स्कूल उसकी मदद अवश्य करेगे।
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