सिटी न्यूज़ हिंदी


गाजियाबाद :-
         गुरु की महिमा हम आदिकाल से पढ़ते व सुनते आए हैं। देवर्षि नारदजी के सानिध्य में भक्त प्रहलाद को दीक्षा और वह विष्णु भक्त हो गया। अनेक विषम परिस्थितियों में भी उसने हार नहीं मानी जिसके फलस्वरूप अंत में उसकी रक्षा के लिए स्वयं भगवान को नरसिंह के रूप में धरती पर आना पड़ा। प्रहलाद बाद में महान संत सम्राट बना। गुरु रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानंद जी और गुरु रामानंद जी के शिष्य संत कबीरदास को सारी दुनिया जानती है।
वर्तमान समय में गुरु शिष्य परम्परा केवल साहित्य, संगीत और कला जगत में ही सम्मानजनक रह गई है। जीवन में गुरु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। शिष्य को सदैव गुरु के प्रति श्रद्धा व आस्था रखनी चाहिए, ज्ञान प्राप्ति का मूल मंत्र यही है। शिष्य केवल अपने गुरु के गुणों पर ही ध्यान दे, गुरु के प्रति शंका करना भी अपराध की श्रेणी में आता है। गुरु की अनुपस्थिति में भी उनका नाम आदरपूर्वक लेना चाहिए। गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान का कभी अहंकार न करें, अन्यथा कभी भी श्रेष्ठों की सभा में अपमानित होना पड़ सकता है, क्योंकि अहंकार ज्ञान का शत्रु है।
गुरु के लिए भी शास्त्रों में बहुत से दिशा निर्देश दिए गए हैं। गुरु भी अपने शिष्यों के प्रति सदा समर्पित भाव रखते हुए उन्हें पुत्रवत स्नेह प्रदान करें। भगवान शिव ने भी माता पार्वती को गुरु की महिमा बताई है। उत्तम गुरु का मार्गदर्शन पाकर शिष्य का जीवन सफल हो जाता है। इसलिए कहा गया है
गुरूबरहमा गुरुविष्णु गुरुदेव महेश्वरा।
गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
मेरे प्रथम गुरू मेरे बड़े भाईसाहब पंडित सोमदत्त शर्मा जी रहे, जिनके पावन सानिध्य पाकर मै आगे बढ़ा और उन्हीं के आशीर्वाद के फलस्वरूप किराना घराने के सुप्रसिद्ध कलाकार पंडित जगदीश मोहन जी का सानिध्य प्राप्त किया और उनका स्नेह व आशीष मुझे मिला। ये दोनों ही महापुरुष मेरे जीवन में एक विशेष स्थान रखते हैं। गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर मैं अपने दोनो गुरुओं के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम करता हूं। आप दोनों की कृपा सदा मुझ पर बनी रहे और मैं आजीवन संगीत और कला जगत की सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त करता रहूं।

पंडित हरिदत्त शर्मा
निदेशक वी एन भातखंडे संगीत महाविद्यालय गाजियाबाद
9818320220
Previous Post Next Post