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गाजियाबाद:-
               परम श्रद्धेय पंडित हरिदत्त शर्मा जी, जिन्हें लगभग पूरा शहर गुरुजी के नाम से जानता है। मेरा परम सौभाग्य है कि मैं भी उन्हीं आदरणीय गुरुजी के शिष्यों में से एक हूं। यूं तो गुरुजी और मेरा ससुर व पुत्रवधू का संबंध है, किन्तु जब भी चरण स्पर्श के लिए मैं उनके आगे नतमस्तक हुई, अपने सर पर सदा ही मैंने पिता के जैसा हाथ अनुभव किया। ईश्वर ने मेरे माता पिता को मुझसे बहुत जल्दी छीन लिया, किन्तु पूज्य गुरुजी ने मुझे कभी उनकी कमी अनुभव नहीं होने दी। आदरणीय गुरूमां श्रीमती नीलम शर्मा जी (जो कि मेरी सासू मां भी हैं) से भी मुझे सदा मातृवत स्नेह और आशीर्वाद ही मिला।
पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से मुझे उनका सानिध्य प्राप्त है, और इतने समय से मैंने सदा उन्हें सबकी सहायता करने के लिए तत्पर पाया है। अपने हर शिष्य को वह पूरी मेहनत और लगन से संगीत सिखाते हैं। अच्छा प्रदर्शन करने पर उन्हें पुरस्कार देते हैं तो गलती करने पर बड़े प्यार से उसका सुधार भी करवा देते हैं। सच ही लिखा है-
गुरु कुम्हार सिश कुंभ है, गढ़ गढ़ काढ़े खोट।
अंतर हाथ सहार दे, बाहर बाहे चोट।।
आज  यदि आप गुरु शिष्य परंपरा देखना चाहते हैं तो वी एन भातखंडे संगीत महाविद्यालय गाजियाबाद में अा जाएं, गुरुजी के सब शिष्य भी उनके प्रति पूर्णतया समर्पित रहते हैं। उनका आदेश हो,बस फिर न दिन देखेंगे न रात, गुरु आज्ञा का पालन उनके लिए सर्वोपरि होता है। गुरुजी भी बच्चों की प्रगति हेतु हर संभव प्रयास करते हैं कि कैसे उनका भला हो। न जाने कितने छात्रों को उन्होंने निशुल्क संगीत की शिक्षा दी, न जाने कितने छात्रों को नौकरी पर लगवाया। ऐसा गुरु शिष्य संबंध वर्तमान समय में कहां देखने को मिलता है।  पूज्य गुरुजी के बारे जितना लिखा जाए कम है। उनका बखान करने के  लिए मेरे शब्दकोश में शब्दों की हमेशा कमी पड़ जाती है। गुरुजी फलों से लदे हुए उस वृक्ष की भांति हैं जो धूप, वर्षा, शीत, घाम आदि सहकर भी सदा मीठे फल देता है। वह चंदन के उस पेड़ के समान हैं, जिस पर कितने ही विषैले सर्प लिपट जाएं तो चंदन तो चंदन ही रहेगा, किन्तु वे सर्प भी अपना स्वभाव बदलकर उनके ज्ञान की सुगंध को चारों दिशओं में फैलाना आरंभ कर देते हैं । ईश्वर को मैंने नहीं देखा किन्तु आदरणीय गुरुदेव अपने नाम को सार्थक करते श्रीहरि का ही जीवंत व शाश्वत स्वरूप हैं।

आज गुरु पूर्णिमा (जिसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना है) के पावन पर्व पर मैं पूज्य गुरुदेव को कोटि कोटि प्रणाम करती हूं और प्रभु से उनके स्वस्थ व दीर्घायु होने की कामना करती हूं ताकि आजीवन मुझे उनका पावन सानिध्य प्राप्त होता रहे। अंत में ये पंक्तियां उनके श्री चरणों में समर्पित करती हूं- 
जब जब जन्म लिया शंका ने,
तब तब ही समाधान मिला है।
सुर लय ताल के साथ में मुझको,
जीवन का हर ज्ञान मिला है।।
कोई कहे कि गुरुवर मिले हैं,
तो कोई कहे विद्वान मिला है,
मैं तो कहूंगी कि इक भोली भाली सी,
सूरत में भगवान मिला है।। 

सभी को गुरु पूनम की अनंत शुभकामनाएं।
जय गुरुदेव।
ज्योति शर्मा (संगीत शिक्षिका)
9810138971
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