आवेदन/निवेदन: सम्राट चौधरी

बिहार की पौराणिक गाथाओं और ऐतिहासिक धरोहरों को समृद्ध करने में बौद्ध धर्म का भी अहम स्थान है। इस धर्म के प्रवर्तक भगवान बुद्ध का बिहार-उत्तरप्रदेश-नेपाल से गहरा नाता है, जिसके चलते देश-विदेश के बौद्ध धर्मावलंबी यहां आना व ध्यान करना अपना परम सौभाग्य समझते हैं। चूंकि भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति बोधगया, बिहार में ही हुई थी, इसलिए यह नगर अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल बन चुका है। यह बात दीगर है कि तमाम कोशिशों के बावजूद यहां पर व भगवान बुद्ध से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण स्थलों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की पर्यटक सुविधाएं नदारत हैं, जिसके चलते बिहार अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को उतना ज्यादा आकर्षित नहीं कर पाता है, जितनी कि अपार संभावनाएं उसके अंदर मौजूद हैं। इसलिए इन महत्वपूर्ण पर्यटक स्थलों में समग्र विकास के दृष्टिगत एक नई जान फूंकने की जरूरी है।

मसलन, बिहार के समग्र पर्यटकीय विकास की कड़ी में बौद्ध हब का निर्माण करना, बौद्ध परिपथ को विकसित करना, बौद्ध धर्मावलंबियों के दृष्टिगत आवागमन व आवासीय सहूलियत विकसित करना और बुद्धिष्ठों यानी बौद्ध धर्मावलंबियों की जेहन में मौजूद रहने वाली व्यवस्थागत कमियों को दूर करना केंद्र व राज्य सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल होना चाहिए। इसी गरज से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी मैंने एक पत्र लिखकर एक सार्थक कोशिश शुरू की है, जिसके परवान चढ़ने का इंतजार है, क्योंकि मोदी हैं तो मुमकिन है, यह हम सबकी मान्यता है। 

बौद्ध पर्यटन स्थलों को विकसित करने के सपनों, उससे जुड़ी साझा अंतर्जनपदीय, अंतरराज्यीय व अंतरराष्ट्रीय योजनाओं को यदि देश-देशांतर के बुद्धिष्ठों यानी बौद्ध धर्मावलंबियों से साझा किया जाए, बौद्ध भवन निर्माण, बौद्ध परिपथ विकास व अन्य योजनाओं पर कार्यान्वयन मुश्किल नहीं होगा। खासकर आर्थिक बाधा तो बिल्कुल नहीं आएगी, यदि प्रोफेशनल नजरिया अपनाया जाए तो। 

इस बात में कोई दो राय नहीं कि बिहार में अनेक धर्मावलंबी हैं, जिनमें से बौद्ध धर्म भी एक है। उनसे जुड़े महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी हैं, जिनका समग्र विकास बदलते वक्त की जरूरत है, ताकि विदेशी निवेश भी आकर्षित हो और स्वदेशी रोजगार भी बढ़े। क्योंकि बिहार से उपजा बौद्ध धर्म आज एक ऐसा धर्म बन चुका है जिसके अनुयाई भारत ही नहीं बल्कि विभिन्न दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में भी हैं। गौर करने वाली बात है कि बिहार में जिस तादाद में बौद्ध धर्मावलंबी आते हैं, उसके मुताबिक हम उन्हें माकूल सुविधाएं प्रदान नहीं कर पाते हैं। 

ऐसी स्थिति में मेरे मन में एक विचार आया है, जिसे मैं अमलीजामा पहनाना चाहता हूं। हालांकि इसमें कई विभागों यथा वित्त विभाग, नगर विकास विभाग, पथ निर्माण विभाग व भवन निर्माण विभाग के समन्वय और कृषि कैबिनेट की तर्ज पर बौद्ध हब बनाने की आवश्यकता  है जिससे बौद्ध हब की स्थापना हो, ताकि बिहार को पौराणिक प्रतिष्ठा प्राप्त हो सके। कहना न होगा कि जिस प्रकार चीनी यात्री फाहियान, भगवान बुद्ध के विनय सिद्धांत की खोज में भारत आए थे, उसी प्रकार बौद्ध हब देखने के लिए सैलानी बिहार आएंगे और बिहार की आय में भारी वृद्धि होगी।

अमूमन, बौद्ध धर्मावलंबी अपने देश से ज्यादा विदेशों यथा जापान, चीन, तिब्बत, भूटान, श्रीलंका आदि में अधिक हैं। वहां से लाखों की संख्या में पर्यटक बोधगया और अन्य बौद्ध स्थल पर ध्यान व दर्शनार्थ आते हैं। लेकिन बुद्धिष्ठों को एक धर्म स्थल से दूसरे धर्म स्थल तक सड़क मार्ग द्वारा यात्रा करने में काफी परेशानी होती है। देखा जाता है कि संकीर्ण सड़क के कारण ससमय गंतव्य तक नहीं पहुंच पाते हैं, जिससे कभी उनका आरती का समय रास्ते में गुजर जाता है तो कभी गुरुवाणी का श्रवण नहीं कर पाते हैं, जिससे उनकी धार्मिक भावना आहत होती है। इसलिए मेरा सुझाव है कि विदेशों में निर्मित सड़क की तरह ही बोधगया से वैशाली भाया पटना, बोधगया से विक्रमशिला भाया राजगीर, विक्रमशिला से वैशाली एवं वाराणसी से सारनाथ बिहार सीमा तक 10 लेन वाली सपाट पक्की सड़क का निर्माण करना बिहार के लिए गौरव की बात होगी। जो लोग सुंदर और विकसित बिहार बनाने की परिकल्पना मन में संजोए हुए हैं, उसके लिए भी यह सड़क मील का पत्थर साबित होगा।

आमतौर पर भगवान बुद्ध के अनुयायियों के सम्मान में प्रत्येक वर्ष बौद्ध महोत्सव का आयोजन किया जाता है, लेकिन बौद्ध भिक्षु और भक्त जनों को ध्यान के लिए बड़ा भवन ही उपलब्ध नहीं है, जिस कारण भक्तजन जहां-तहां बैठकर ध्यान करते हैं। इससे बिहार की ख्याति पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। इतिहास गवाह है कि बिहार ज्ञान का केंद्र रहा है। इसलिए मैं चाहूंगा कि तकरीबन एक लाख क्षमता वाला भूकंपरोधी सुसज्जित मेडिटेशन भवन का निर्माण कराया जाए, ताकि बड़ी तादाद में बौद्ध धर्मानुरागी अपने आराध्य की आराधना शांत-चित्त और एकाग्र होकर कर सकें। इससे धार्मिक अनुराग में अप्रत्याशित वृद्धि होगी।

यूं तो देश-विदेश से सालोंभर बौद्ध तीर्थयात्री आते रहते हैं और वे प्राइवेट होटलों में ठहरते हैं। लेकिन होटल मालिक एक तो उन धर्मानुरागी लोगों से मनमाना पैसा वसूला करते हैं, और दूसरे उन्हें आवश्यकतानुसार सुविधाएं भी नहीं मिल पाती हैं। चूंकि विदेशों से आने वाले बुद्धिष्ट अधिकाधिक सुविधा के अभिलाषी होते हैं, इसलिए उनकी जरूरतों को ध्यान में रखकर कुछ खास किये जाने की जरूरत है। खासकर जब बौद्ध महोत्सव का समय आता है तो होटल का इतना किल्लत हो जाता और दर इतना अधिक बढ़ जाता है कि सरकार को अलग से कुछ तत्कालीन व्यवस्था करनी पड़ती है। फिर भी सुविधा संपन्न पर्यटक संतुष्ट नहीं हो पाते हैं, जिससे उनलोगों के मन में सरकारी व्यवस्था पर हीन भावना पैदा होती है। इसलिए मेरी उत्कृष्ट अभिलाषा है कि विदेशों में स्थित फाइव स्टार होटल के माफिक 5-6 होटल का निर्माण हो, जो पर्यटकों के लायक मनभावन हो।

जब विदेशी पर्यटक धर्मपरायणता से आसक्त हो बौद्ध स्थल खासकर गया एवं बोधगया आते हैं तो अव्यवस्थित रूप से बसे बसावटों को देखकर निश्चित रूप से उनके मन में कुछ हीन भावना जागृत होती होगी। क्योंकि विदेशों में नक्शे के आधार पर बसावट के कारण मकान, नाला, कचरा प्रबंधन सुव्यवस्थित है। इसलिए मेरा मानना है कि गया हवाई अड्डा से बोधगया तक सभी चीजें व्यवस्थित करने का मास्टर प्लान बनाकर ग्रेटर गया का निर्माण कराया जाए और उसका नामकरण गौतमबुद्धनगर के रूप में किया जाए ताकि गौतमबुद्धनगर में प्रविष्ट होते ही भगवान बुद्ध से जुड़े बौद्ध धर्मावलंबियों के मन में एक सुखद अनुभूति का एहसास उतपन्न हो सके।

कहने को तो गया में हवाई अड्डा का निर्माण हुआ है, लेकिन निर्माण बौद्ध धर्मावलंबियों के आने-जाने को ध्यान में रखकर नहीं किया गया है। जब तक एयरपोर्ट की कनेक्टिविटी बड़े शहरों यथा दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई (मद्रास), वाराणसी, रांची, पटना, गुवाहाटी, लखनऊ से नहीं होगा, तब तक दिग-दिगान्तर से आने वाले सैलानियों को  मनमाफिक आवागमन की सुविधा नहीं मिलेगी। वहीं, इतनी बड़ी परिकल्पना में चिकित्सा सुविधा भी अपना अलग अहमियत रखती है। इसलिए गौतमबुद्ध नगर में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का अस्पताल होना भी आवश्यक है।

वहीं, बौद्ध हब के निर्माण का डीपीआर बनाने के साथ साथ इतने बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए राशि की व्यवस्था, विश्व बैंक से हो या जापान सरकार से या चीन सरकार से या अन्य बौद्ध देशों से अथवा पीपीपी मोड पर हो। इसके लिए आईआईटी दिल्ली से मंतव्य एवं सहयोग अपेक्षित होगा, क्योंकि बगैर स्किल्ड हैंड के सभी चीजों का व्यवस्थित होना संभव नहीं है। साथ ही साथ, एक पदाधिकारी की स्थाई पदस्थापना दिल्ली में किया जाए, जो राशि की व्यवस्था हेतु देश एवं विदेश के लोगों से लाइजनिंग कर सकें।

उल्लेखनीय है कि नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री बिहार ने पटना जंक्शन के समीप बुद्ध स्मृति पार्क और करुणा स्तूप का निर्माण कराया, जो अद्वितीय है। उसका उद्घाटन शांति के नोबेल पुरस्कार विजेता और बौद्धों के धर्मगुरु दलाई लामा से 27 मई 2010 को कराया गया था। इतना ही नहीं, बोधगया से राजगीर और बोधगया से पटना तक फोर लेन सड़क की स्वीकृति भी नीतीश कुमार के भागीरथ प्रयास से हुआ है।

यहां पर यह याद दिलाना जरूरी है कि छठी शताब्दी में पाल वंश के शासक धर्मपाल ने जिन तीन विश्वविद्यालयों की स्थापना की थी, उसमें नालंदा भी एक था। लेकिन खिलजी वंश के शासक बख्तियार खिलजी ने 1197-98 में जाते समय इसे ध्वस्त कर दिया था, जिसकी सुध मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सिवाय किसी ने भी नहीं ली। श्री कुमार ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में विश्वविद्यालय के भग्नावशेषों की खुदाई और उसकी ख्याति को पुनः स्थापित करने की भीष्म प्रतिज्ञा लेते हुए लब्धप्रतिष्ठित विद्वान प्रोफेसर अमर्त्य सेन  की अगुवाई में यूनिवर्सिटी ऑफ नालंदा का निर्माण कराने की प्रबुद्ध पहल की, जो अब अंतरराष्ट्रीय स्तर का अध्ययन केंद्र समझा जाता है। वहीं, प्राचीन विश्वविद्यालय नालंदा की तरह ही विक्रमशिला विश्वविद्यालय को भी बख्तियार खिलजी द्वारा ध्वस्त किया गया था। विक्रमशिला विश्वविद्यालय तंत्र विद्या का केंद्र (गुरुद्वारा) था और गुरु बृहस्पति यहां अध्यापन का कार्य कराते थे। इसलिए विक्रमशिला विश्वविद्यालय को भी पुनः स्थापित किया जाना चाहिए।

इस प्रकार बिहार की पौराणिक गाथाओं और ऐतिहासिक धरोहरों में नई जान फूंकने हेतु उपर्युक्त सभी बिंदुओं पर सम्यक विचार कर संबंधित विभागों और भारत सरकार से समन्वय स्थापित कर कृषि कैबिनेट की तर्ज पर बुद्धिस्ट हब कैबिनेट बनाने की दरकार है, जिसका डीपीआर आईआईटी दिल्ली से तैयार कराने की कोशिश एक सार्थक पहल होगी। इससे सुंदर बिहार बनाने की परिकल्पना भी साकार होगी।

(लेखक बिहार विधान परिषद के सदस्य व पूर्व मंत्री हैं।)
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