रिपोर्ट :- सोबरन सिंह


गाजियाबाद :- हाल ही में संपन्न हुए यूपी के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव जिन्हें हर सियासी दल 2022 विधानसभा का सेमीफाइनल चुनाव मानकर मैदान-ए-जंग में किस्मत आजमाने उतरा था। सत्तासीन भाजपा को पूरा भरोसा था कि पंचायत चुनाव में पार्टी अच्छा प्रदर्शन करेगी। लेकिन पंचायत चुनावों में जनता ने भाजपा को जोर का झटका धीरे से दिया। मनमाफिक नतीजे ना आने से भाजपा प्रदेश नेतृत्व का भी दम निकल गया। यह बात दीगर है कि पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख की कुर्सी पर भाजपा साम दाम दंड भेद से अपने उम्मीदवारों को जिताने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। लेकिन इससे उसकी साख बनने के बजाय और बिगड़ सकती है। क्योंकि जनता सब जानती है कि कुर्सी हथियाने के लिए भाजपा ने खरीद फर्रुख की और यही भाजपा के लिए उल्टी गिनती होगी।

पंचायत चुनाव में सपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, हालांकि निर्दलीयों ने सभी दलों को पछाड़ दिया। यूपी में मृतसैया पर पड़ी बसपा को भी पंचायत चुनाव में संजीवनी मिली है, जो 2022 के लिए शुभ संकेत है। जनपद गाजियाबाद सहित पश्चिमी यूपी में भाजपा जिस तरह औंधे मुंह गिरी और रालोद, बसपा, सपा को बढ़त मिली उसने भाजपा के माथे पर चिंता की लकीरें ला दी है। कोरोना महामारी के चलते पंचायत अध्यक्ष व ब्लाक प्रमुख के चुनाव में अभी वक्त है। लेकिन दावेदार अभी से गोटे बिछाने में जुट गए हैं। साफ शब्दों में एक कहना गलत ना होगा कि दावेदार वोटों की खरीद-फरोख्त में जुट गए हैं। वोटरों की बोली अंदरखाने शुरू हो गई है। भाजपा भले ही दावा करे कि लोनी, रजापुर, मुरादनगर, भोजपुर ब्लॉक प्रमुख की कुर्सी उसके खाते में जाएगी। दो पंचायत सदस्य होने के बाद भी भाजपा पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पाने का सपना देख रही है। भाजपा हर सूरत में सदस्यों को खरीदना चाहती है। लेकिन वोट खरीदकर भाजपा भले ही ब्लॉक प्रमुख, अध्यक्ष पद पर कब्जा कर ले लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को झटका लगना तय है। 

पश्चिमी यूपी में ही नहीं पूर्वांचल में भी भाजपा की स्थिति डामाडोल मानी जा रही है। बीते साल से शुरू हुए कोरोना महामारी में हुए लॉक डाउन ने हर तबके की कमर तोड़ दी , ऊपर से डीजल पेट्रोल की आसमान छूती कीमतों ने लोगों को जमीन पर ला दिया। तीन कृषि कानून के खिलाफ धरने पर बैठे अन्नदाताओं के साथ सरकार के उदासीन रवैया ने भाजपा की कथनी करनी को सबके सामने ला दिया। रही सही कसर कोरोना महामारी में अस्पतालों की मनमानी व सरकार की संवेदनहीनता ने पूरी कर दी। जनता को शिक्षा चिकित्सा देने का वादा कर सत्ता सुख भोगने वाली भाजपा ने जनता को मरने पर छोड़ दिया। 15 दिनों में जिले में जो हाहाकार मचा उसने भाजपा को नंगा करके रख दिया। ऑक्सीजन व बेड न मिलने के कारण अपनों की गोद में दम तोड़ते लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं रहा। जनप्रतिनिधियों ने पूरी तरह जनता से मुंह मोड़ लिया। यही नाराजगी भाजपा के गले की फांस बन सकती है।

कीचड़ में खिलने वाला कमल इस बार बुरी तरह दलदल में फंसता नजर आ रहा है। सबसे बुरा हाल लोनी का है यहां विधायक व उनके विरोधी खेमे में जिस तरह कलह कुलांचे भर रहा है बह भाजपा को ले डूबेगा। विधायक ने 2020 में बयान दिया था कि लोनी में कोरोना संक्रमण नहीं है और ना इस बार है। जो मरीज हैं वह बाहर के हैं। लेकिन कोरोना व किसी और बीमारी से जूझने वाला जावली गांव जिस तरह जल रहा उसने विधायक के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है ।अंदरखाने लोनी की जनता मौजूदा विधायक के खिलाफ ताना-बाना बुन रही है। इसके अलावा पार्टी संगठन में भी सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। नगरपालिका चेयर पर्सन और विधायक की गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है ऐसे में 2022 भाजपा के लिए मुसीबत बन कर आने वाला है। इससे पहले ब्लॉक प्रमुख व पंचायत अध्यक्ष चुनाव भी भाजपा के लिए टेढ़ी खीर साबित होने जा रहे हैं। लोनी विधानसभा क्षेत्र में जिस तरह भाजपा में अंदरूनी धड़ेबाजी है वह पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं है। 
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