डॉ मनीष कुमार, न्यूरोसर्जन, शकाई व नजफगढ़ न्यूरो केयर सेंटर, दिल्ली।


◼️किसी भी व्यक्ति को ब्लैक फंगस तभी होगी जब आपको पहले से हो फंगस साईनिसाईटीस: शकाई न्यूरो केअर सेंटर

◼️काला फंफूदी तभी जानलेवा हो सकता है जब ब्रेन या खून में फ़ैल जाए। हालांकि यह बीमारी इतनी जल्दी ब्रेन या खून में नहीं फैल सकती है बल्कि इस प्रक्रिया में लगते हैं महीनों: नजफगढ़ न्यूरो केअर सेंटर

◼️अनावश्यक एम्फ़ोटेरीसीन बी का उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस दवा का बहुत भयानक असर होता है किडनी पर


कमलेश पांडेय/अंजली चौधरी


गाजियाबाद :- सुप्रसिद्ध न्यूरो सर्जन डॉ मनीष कुमार की पहचान एक ऐसे डॉक्टर के रूप में है, जो मरीजों से न केवल आत्मीयतापूर्वक पेश आते हैं बल्कि उनका इलाज भी उनकी पॉकेट की क्षमता में करने की पूरी कोशिश करते हैं। इसी जद्दोजहद में कभी कभार वो अपनी पॉकेट भी खाली कर बैठते हैं, क्योंकि दिल्ली-एनसीआर के बड़े बड़े अस्पतालों में उनका आना जाना है। जहां वो मरीज को बेहतर चिकित्सा के लिए रेफर तो कर देते हैं, लेकिन मरीज यदि उसका पूरा खर्च वहन नहीं कर पाता है तो अपने से या अपने मित्रों की मदद से उसकी चिकित्सकीय जरूरतों को पूरा करते हैं। शायद ऐसे ही चिकित्सकों के सदव्यवहार से मरीज भी जल्दी ठीक हो जाते हैं, क्योंकि भावनात्मक रूप से वो खुद को सुरक्षित महसूस करने लगते हैं। 

दरअसल, पहले एक आम आदमी के तौर पर और फिर एक मीडिया कर्मी के रूप में उनके साथ कुछ समय बिताने का मौका मिला, जिसके आधार पर उनके और रोगियों के बीच के निःस्वार्थ रिश्तों को देखने, समझने और कभी कभार परखने का भी मौका मिला। कई बार तो यह बताते हुए भी देखे गए कि फलां मेडिसिन ले लिया करो और यदि ये ये प्राकृतिक चीजें खाओगे और ये ये व्यायाम, योगाभ्यास, प्राणायाम करोगे तो भविष्य में ये दवाएं भी कम होती जाएंगी। 

इस बात में कोई दो राय नहीं कि दिल्ली-एनसीआर जैसे वैश्विक महानगर में बेतहाशा खर्च के मामले में चिकित्सा जगत जैसे अविश्वसनीय पेशे में यदि कोई आपको आपकी मर्ज के मुताबिक सही और कम दवा लिख दे, अनावश्यक दवाइयों, टेस्ट व ऑपरेशन से दूर रखे और वाजिब खर्च ले, तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं। यही वजह है कि समय समय पर विभिन्न समसामयिक रोगों व उसके इलाज के बारे में विख्यात न्यूरोसर्जन डॉ मनीष कुमार के विचारों को आपसे साझा करना अपना पेशेवर धर्म समझता हूं, ताकि आप भी अपनी सेहत से जुड़ी बातों में सही गलत का फर्क समझ सकें और यदि कोई आपको गुमराह कर रहा हो तो उससे सावधान हो जाएं।

आपको पता है कि ब्लैक फंगस का दहशत पूरे देश में फैल चुका है। इसलिए इससे जुड़े सवाल दर सवाल के बारे में डॉ मनीष कुमार बताते हैं कि म्युकर माईकोसिस, काला फंफूदी, बिलेक फंगस, ब्लैक फंगस को मौत का सफ़ेद पत्र करार दिया जाने लगा है। हालांकि, इससे जुड़ी हुई भ्रांतियों को स्पष्ट करते हुए वो बताते हैं कि किसी भी व्यक्ति को यह बीमारी तभी होगी जब आपको पहले से फंगस साईनिसाईटीस हो। दरअसल, साईनिसाईटीस ज्यादातर बैक्टीरिया या एलर्जी से होता है। यदि आपको बैक्टीरिया या एलर्जी के कारण साईनिसाईटीस है, फंगस के कारण नहीं, तो कोरोना में स्टेरॉयड ट्रीटमेंट के कारण म्युकर माईकोसिस, काला फंफूदी, बिलैक फंगस, ब्लैक फंगस की बीमारी के होने का चांस नहीं है। 

शकाई न्यूरो केअर सेंटर, द्वारिका, दिल्ली के संस्थापक डॉ मनीष कुमार इसे और स्पष्ट करते हुए बताते हैं कि यदि किसी भी कारण से अभी अभी कुछ महीनों के अन्दर  काला फंफूदी, बिलैक फंगस, ब्लैक फंगस होता है तो भी उसके जान लेवा होने का चांस नहीं है। क्योंकि वह जानलेवा तभी हो सकता है जब ब्रेन या खून में फ़ैल जाए और यह बीमारी इतनी जल्दी ब्रेन या खून में नहीं फैल सकती है बल्कि इस प्रक्रिया में महीनों लगते हैं। वो बताते हैं कि ऊपर की बात का मतलब यह है कि कोरोना के इलाज के बाद साईनिसाईटीस का अत्यधिक बढ़ जाना या इसका आँख में फ़ैल जाना बैक्टीरिया के कारण हुए साईनिसाईटीस में भी हो सकता है, और यदि ऐसा है तो एम्फ़ोटेरीसीन बी की जरुरत नहीं है बल्कि उपयुक्त एंटीबायोटिक की जरुरत है। 

नजफगढ़ न्यूरो केअर सेंटर के डॉ मनीष कुमार ने लोगों को सचेत किया है कि अनावश्यक एम्फ़ोटेरीसीन बी का उपयोग नहीं करना चाहिए। क्योंकि  इस दवा का किडनी पर बहुत भयानक असर होता है। उन्होंने कहा कि पिछले 15-20 दिनों में मैंने जितने भी रोगी इस बीमारी के आशंका के साथ देखे हैं, किसी में भी म्युकर माईकोसिस, काला फंफूदी, बिलैक फंगस, ब्लैक फंगस साबित नहीं हुआ है। इसलिए आप यह बात गांठ लीजिए कि रोग के मामलों में हमेशा डॉक्टर की सुनिए, मीडिया की नहीं, अन्यथा लेने के देने पड़ सकते हैं।
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