रिपोर्ट :- विकास शर्मा 


हरिद्वार :- देवभूमि उत्तराखंड में पिछले 2017 में शानदार विजय प्राप्त करने वाली भाजपा सरकार के कार्यकाल में जिस तेज गति से पिछले 4 महीनों में इस प्रदेश में 3 मुख्यमंत्री बदले गए हैं उससे प्रतीत होता है कि उत्तराखंड राज्य की शासन व्यवस्था को संभालना एक टेढ़ी खीर है ऐसा लगता है कि अगले साल मार्च में होने वाले चुनाव में पूर्व सत्तारूढ़ भाजपा अपने सारे विकल्प खंगाल लेना चाहती है और उत्तराखंड की जनता को विश्वास दिलाना चाहती है कि उसके पास विकल्प की पूरी एक श्रंखला मौजूद है जिसमें बुजुर्ग से लेकर युवा नेता शामिल है।

राज्य के कुमाऊं संभाग के खटीमा चुनाव क्षेत्र से 2 बार विधायक रहे पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा द्वारा यह संदेश देने की कोशिश की है कि मुख्यमंत्री पद पर किसी भी कार्यकर्ता का दावा हो सकता है लेकिन उत्तराखंड राज्य में भाजपा शासनकाल में विभिन्न घपलों तथा अनियमितताओं के चलते चुनाव में जीतना एक टेढ़ी खीर साबित होगी कोरोना संक्रमण के भीषण दौर में जहां हरिद्वार में कुंभ मेले के दौरान मार्च में ही त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कमान दी थी वही हरिद्वार में तीरथ सिंह रावत द्वारा कुंभ मेला लगाने की इजाजत देकर और "गंगा मैया कोरोना को ही धो डालेगी"  जैसे विवादित बयानों के चलते उनकी रुढीवादी मानसिकता भी उनके जाने का मुख्य कारण माना जा रहा है 

इस राज्य में बड़ी समस्या बेरोजगारी और पलायन की है राज्य में आय का प्रमुख सोत्र पर्यटन व्यवसाय है कोरोना काल में उत्तराखंड के पर्यटन व्यवसाय पर काफी बुरा असर पड़ा है इस समस्या  यहां चल रही छोटी छोटी बिजली परियोजनाओं ने पहाड़ को कंक्रीट में बदलकर पर्यावरण विदो को नाराज कर दिया है राज्य को मजबूत अर्थव्यवस्था व आधारभूत विकास की जरूरत है ऐसे में नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पास अपनी क्षमता को साबित करने का 6 माह का समय है इस अल्प काल में है राज्य की इन समस्याओं से निपटना उनके लिए कड़ी  चुनौतियों के रूप में देखा जा रहा है
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