रामदुलार यादव
        

रामदुलार यादव की कलम से......✍🏻


गाज़ियाबाद :- महान पण्डित, प्रख्यात शिक्षाविद भारत सरकार के सर्वोच्च सम्मान भारत-रत्न से विभूषित बेजोड़ दार्शनिक डा0 सर्वपल्ली राधा कृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को तिरुतनी, जिला तिलवल्वुवर चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ, इनके पिता जी की आर्थिक स्थिति दयनीय होने के कारण इनका बचपन बहुत ही कष्टमय रहा, लेकिन अदम्य साहस और विलक्षण प्रतिभा के बल पर इन्होने यह सिद्ध कर दिया कि कठिन परिश्रम, उच्च शिक्षा से मानव सर्वोच्च पद पर पहुँच सकता है, उन्होंने यह उदाहरण प्रस्तुत कर दिया, आप भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति तथा द्वितीय सर्वोच्च राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया। 

इनका बचपन तिरुतनी और तिरुपति बालाजी के धर्म स्थलों में व्यतीत हुआ, इनकी शिक्षा क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुर्थन मिशन स्कूल तिरुपति में हुई, वेल्लूर कालेज में शिक्षा ग्रहण करने के बाद मद्रास क्रिश्चियन कालेज से शिक्षा पूर्ण की, 1906 में दर्शन शास्त्र में एम0 ए0 किया, मद्रास रेजीडेंसी कालेज में दर्शन शास्त्र के सहायक प्राध्यापक, 1918 में मैसूर विश्व विद्यालय में प्राध्यापक चुन लिए गये। कुछ दिनों बाद वह बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय के उपकुलपति का पद ग्रहण किया, उन्होंने दर्शन शास्त्र पर अनेकों पुस्तकों का लेखन किया तथा वैज्ञानिक, धार्मिक विचारक के रूप में ख्याति प्राप्त की।
     
डा0 राधा कृष्णन भारतीय समाज के आर्थिक पिछड़ेपन और गरीबी से अवगत थे। शिक्षा तथा अवसर की समानता से विषमता को दूर किया जा सकता है, वे सामाजिक न्याय के प्रबल पक्षधर थे, उनका मानना था कि दुनिया में दूसरा कोई ऐसा देश नहीं है जिनमे इतनी आर्थिक विषमताएँ व्याप्त हो, आर्थिक सुविधाओं का अभाव हो जितना भारत में है। यहाँ करोड़ों लोग गरीबी, बीमारी, निरक्षरता से ग्रस्त, बेबस, लाचार कष्ट भोग रहे है, तब हम कैसे इनका कष्ट दूर करें, मेरे मन में मानव के कष्ट के प्रति करुणा, दया का भाव स्वयं जागृत हो जाता है मै सोचता हूँ मानव कैसे महान है, जो इतनी पीड़ा झेल रहा, अशिक्षित, असहाय, भूख और बीमारी से ग्रस्त है, वह व्यक्ति कहलाने लायक नहीं है, उनका मानना था कि मानव प्राणी बहुत ही मूल्यवान है, वह सम्मान, सहयोग, प्रेम पूर्वक कृपा के योग्य है, उन लोगों को हमने अस्पृश्यता, जाति, धर्म के नाम पर चोट दी उनके अंतर्मन में गहरे घाव हो गये है, उनसे सहानुभूति और सदव्यवहार से मरहम लगाने का कार्य करना, उन्हें मुख्य धारा में लाना, जहाँ अँधेरा है वहां प्रकाश फैलाना ही हमारा श्रेष्ठ धर्म होना चाहिए। उनका मानना था श्रेष्ठता का प्रमाण केवल चरित्र है, वह जाति-पांत, छुवाछूत को कलंक मानते थे, वह कहा करते थे अस्वच्छ और अस्पृश्य कुछ भी नहीं है, हमें विचार कर अपनी आदतें और आचरण बदलना चाहिए।
  
डा0 सर्वपल्ली राधा कृष्णन ने कहा कि जब-जब भारत में असहिष्णुता और कट्टरता का बोल-बाल रहा हमारा पतन हुआ, जब हम कठोर मतान्ध हुए तभी हमारी अवनति हुई, किसी देश की समृद्धि तभी सम्भव है जब हम मैत्रीपूर्ण व्यवहार, सहिष्णुता और सहयोग से रहना सीखेंगें| हमें इतिहास से भी शिक्षा लेनी चाहिए, जब-जब समाज में सामंती प्रवृत्ति का जन्म हुआ तब-तब हम अवनति में रहे, हमारे देश के मनीषियों, विद्वानों ने हमेशा प्रेम, सहिष्णुता के गुणों को अपनाने की शिक्षा दी।

डा0 राधा कृष्णन ने कहा है कि हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है, हमें सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करना चाहिए, राज्य किसी भी धर्म से भेदभाव नहीं करता, वे कहा करते थे कि धर्मनिरपेक्षता धार्मिक प्रतिद्वंदिताओं को दूर करने का प्रयत्न करती है| संविधान भी सबको उपासना की स्वतंत्रता देता है, धर्म की कसौटी यह है कि वह किस सीमा तक व्यक्ति और समाज व्यवस्था को बदल सकता है| हमें सभी व्यक्तियों को पूर्ण स्वतंत्र एवं समृद्ध जीवन जीने का अवसर प्रदान करने का कार्य करना चाहिए। उन्होंने समाजवादी व्यवस्था की बात करते हुए कहा कि “समाजवाद का अर्थ सबके लिए समान अवसर और आवश्यक सुविधाएँ देना है, 

गरीबी और अमीरी के अन्तर को कम करना है, तथा प्रत्येक व्यक्ति को सम्मान जनक जीवन जीने का अवसर प्रदान करना है, उनका कहना था कि जिनको भरपेट भोजन नहीं मिलता, जो पटरी, सड़क पर सोते है, बेघर, लाचार है, उनके जीवन स्तर में आमूल-चूल परिवर्तन लाना समाजवादी व्यवस्था का लक्ष्य होना चाहिए, कोई जागरूक नागरिक जो देश और समाज से प्यार करता है तब-तक सुखी और संतुष्ट नहीं रह सकता, जब-तक वह भयानक दुर्दशा और गरीबी को देख उसे दूर करने का प्रयत्न नहीं कर रहा है| वे लोकतंत्र को नैतिक मूल्यों की रक्षा करने जन-जन की समस्याओं का समाधान करने की व्यवस्था मानते थे तथा वे संवैधानिक संस्थाओं  को शक्तिशाली देखना चाहते, इन संस्थाओं को  संचलित करने वालों में नैतिकता, ईमानदारी से बिना भेदभाव के जन-कल्याण करने तथा राष्ट्र को मजबूत बनाने में अपना योगदान देने की प्रेरणा देते थे।

डा0 राधा कृष्णन एक महान दार्शनिक, विचारक थे वह कहा करते थे कि मानव की महिमा इस बात पर नहीं है कि वह कभी असफल न हो असफलता से ही सफलता का मार्ग मिलता है| आज उनके विचार के अनुरूप कार्य नहीं हो पा रहा है, संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है, यह लोकतन्त्र के लिए शुभ संकेत नहीं है| संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर कर  असत्य, असहिष्णुता,  नफरत का वातावरण बनाया जा रहा है, सद्भाव और प्रेम समाज में कम हो रहा है, हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम  डा0 राधा कृष्णन जैसे महान विद्वान से प्रेरित हो जन-जन की सेवा में लगे। 17 अप्रैल 1975 को उनका देहावसान हो गया उन्होने अनेकों पुस्तकों में अपने विचार व्यक्त किया है, वह समाज का दर्पण है, उनके बताए मार्ग पर चलकर ही हम सच्ची श्रद्धांजली देने लायक अपने को समझेंगे
                                                                     
                                                                            लेखक :-
रामदुलार यादव 
संस्थापक/अध्यक्ष 
लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट
मो0 नं0  9810311255, 15
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