रिपोर्ट :- विकास शर्मा


हरिद्वार :- पूर्वजों के प्रति श्रद्धा पूर्वक किया जाने वाला धार्मिक कार्य श्राद्ध कहलाता है। पित्र पक्ष में अपने पूर्वजों की आत्माओं को संतुष्ट करने के लिए श्राद्ध की परंपरा सदियों से चली आ रही है।     मान्यता है कि पितृपक्ष शुरू होते ही हमारे पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं। पितरों के प्रति अपनी श्रद्धा को समर्पित करने का महापर्व पितृपक्ष 20 सितंबर दिन सोमवार आज से 6 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। इस दौरान पितरों के लिए कई ऐसे धार्मिक कार्य और उपाय किए जाते हैं जो उन्हें संतुष्ट कर करके हमें उनका आशीर्वाद दिलाने में सहायक होते हैं।           

देश के कई प्रमुख तीर्थ स्थल जैसे हरिद्वार, प्रयागराज, गया आदि में जाकर पिंड दान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। इस पित्र पक्ष में कुछ बातों का विशेष ख्याल रखा जाता है अन्यथा पितृ नाराज हो जाते हैं जो पित्र दोष का कारण बनता है। ज्योतिष शास्त्र में भी इस पित्र दोष का वर्णन मिलता है। जिसका सीधा अर्थ पितरों की नाराजगी से है। पितृदोष के चलते व्यक्ति को जीवन में तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। मान्यता है कि जो लोग पितृपक्ष के दौरान अपने पितरों का सम्मान नहीं करते उनके निमित्त तिल, कुशा, जल के साथ दान आदि नहीं करते उन्हें नाराज कर देते हैं उन्हें यह दोष लग जाता है। इसी तरह जो व्यक्ति अपने पूर्वजों या बुजुर्ग व्यक्तियों का अपमान करता है या फिर उनके लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करता है उसे भी यह पित्र दोष लगता है। 

मान्यता है कि पितृपक्ष में पूर्वज किसी भी रूप में घर में विराजमान हो जाते हैं। इसीलिए किसी भी व्यक्ति के प्रति अपने मन में बुरे विचार ना लाएं और ना उनका अपमान करें। सनातन परंपरा में पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध का बहुत महत्व है स्कंद पुराण के केदारखंड के अनुसार श्राद्ध करने वाले को संतान की प्राप्ति होती है। "श्रद्धा परम यश" यानी श्राद्ध से परम आनंद और यश की प्राप्ति होती है। श्राद्ध करने से स्वर्ग है मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
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