रिपोर्ट :- अजय रावत
गाजियाबाद :- विश्व ब्राह्मण संघ के प्रवक्ता बीके शर्मा हनुमान ने कहा कि ब्राह्मण समाज पर बुरी नजर रखने वालों को सबक सिखाना होगा। समाज के लोगों का आह्वान किया कि हमें अपने पूर्वजों से सीख लेनी होगी। उन्होंने कहा कि ब्राह्मण कोई जाति नहीं है, ब्राह्मण विचारधारा है जो विश्व बंधुत्व की भावना रखती है। कहा कि सभी को शिक्षित होकर संगठित होने की जरूरत है। देश एवं समाज के लिए ब्राह्मण समाज ने हमेशा एकता की मिसाल कायम की है, उसी को कायम रखने की जरूरत है।
बीके शर्मा हनुमान ने बताया कि सम्मनादि ब्राह्मणो नित्यभुद्विजेत् विषादिव । अमृतस्य चाकांक्षे दव मानस्य सर्वदा
ब्राह्मण को चाहिये कि वह सम्मान से डरता रहे और अपमान की अमृत के समान इच्छा करता रहे । वर्ण व्यवस्था की सुरुचिपूर्ण व्यवस्था में ब्राह्मण को समाज में सर्वोपरि स्थान दिया गया है । साथ ही साथ समाज की महान जिम्मेदारियाँ भी ब्राह्मणों को दी गयीं हैं। राष्ट्र एवं समाज के नैतिक स्तर को कायम रखना, उन्हें प्रगतिशीलता एवं विकास की ओर अग्रसर करना , जनजागरण एवं अपने त्यागी तपस्वी जीवन में महान आदर्श उपस्थित कर लोगों को सत्पथ का प्रदर्शन करना, ब्राह्मण जीवन का आधार बनाया गया । इसमें कोई संदेह नहीं कि राष्ट्र की जागृति, प्रगतिशीलता एवं महनता उसके ब्राह्मणों पर आधारित होती हैं । ब्राह्मण राष्ट्र निर्माता होते हैं , मानव हृदयों में जनजागरण का गीत सुनाता है , समाज का कर्णधार होता है । देश, काल, पात्र के अनुसार सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन करता है और नवीन प्रकाश चेतना प्रदान करता है । त्याग और बलिदान ही ब्राह्मणत्व की कसौटी होती है । राष्ट्र संरक्षण का दायित्व सच्चे ब्राह्मणों पर ही हैं । राष्ट्र को जागृत और जीवंत बनाने का भार इनपर ही है ।
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः । यजुर्वेद ब्राह्मणत्व एक उपलब्धि है जिसे प्रखर प्रज्ञा, भाव-सम्वेदना, और प्रचण्ड साधना से और समाज की निःस्वार्थ अराधना से प्राप्त किया जा सकता है । ब्राह्मण एक अलग वर्ग तो है ही, जिसमे कोई भी प्रवेश कर सकता है, बुद्ध क्षत्रिय थे, स्वामि विवेकानंद कायस्थ थे, पर ये सभी अति उत्त्कृष्ट स्तर के ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण थे । ”ब्राह्मण” शब्द उन्हीं के लिये प्रयुक्त होना चाहिये, जिनमें ब्रह्मचेतना और धर्मधारणा जीवित और जाग्रत हो , भले ही वो किसी भी वंश में क्युं ना उत्पन्न हुये हों।
ब्राह्मणासः सोमिनो वाचमक्रत , ब्रह्म कृण्वन्तः परिवत्सरीणम् । अध्वर्यवो घर्मिणः सिष्विदाना, आविर्भवन्ति गुह्या न केचित्
ब्राह्मण वह है जो शांत, तपस्वी और यजनशील हो । जैसे वर्षपर्यंत चलनेवाले सोमयुक्त यज्ञ में स्तोता मंत्र-ध्वनि करते हैं वैसे ही मेढक भी करते हैं । जो स्वयम् ज्ञानवान हो और संसार को भी ज्ञान देकर भूले भटको को सन्मार्ग पर ले जाता हो, ऐसों को ही ब्राह्मण कहते हैं । उन्हें संसार के समक्ष आकर लोगों का उपकार करना चाहिये ।