रिपोर्ट :- अजय रावत

गाजियाबाद :- जिस तेजी से नेता घर बदलते हैं, उसी तेजी से इस बार मतदाताओं ने भी घर बदला लेकिन जाहिर नहीं होने दिया। कैडर वोटरों को छोड़ दे तो अन्य वोटरों ने अपनी मुट्ठी मतदान के दिन तक बंद ही रखी। नेताओं के टटोलने पर भी उन्होंने न तो खुलकर किसी का समर्थन किया, न ही साफ-साफ मंशा जाहिर होने दी। अब मुस्लिम, एससी, जाट, ब्राह्मण, वैश्य समेत बिरादरियों की बहुलता वाले बूथों पर हुए मतदान के आंकड़ों के आधार पर राजनीतिक दल और प्रत्याशी जीत-हार का अनुमान लगा रहे हैं।

जनपद में हर विधानसभा सीट पर बिरादरियों का गणित अलग-अलग है। यहां जीत और हार के समीकरण भी जुदा है। शहरी मतदाताओं की संख्या ज्यादा होने की वजह से गाजियाबाद और साहिबाबाद विधानसभा सीट पर विकास कार्यों के साथ-साथ जीतने का फार्मूला बिरादरी और कैडर वोट को ही माना जा रहा है। मुरादनगर विधानसभा सीट पर शहरी और ग्रामीण दोनों मतदाता है। ऐसे में सबसे ज्यादा पेचीदगी वाली सीट भी यही मानी जा रही है। यहां शहरी मतदाताओं में विकास, कानून व्यवस्था और ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि बिल को लेकर हुए किसान आंदोलन का मुद्दा भी हावी रहा। पूरी तरह अधिकांश देहात क्षेत्र वाली मोदीनगर और लोनी क्षेत्र में किसान आंदोलन सबसे ज्यादा हावी दिखा। विकास, कानून व्यवस्था और बिरादरी का फार्मूला यहां उतना नहीं चला, जितनी उम्मीद की जा रही थी। कुल मिलाकर जनपद में इस बार राजनीतिक दल सभी सीटों पर जीत का दावा तो कर रहे हैं, लेकिन भीतर से संशय में भी दिखाई दे रहे हैं।

राजनीतिक दलों की नजरें ऐसे क्षेत्रों के बूथों पर हुए मतदान पर टिकी है, जहां वोटों का आंकड़ा उनकी हार-जीत का संकेत दे देते हैं। मुस्लिम बहुल क्षेत्र में वोटों के बंटवारे से एक राजनीतिक दल को अपनी जीत दिखाई दे रही है तो दूसरे दल को हार। इसी तरह अनुसूचित वर्ग वाले क्षेत्र, जाट बहुल क्षेत्रों में भी प्रत्याशियों को बंटवारे और एकजुटता में अलग-अलग परिणाम नजर आ रहे हैं। यही वजह है कि मतदान के बाद बूथों पर वोटिंग के आंकड़ों का प्रत्याशी और राजनीतिक दलों के संगठन की ओर से मंथन किया जा रहा है।
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