◼️पूर्व कैबिनेट मंत्री महाराष्ट्र सरकार इंजीनियर महादेव जानकर ने किया शोभा यात्रा का शुभारंभ



रिपोर्ट :- अजय रावत

गाज़ियाबाद :- राष्ट्रीय समाज पार्टी के तत्वाधान में लोकमाता अहिल्याबाई की 297वी. जयंती के उपलक्ष्य में गाजियाबाद के घंटाघर स्थित रामलीला मैदान से हिंडन मेट्रो स्टेशन तक भव्य शोभा यात्रा निकाली गई। जिसमें हजारों की संख्या में लोगो ने भाग लिया शोभा यात्रा का शुभारंभ महादेव जानकर जो कि राष्ट्रीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष है साथ ही महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके है और वर्तमान में महाराष्ट्र सरकार में एमएलसी है कि करकमलों द्वारा किया गया है।

शोभा यात्रा की कमान राष्ट्रीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्य्क्ष ( एससी /  एसटी मोर्चा) नरेश कुमार के हाथ मे थी उनके द्वारा पूरी टीम को साथ लेकर पिछले 15 दिनों से अथक मेहनत कर शोभा यात्रा को भव्य बनाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन किया शोभा यात्रा की भव्यता देखते ही बनती थी ढोल नगाड़ों की गूंज ने शोभा यात्रा की भव्यता में चार चांद लगा दिये यह यह भी जानना जरूरी है कि माता अहिल्याबाई होल्कर का जन्म महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के चौड़ी नामक गाँव में मनकोजी शिंदे के घर सन् 1725 ई. में हुआ था। साधारण शिक्षित अहिल्याबाई 10 वर्ष की अल्पायु में ही मालवा में इतिहासकार ई. मार्सडेन के अनुसार होल्कर वंशीय राज्य के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के पुत्र खण्डेराव के साथ परिणय सूत्र में बंध गई थीं। अभी यौवनावस्था की दहलीज पर ही थीं कि उनकी 29 वर्ष की आयु में पति का देहांत हो गया।

सन् 1766 ई. में वीरवर ससुर मल्हारराव भी चल बसे। अहिल्याबाई होल्कर के जीवन से एक महान साया उठ गया। शासन की बागडोर संभालनी पड़ी। कालांतर में देखते ही देखते पुत्र मालेराव, दोहित्र नत्थू, दामाद फणसे, पुत्री मुक्ता भी माँ को अकेला ही छोड़ चल बसे। परिणामतः ‘माँ’ अपने जीवन से हताश हो गई, परन्तु प्रजा हित में उन्होंने स्वयं को संभाला और सफल दायित्वपूर्ण राज-संचालन करती हुई 13 अगस्त, 1795 को नर्मदा तट पर स्थित महेश्वर के किले में भारतीय इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखाकर सदैव के लिए महानिदा में सो गईं। उनका प्रशासनिक तंत्र अत्युत्तम था, वे स्वयं देर रात्रि तक दरबार में बैठकर राजकीय कार्यों को निपटाती थीं।
अधीनस्थ अधिकारियों के प्रति उनका व्यवहार अति नम्र था. कर्तव्यनिष्ठ कर्मियों को पुरष्कृत किया जाता था तथा पदोन्नति भी की जाती थी।

चाहे अमीर हो चाहे गरीब सबको एक समान न्याय सुलभ था, उचित समय व अल्प खर्च पर न्याय दिलाने हेतु उन्होंने जगह-जगह न्यायालय स्थापित किए थे.वे स्वयं अंतिम निर्णय करती थीं तथा निर्णय करते समय सत्य के प्रतीक रूप में मस्तक पर स्वर्ण निर्मित शिवलिंग धारण करती थी।
अर्थव्यवस्था सुदृढ़ थी, लगान वसूली की दृष्टि से उन्होंने अपने राज्य को तीन भागों में विभक्त किया था, कृषि व वाणिज्य को भी बढ़ावा दिया। वाणिज्य व्यापार ने काफी उन्नति की थी उन्होंने सूती वस्त्रों, विशेषकर महेश्वर के साड़ी उद्योग को काफी बढ़ावा दिया।

वे धार्मिक रूप से सहिष्णु थीं, हिन्दू धर्म की उपासिका होने के बावजूद भी वे मुस्लिम धर्म के प्रति अत्युदार थीं, उन्होंने महेश्वर में मुसलमानों को बसाया तथा मस्जिदों के निर्माण हेतु धन भी दिया। सांस्कृतिक कृत्यों को भी उन्होंने उदार संरक्षण दिया। कन्याकुमारी से हिमालय तक और द्वारिका से लेकर पुरी तक अनेकानेक मंदिर, घाट, तालाब, बावड़ियाँ, दान संस्थाएं, धर्मशालाएं, कुएं, भोजनालय, दानव्रत आदि खुलवाए. काशी का प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर महेश्वर के प्रसिद्ध मंदिर व घाट उनकी स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने हैं।
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