रिपोर्ट :- अजय रावत

गाजियाबाद :- विश्व ब्राह्मण संघ के प्रवक्ता ब्रह्मऋषि विभूति बीके शर्मा हनुमान ने बताया कि राम के यत्न से चलने वाला शासन राम की नीति पर चलने वाला प्रशासन और राम के चरित्र को धारण करने वाला जनमानस राम राज्य की अवधारणा को परिभाषित करते हैं राम का न्याय, राम का लोक व्यवहार, राम की सम दृष्टि, राम की सेवा, राम का समर्पण, राम की जागृति, राम की दया, राम की सहिष्णुता और राम की जनभक्ति  राम राज्य की परिभाषा के स्त्रोत हैंl राम का पौरुष राम की शरणागत वत्सलता, राम का अनुशासन, राम की क्षमा शीलता, राम की उदारता, राम की सहृदयता और राम की सरलता राम राज्य के सहज प्रतीक हैं। 

पुरुषोत्तम राम की वीरता, राम का बंधुत्व, राम की मित्रता, राम का उपकार, राम की परदुखकातरता, राम का सौहार्द और राम की निर्लिप्तता आ रामराज्य के पूरक है। राम के गुण वस्तुतः राज गुण हैं ।इस धरती पर सत्य का आदर्श लेकर ऐसा चित्रण किसी भी युग में कहीं नहीं मिलेगा ।सत्ता का तनिक भी मोह न होना, एक मानव के लिए परम कठिन विषय है। राज मिलने पर सुख न होना और राज चले जाने पर दुख न होना, राम के लिए यह विषय भी नहीं है। एक गृहस्थ संत का राजा बन जाना और एक महात्मा का सिंहासन पर बैठना, इसे परिभाषित नहीं किया जा सकता। कोई इसे राजनीति का महा प्रयोग कह सकता है अथवा कोई इसे प्राकृतिक प्रचलन या विचलन कह सकता है। 

जैसे की अनेकानेक परिवर्तन होते हैं, वैसे ही रामराज्य भी राजनीतिक परिवर्तन का दृष्टांत कहा जा सकता है। गुण धर्म के आधार पर रामराज्य की शासन पद्धति सदैव से आदित्य हैं। राम राज्य में शांति और न्याय का पूर्ण साम्राज्य था, जैसा कि किसी ने देखा नहीं। कोई असंतोष नहीं था। कोई गरीब नहीं था, भूखा नंगा नहीं था, अभावग्रस्त नहीं था, शोषित नहीं था, पीड़ित नहीं था। राज्य कर्मियों से किसी को कोई परिवाद न हुआ। न ही लोगों की ओर से कोई मांग थी। अर्थात जनता सब तरह से पूर्ण संतुष्ट थी।
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