रिपोर्ट :- अजय रावत

गाजियाबाद :- विश्व ब्रह्मर्षि ब्राह्मण महासभा के संस्थापक/राष्ट्रीय अध्यक्ष ब्रह्मर्षि विभूति बीके शर्मा हनुमान ने कहा कि छल बल और लोभ लालच से कराए जाने वाले मतांतरण को बहुत गंभीर बताते हुए केंद्र सरकार इस पर रोक लगाएं , और तत्काल प्रभाव से सक्रिय होना चाहिए। सक्रियता के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर मतांतरण रोधी कोई प्रभावी कानून भी सामने आना चाहिए। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि कुछ राज्य सरकारों ने प्रलोभन देकर कराए जाने वाले मतांतरण को रोकने के लिए कानून बना रखे हैं, क्योंकि ये कानून उन संगठनों को हतोत्साहित करने में समर्थ नहीं, जो मतांतरण अभियान में लिप्त हैं। ऐसे कानूनों के बाद भी मतांतरण कराने वालों के दुस्साहस का दमन होता नहीं दिख रहा है। देश के उन क्षेत्रों में जहां अनुसूचित जाति-जनजाति समुदाय की संख्या अधिक है, वहां ईसाई मिशनरियों की सक्रियता किसी से छिपी नहीं। ईसाई मिशनरियों जैसा तौर-तरीका कई इस्लामी संगठनों ने भी अपना रखा है। वे दीन की दावत देने के नाम पर लोगों को बहलाने फुसलाने का ही काम करते हैं। मतांतरण के लिए वे लोगों को प्रलोभन भी देते हैं। 

मतांतरण में लिप्त तत्वों के निशाने पर आम तौर पर निर्धन लोग होते हैं, जिनकी विवशता का लाभ उठाना कहीं आसान होता है। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि अपने मत-मजहब के प्रचार की स्वतंत्रता का अनुचित लाभ उठाया जा रहा है। मत-मजहब के प्रचार की स्वतंत्रता के नाम पर लोगों को बरगलाने का अधिकार किसी को भी नहीं दिया जा सकता। केंद्र सरकार इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकती कि कुछ ईसाई संगठन किस तरह भगवा वस्त्र धारण कर गरीब आदिवासियों और दलितों को बरगलाने का काम करते हैं। छल से कराए जाने वाले मतांतरण पर अंकुश लगाना इसलिए आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है, क्योंकि जब देश के किसी क्षेत्र का सामाजिक ताना-बाना बदलता है तो वहां राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा हो जाती हैं। 

वास्तव में इसी कारण सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि यदि छल-कपट से होने वाले मतांतरण को नहीं रोका गया तो बहुत मुश्किल स्थिति पैदा होगी। ऐसी स्थिति देश के में पैदा भी हो गई है। इस मुश्किल स्थिति का सामना सरकार के साथ कुछ हिस्सों समाज को भी करना होगा, क्योंकि मतांतरण एक तरह से राष्ट्रांतरण की खतरनाक प्रक्रिया है। मतांतरण के माध्यम से समाज के सांस्कृतिक चरित्र को बदलने की जो कोशिश हो रही है, वह राष्ट्रघाती है। केंद्र सरकार यह कहकर कर्तव्य की इतिश्री नहीं कर सकती कि उसने मतांतरण में लिप्त संगठनों पर अंकुश लगाने के लिए विदेश से चंदा लेने संबंधी नियम-कानूनों में परिवर्तन किया है, क्योंकि तथ्य यही है। कि इन नियम-कानूनों से बच निकलने की कोई न कोई जुगत भिड़ा ली जाती है। विदेश चंदा लेने के नियम-कानून वैसे ही होने चाहिए, जैसे आतंकी फंडिंग पर लगाम लगाने के लिए बनाए जा रहे हैं।
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