रिपोर्ट :- अजय रावत
गाजियाबाद :- इसे भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था की विडंबना ही कहा जाएगा कि एक डॉक्टर के शोध और विधा को वैश्विस स्तर पर न केवल स्वीकार किया जा रहा है बल्कि उन्हें सम्मान भी दिया जा रहा है, लेकिन अपने ही देश की सरकारी व्यवस्था उनके शोध को पचा नहीं पा रही है। जिले के प्रसिद्ध ईएनसी सर्जन डॉ. बीपी त्यागी ने प्लाज्मा थैरेपी से मूक-बधिरों के उपचार पर किए गए शोध को इंटरनेशनल ईएनटी एसोसिएशन की वार्षिक सैमिनार में बतौर फैक्लटी शामिल होकर प्रस्तुत किया। उनके शोध और सफल उपचार को लेकर एसोसिएशन के इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल में डॉ. त्यागी को प्लाज्मा से कान के पर्दों के उपचार करने वाला दुनिया का पहला डॉक्टर बताया गया है।
अपनी इस उपलब्धी को मीडिया के सामने रखते हुए डॉ. बीपी त्यागी ने बताया कि वह अब तक पीआरपी रीजेनरेटिव थैरेपी के जरिए 1000 से ज्यादा मरीजों का सफल उपचार कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि इस थैरेपी में मरीज का ही प्लाज्मा लिया जाता है और उसके जरिए बनाए गए इंजेक्शन से गूंगे और बहरे लोगों का उपचार किया जाता है। इस उपचार में सफलता का प्रतिशत 90 है ।
उपचार की इस विधी में मरीज का कोई ऑपरेशन नहीं किया जाता और न ही कानों में किसी मशीन को लगाने की जरूरत पड़ती है। मरीज प्राकृतिक तौर पर सुनने और बोलने की क्षमता प्राप्त करता है जो स्थाई रहती है। उन्होंने बताया कि इस विधा पर उन्होंने लंबा शोध किया और अपने शोध पत्र को आईएफओएस में बतौर फैकेल्टी प्रस्तुत किया। शोधपत्र के आधार पर आईएफओएस ने इस विधा का दुनिया का पहला डॉक्टर घोषित किया है।