रिपोर्ट :- अजय रावत
ग़ाज़ियाबाद :- निकाय चुनाव के परिणाम आने के बाद, कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में बहुत ज़्यादा रोष व्याप्त है,जो कि स्वाभाविक है।कार्यकर्ता पार्टी के आदेश और अपने नेता की एक आवाज़ पर रैली,सम्मेलन और सरकार की ग़लत नीतियों के विरोध में प्रदर्शन एवं और जो भी कार्यक्रम होते हैं उनमें बढ़चढ़कर हिस्सेदारी निभाने का प्रयास करते हैं। वो ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि पार्टी से प्यार करते हैं और वक़्त आने पर उन्हें भी मान सम्मान मिले। इसके लिए पार्टी उन्हें कोई तनख़्वाह नहीं देती, फिर भी अपनी स्थिति के अनुसार अपना समय, तन मन और धन सब लगाते हैं। जब कार्यकर्ताओं की बारी आती हैं तो उनकी अनदेखी की जाती हैं।
इसी वजह से ज़िला अध्यक्ष एवं महानगर अध्यक्षों पर आरोप प्रत्यारोप शुरू हो जाते हैं जो कि कुछ हद तक ज़िम्मेदार भी होते हैं लेकिन इसमें कमियाँ अध्यक्षों की नहीं है। उन्होंने तो अपनी क्षमता अनुसार कार्य किया है। इस सबके लिए प्रान्तीय अध्यक्ष, प्रदेश के प्रभारी ,प्रदेश अध्यक्ष सभी ज़िम्मेदार हैं क्योंकि वो छोटे कार्यकर्ताओं की बातों पर ध्यान ही नहीं देते। दूसरा सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी हमारे शीर्ष नेतृत्व की है। हम जानते हैं कि शीर्ष नेतृत्व तक वास्तविक नहीं पहुँच पाती हैं। उनके द्वारा नियुक्त सलाहकार अपने हितों को साधते हुए जैसी मर्ज़ी रिपोर्ट देते हैं, उन पर विश्वास कर लिया जाता है। चुनाव के परिणाम को देखते हुए आलाकमान को निर्णय लेना चाहिए। वह पार्टी और पार्टी के सच्चे सिपाही दोनों के लिए बेहतर साबित होगा। राहुल गांधी से हम सबको सबक़ लेना चाहिए, जिन्होंने तपती हुई गर्मी और कड़कड़ाती सर्दी में 3770 किलोमीटर की पैदल यात्रा की और आम लोगों के दिलों में जगह बनाई।
जिसका परिणाम कर्नाटक में बहुमत से ज़्यादा सीटें हासिल हुई हैं। राहुल अपनी सदस्यता और घर दोनों छिन जाने के बाद भी पार्टी को पहले जैसी स्थिति में लाने के लिए पूर्णतः प्रयासरत हैं। वहीं दूसरी ओर कुछ लोग अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए कांग्रेस पार्टी की गरिमा को तार तार करने में लगे हैं। हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस पार्टी से ही कांग्रेसियों की पहचान है।