रिपोर्ट :- अजय रावत
गाज़ियाबाद :- आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। इसका तात्पर्य है कि इस समय प्राय: सूर्य कर्क की संक्रांति में चले जाते हैं और दक्षिणायन शुरू हो जाता है। और इसी दिन से चतुर्मास प्रारंभ हो जाता है ।चातुर्मास कहते हैं बरसात के 4 महीने। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने इन दिनों शादी विवाह आदि शुभ कार्य को प्रतिबंधित किया है ।किंतु चातुर्मास में ईश्वर का का ध्यान, पूजा ,दान आदि सब चलते रहेंगे। देव शयनी एकादशी 29 जून को सूर्य उदय से लेकर रात्रि 2:42 तक रहेगी। उसके बाद द्वादशी तिथि आएगी। इसलिए एकादशी का व्रत 29 जून को ही रखा जाएगा प्रातःकाल एकादशी व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु की पूजा करें ।ऐसा माना जाता है कि देवशयनी एकादश विष्णु भगवान शेषनाग की शैय्या पर विश्राम करते हैं। और चार माह की समाप्ति के बाद देवोत्थान एकादशी को पुनु जागृत होकर सृष्टि को नियंत्रित करते हैं।
इसलिए एकादशी का व्रत अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए भी होता है। जाने अनजाने में कोई पाप अपराधहो जाता है ।इस दिन भगवान विष्णु से क्षमा याचना कर मुक्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करने से भगवान विष्णु मनुष्य के जाने अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति दिलाते हैं।
प्रात काल उठकर भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। विष्णु सहस्त्रनाम, गोपाल सहस्रनाम ,रामरक्षास्तोत्रम् महालक्ष्मी के मंत्रों का भी जाप कर सकते हैं ।लक्ष्मी सूक्तम् ,श्री सूक्तम् आदि का पाठ करें। भगवान को नैवेद्य आदि का भोग लगाएं। स्वयं निराहार रह कर के भगवान की आराधना करें और अगले दिन प्रातः सूर्योदय के समय व्रत का समापन करें। एकादशी के व्रत के समय नियम संयम से रहें। सात्विक आहार खाएं ।मांसाहार एवं नकारात्मक वस्तुओं का सेवन ना करें। ब्रह्मचर्य से रहें। किसी की निंदा चुगली ना करें ।हो सके तो मौन रहें। विधि विधान के साथ श्रद्धा पूर्वक इस व्रत को करने से मनुष्य की सारी मनोकामना पूर्ण होती हैं और भगवान विष्णु की कृपा का प्रसाद मिलता है। और अनजाने अनजाने में किए हुए पापों से मुक्ति मिलती है।
आचार्य शिव कुमार शर्मा, आध्यात्मिक गुरु एवं ज्योतिषाचार्य गाजियाबाद