◼️ देश में औरत अगर बेआबरू नाशाद है, 
दिल पे रखकर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है ?



प्रियंका मिश्रा की कलम से......✍🏻

गाज़ियाबाद :- स्वतंत्रता दिवस का प्रत्येक भारतीय के दिल में एक महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि यह हिन्दुस्तानियों की एकता और अटूट भाईचारे की विजय का प्रतीक है। यह आज़ादी हमें 200 सालों की यातना, उत्पीड़न, युद्ध और बलिदान के बाद 15 अगस्त, 1947 को मिली थी, हमारे देश का स्वतंत्रता दिवस हर साल 15 अगस्त को आजादी की सालगिरह के रूप में मनाया जाता है, इस दिन भारत ने सत्य और अहिंसा के दम पर ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त की थी  भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन प्रथम विश्व युद्ध के दौरान शुरू हुआ और इसका नेतृत्व मोहनदास करमचंद गांधी ने किया था, परन्तु भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं के योगदान का उल्लेख किए बिना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास अधूरा ही होगा। भारत की महिलाओं द्वारा किए गए बलिदान को इतिहास में अग्रणी स्थान मिला है, उन्होंने सच्ची भावना और अदम्य साहस के साथ संघर्ष किया और हमें स्वतंत्रता दिलाने के लिए विभिन्न यातनाओं, शोषणों और कठिनाइयों का सामना किया , जब अधिकांश पुरुष स्वतंत्रता सेनानी जेल में थे तब महिलाएं आगे आईं और स्वतंत्रता संघर्ष की कमान संभाली। 

क्रांतिकारी आंदोलन के दौरान महिलाएँ हथियारों को छुपाकर रखती थीं, क्रांतिकारियों को शरण देती थीं और उन्हें प्रोत्साहित करती थीं। महिलाओं की यह घरेलू भूमिका, क्रांतिकारी गतिविधियों को संरक्षण प्रदान करती थीं। भारत की सेवा के प्रति समर्पण और बलिदान के लिए इतिहास में सैकड़ों महान महिलाओं के नाम दर्ज हैं, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन 1857 से 1947 तक चला, भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के अंतिम उद्देश्य के साथ ऐतिहासिक घटनाओं की एक श्रृंखला है। जिसमें भारत की स्वतंत्रता हासिल करने में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इतिहास में इन वीरांगनाओं की शूरवीरता के किस्से भरे पड़े हैं, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भागीदारी 1817 से ही शुरू हो गई थी। इनमें भीमा बाई होल्कर ने ब्रिटिश कर्नल मैल्कम के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उन्हें गुरिल्ला युद्ध में हराया। तथा सरोजिनी नायडू एक भारतीय राजनीतिक कार्यकर्ता और कवयित्री थीं। नागरिक अधिकारों , महिलाओं की मुक्ति और साम्राज्यवाद -विरोधी विचारों की समर्थक थीं, वह औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण महिला क्रांतिकारी थी, तथा रानी लक्ष्मीबाई , जिन्हें झाँसी की रानी के नाम से भी जाना जाता है, वह 1857 के भारतीय विद्रोह की प्रमुख हस्तियों में से एक थीं और भारतीय राष्ट्रवादियों के लिए ब्रिटिश राज के प्रतिरोध का प्रतीक बन गईं थीं, तथा कस्तूरबा गांधी एक भारतीय राजनीतिक कार्यकर्ता थीं। 

उन्होंने 1883 में मोहनदास गांधी से शादी की थी। तथा अपने पति और बेटे के साथ, वह ब्रिटिश भारत में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल थीं इनके साथ ही विजय लक्ष्मी पंडित, अरूणा आसफ अलि, दुर्गा बाई देशमुख, शिस्टर निवेदिता, मीरा बेन, कमला नहरू, मैडम भीकाजी कामा, सुचेता कृपलानी, सावित्रीबाई फुले, लक्ष्मी सहगल और हमारे गाजियाबाद की जानी मानी विरांगना दुर्गा भाभी जैसी अन्य और भी महिलायें आजादी के संघर्ष में अपने प्राणों की आहुति देने के लिए भी आतुर थी इन सभी विरांगनाओ द्वारा किए गए बलिदान को इतिहास में अग्रणी स्थान मिला है, उन्होंने सच्ची भावना और अदम्य साहस के साथ संघर्ष किया और हमें स्वतंत्रता दिलाने के लिए विभिन्न यातनाओं, शोषणों और कठिनाइयों का सामना किया। जब अधिकांश पुरुष स्वतंत्रता सेनानी जेल में थे तब महिलाएं आगे आईं और स्वतंत्रता संघर्ष की कमान संभाली। देश को स्वतंत्र कराने में महिलाओं की भी पूर्ण भागीदारी रही है परन्तु आज देश को स्वतंत्र हुए 75 साल पूरे हो गए हैं तो क्या हम महिलाओं को भी अपने इस देश और समाज में स्वतंत्रता मिल पायी है स्वतंत्र समाज वह होता है, जिसमें व्यक्ति अपने हित संवर्धन न्यूनतम प्रतिबंधों के बीच कार्य करने में स्वतंत्र हो । स्वतंत्रता को इसलिए बहुमूल्य माना जाता है, क्योंकि इससे हम निर्णय और चयन कर पाते हैं। स्वतंत्रता के कारण ही व्यक्ति अपने विवेक और निर्णय की शक्ति का प्रयोग कर पाता हैं। स्वतंत्रता तीन प्रकार की होती है. पहली स्वतंत्रता है, समाज की बाधाओं से मुक्ति। दूसरी, स्वतंत्रता है, वह करने की स्वतंत्रता जो हम करना चाहते हैं। तीसरी, वह बनने की आज़ादी है जो हम बनना चाहते हैं। 

स्वतंत्रता इसलिए भी अच्छी है क्योंकि यह विकास पैदा करती है। महिलाओं के परिवेश में पांच विशिष्ट स्वतंत्रताओं में राजनीतिक स्वतंत्रता, आर्थिक सुविधाएं, सामाजिक अवसर, पारदर्शिता की गारंटी और सुरक्षात्मक सुरक्षा महत्वपूर्ण है आजादी के असल मायने तो तब समझ में आते हैं जब समाज के हर क्षेत्र में महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिया जाए तथा पूरे देश में हर तबके की महिलाओं को एक ही प्रकार की सुविधाएँ और अधिकार हासिल हों। इससे भी बड़ी बात यह है कि महिलाएँ और पुरुष तब बराबर माने जाएँगे, जब पुरुष भी खुशी-खुशी महिलाओं की दुनिया में हिस्सेदारी करना चाहे। असल में महिलाओं के विकास के नाम पर हमारी नजर सिर्फ उन शहरी महिलाओं पर रुकती है, जो आधुनिकता के बंधन में तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ रही हैं जबकि असल भारत तो उन छोटे व मझौले शहरों, कस्बों व ग्रामीण क्षेत्रों में बसता है जहाँ अभी ऐसी स्थिति नहीं है। इन इलाकों में देश की 60 फीसदी महिलाएँ रहती हैं जिन्हें विकास की परिभाषा तक मालूम नहीं। 

शिक्षा के नाम पर इन महिलाओं में से शायद कुछ ही कॉलेज क्या, स्कूल तक पहुँची हों। दीन-दुनिया की जानकारी से दूर इन्हें सिर्फ दो वक्त का भोजन बनाने और घर के सदस्यों की देखभाल करने के अलावा और कुछ भी नहीं मालूम। क्या देश की महिलाओं का यह तबका विकासशील भारत की आजाद महिलाओं को प्रदर्शित नहीं करता और अगर करता है तो इनकी दशा आज भी कई दशकों पहले जैसी ही क्यों है ?  देश में महिलाओं की एक बड़ी आबादी को एक सामान्य जीवनशैली जीने वाली शहरी महिला जैसी सहूलियत भी उपलब्ध नहीं है आज़ादी के 75 साल बाद आज भी स्कूलों तक पहुंच से लेकर शारीरिक पोषण और मानसिक विकास के समान अवसर तक लड़कियां बहुत पीछे नज़र आती हैं। अपनी मर्ज़ी के कपड़े पहनने से लेकर रात में सड़कों पर निकलने तक के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ता है। परन्तु धीरे धीरे ही सही आज समय बदल रहा है, दो दशक पहले की तुलना में आज की महिलाएँ शिक्षा के प्रति कहीं ज्यादा जागरूक हैं। महिलाओं में शिक्षा का स्तर बढ़ने से उनके सोचने-समझने की क्षमता का भी विकास भी हुआ है। समय बीतने के साथ साथ सरकार ने महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए कई कानून बनाए हैं । स्त्री शिक्षा को अनिवार्य किया गया है । लड़की की मर्जी के बगैर शादी पर प्रतिबंध लगाया गया है, तलाक को कानूनी दर्जा दिया गया है, अब महिलाएँ अपनी मर्जी के अनुसार किसी भी हुनर के लिए ट्रेनिंग ले सकती है।

आज नारी शिक्षित है और हर फैसले खुद लेने में सक्षम है। सरकार ने भी नारियों के उन्नति के लिए कई कार्य किये है। मोदी सरकार ने बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ जैसे सफल अभियान चलाये है। नारी का सम्मान करना और उसकी रक्षा करना भारत की प्राचीन संस्कृति है। आज की नारी अपनी मर्यादा , लज्जा और सम्मान को सुरक्षित रखी हुई है , जो विश्व में अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं । आज वह ' लज्जा की गुड़िया ' नहीं बल्कि पुरुष की सहयोगिनी , जीवन संगिनी और सहधर्मिणी है । वह अपने घर और समाज के लिए सदा समर्पण करने को तत्पर रहती हैं परंतु एक बात मन में रहती है कि, स्त्री और पुरुष को वर्गीकृत करने की आवश्यकता ही क्यों पडती है, जो मर्यादा के बाहर जाएगा वह दोषी माना जाना चाहिए चाहे स्त्री हो या पुरुष सारी मर्यादाये महिलाओं पर ही ना रहे तभी वास्तव में हम महिलायें भी अपने आप को स्वतंत्र देश की स्वतंत्र नागरिक महसूस करैगी।

वन्दे मातरम्  - भारत माता की जय
Previous Post Next Post