रिपोर्ट :- अजय रावत

गाजियाबाद :- विश्व ब्रह्मऋषि ब्राह्मण महासभा के संस्थापक अध्यक्ष ब्रह्मऋषि विभूति बी के शर्मा हनुमान ने कहा, कि सर्वे भवंतु सुखिनः का उद्घोष करने वाली भारतीय संस्कृति दुनिया में सबसे विलक्षण है, क्योंकि यह पूर्ण मानवतावादी है l इसलिए इसका हर विधान मंगलकारी हैl मानवीय संबंधों की जितनी गहराई भारतीय संस्कृति में है lउतनी दुनिया में कहीं नहींl यहां रिश्तो का संबंध एक जन्म का नहीं, बल्कि जन्म जन्मांतर का होता हैl वस्तुतः जिस देश में बच्चों को पहला पाठ मातृ देवो भव और पितृ देवो भव का पढ़ाया जाता हैl माता को धरती और पिता को आकाश से भी ऊंचा कहा गया है lऐसे संबंध को मृत्यु भी कैसे अलग कर सकती है lइसलिए वह पितर पितृलोक  में निवास करते हुए भी अपनी संतानों की मंगल कामना करते हैं। 

हम तो प्रतिदिन सूर्य और चंद्रमा को भी जल की भावना देते हैं, जो ऊष्मा, प्रकाश और शीतलता प्रदान करते हैं ।फिर पितरों को कैसे भूल सकते हैं, जिन्होंने हमें जीवन ।दिया शायद उनका ऋण हम कभी नहीं चुका सकते। अतः पितरों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन का पर्व है पितृपक्ष ब्रह्मऋषि विभूति बीके शर्मा हनुमान ने कहा कि श्रद्धा से दिया गया दान ही श्राद्ध कहलाता है। इसलिए पितृपक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं। इस काल में लोग अपने पितरों की स्मृति में पूजन व तर्पण के अतिरिक्त निर्धन व्यक्ति को भोजन व वस्त्र का दान भी देते हैं ।विश्वास है कि यह पितरों को प्राप्त होता है। वस्तुतः हमारी संस्कृति में स्थूल के अलावा सूक्ष्म शरीर को भी स्वीकार किया गया है, जो मृत्यु के बाद भी नष्ट नहीं होता। पितर इसी सूक्ष्म शरीर से पूजन एवं तर्पण को ग्रहण करते हैं। भारतीय संस्कृति समतामूलक संस्कृति है। इससे ऐसे अवसरों का दान क्रियाओं का विधान इसलिए किया गया है ,ताकि जरूरतमंद लोगों  की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके भूखों को भोजन मिल सके। गीता में कहा गया है कि उचित देशकाल में उचित पात्र को दिया गया दान सफल होता है। अतः सुपात्र को दिए गए दान से पितर अवश्य संतृप्त होते होंगे ।यही तो पित्र पक्ष की सार्थकता है। अपने सतकर्मों से हमें इस अवसर को और सफल बनाना चाहिए।
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