◼️पितरों को प्रसन्न करने का मिलेगा दुगुना शुभ मुहूर्त

◼️पितरों के लिए स्वयं तर्पण करने की विधि

◼️सूर्य ग्रहण का क्या होगा प्रभाव?



सिटी न्यूज़ | हिंदी.....✍🏻

गाजियाबाद :- 14 अक्टूबर को पितरों को प्रसन्न करने के लिए कई शुभ योग बन रहे हैं।14 अक्टूबर को पितृ विसर्जन अमावस्या है। दूसरे शनि अमावस्या का योग है। साथ में शनिवार को हस्त नक्षत्र होने से यमघंटक योग हैं।
ऐसे शुभ मुहूर्त में पितरों को प्रसन्न करने के लिए आपके लिए बहुत ही शुभ मुहूर्त है ।जैसा की शास्त्रों में वर्णित है कि 16 दिनों से चल रहे श्राद्ध पक्ष का समापन सर्वपितृ अमावस्या को होता है। यमघंटक योग में भी पितरों की पूजा करना उनके अच्छे लोकों की निमित्त तर्पण करना बहुत श्रेष्ठ होता है।

यदि किसी ने भूलवशकोई श्राद्ध ना किया हो, किसी को अपने पितरों की मृत्यु तिथि ना पता हो, किसी के यहां सूतक तथा पातक लग गया हो इस कारण उस तिथि किसी को श्राद्ध ना कर सके हो ।तो पितृ विसर्जन अमावस्या को सभी  ज्ञात अज्ञात पितरों का श्रद्धा पूर्वक तर्पण एवं श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध में 16 तिथियां के अनुसार 16 पूरियां अथवा रोटियां उनके निमित्त निकाल कर अपने सभी पितरों के नाम लेकर के तर्पण अवश्य करना चाहिए।

कहते हैं कि  हमारे पितृ अपने वंशजों से तर्पण प्राप्त करके तृप्त हो जाते हैं और उन को आशीर्वाद देते हैं। यह भी माना जाता है कि हमारे पितृ इन श्राद्ध पक्ष में सूक्ष्म रूप धरकर के भ्रमण करते हैं और अपने वंशजों के यहां जो उनके निमित्त भोजन आदि दान करते हैं ।उनको ग्रहण करके और प्रसन्न होकर के दिव्य लोक को चले जाते हैं।
14 अक्टूबर को इस बार सूर्य ग्रहण का योग भी बन रहा है किंतु यह सूर्य ग्रहण भारत में दृश्यमान नहीं है। इसलिए इसका कोई सूतक अथवा प्रभाव  व सावधानियां यहां पर करने योग्य नहीं है।

श्राद्ध करने की जनसाधारण के लिए सामान्य विधि
अपने परिवार के तीन पीढ़ियों के पूर्वजों के निमित्त उनकी वार्षिक तिथि पर  श्राद्ध किया जाता है। 
सद्गृहस्थी को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए ।जिससे हमें अपने पूर्वजों की कृपा प्राप्त हो सके।
यदि आपने अपने पितरों की मृत्यु तिथि को श्राद्ध न किया हो तो इस अमावस्या को 
सबसे पहले प्रातः काल  नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नानादि करके ईश्वर भजन के पश्चात अपने सभी पूर्वजों का स्मरण करें व प्रणाम करे और
उनके गुणों को याद  करें।
अपनी  सामर्थ्य के अनुसार किसी विद्वान ब्राह्मण को आमंत्रित कर भोजन कराएं ।और उन्हीं से पूर्वजों के लिए तर्पण कराएं व श्राद्ध करें।
आप स्वयं भी अपने पितरों से निमित्त तर्पण  इस प्रकार कर सकते हैं। सबसे पहले संकल्प करें। संकल्प के लिए हाथ में जल, पुष्प, और तिल अवश्य रखनी चाहिए।
ॐ तत्सत्,अद्य -------------गोत्रोत्पन्न: (गोत्र बोलें) ------------------- नामाऽहम् (नाम बोलें)
आश्विन मासे कृष्ण पक्षे-अमावस्यातिथौ शनिवासरे
स्व पित्रे (पिता) /पितामहाय (दादा) मात्रे (माता) मातामह्यै (दादी)
निमित्तम् तस्य श्राद्धतिथौ  यथेष्ठं , सामर्थ्यं श्रद्धानुसारं तर्पणं/ श्राद्ध/ ब्राह्मण भोजनं च करिष्ये ।
 इस संकल्प को हिंदी में भी बोल सकते हैं।
आज------ गोत्र में उत्पन्न ---  मैं आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष कीअमावस्यातिथि को  अपने पिता/ दादा/ माता/ दादी के निमित्त उनकी श्राद्ध तिथि पर  अथवा सभी पितरों के  तर्पण के लिए अपनीसामर्थ्य और श्रद्धा के अनुसार तर्पण ,श्राद्ध और ब्राहमण भोजन कराउंगा ।
उसके पश्चात तर्पण हेतु किसी बड़े बर्तन अथवा परात में निम्नलिखित वस्तुएं डालें।
शुद्ध जल ,गंगाजल ,दूध, दही और शहद ,काले तिल व कुछ पुष्प डालें।
इस अवसर पर पितृतर्पण के साथ-साथ देव तर्पण और ऋषि तर्पण भी किया जाता है।
सबसे पहले देव तर्पण करते हैं।
सीधे हाथ के अंगूठे के नीचे कुछ दुर्वांकुर लेंगे बाहर की ओर को उनके पत्ते रखेंगे।( इसे देव मुद्रा कहते हैं)
ओम् भूर्भुव: स्व:ब्रह्माविष्णुरूद्रेभ्य; तर्पयामि। 
ऐसा बोलकर अंजुलि में कनिष्ठा उंगली की ओर से जल भरेंगे और जहां पर हमने दूब घास अंगूठे की नीचे दबा रखी है। उस और हाथ को घुमाकर बाहर निकाल देंगे।
इस मंत्र से सात बार बोल कर देवों के लिए तर्पण करें।
इसके पश्चात ऋषि  तर्पण के लिए देव तर्पण की ही तरह  7 बार सप्तर्षियों के निमित्त तर्पण करेंगे।
ओम् भूर्भुव: स्व: सप्तर्षिभ्य; तर्पयामि।
इसके पश्चात उस दुर्वा  घास को अंगूठे के नीचे से निकालकर पांच उंगलियों को एक साथ मिलाएंगे। इसे पितृ मुद्रा कहते हैं। 
 उसमें दुर्वा घास दबा लेंगे।
अपने पितृ देवता के लिए सात बार तर्पण करेंगे ।ओम भूर्भुव: स्व: पितरेभ्य: तर्पयामि।
ऐसे मंत्र को बोलकर कनिष्ठा उंगली के नीचे की ओर से जल भरेंगे और हाथ को सीधा करके उंगलियों के बीच में से परात में छोड़ देंगे।
पिता के लिए :
ओम भूर्भुव: स्व: पित्रेभ्य: तृपयामि।
माता के लिए :
 ओम भूर्भुव: स्व: मात्रेभ्य:तर्पयामि।
दादा के लिए :
 ओम् भूर्भुवः स्व: पितामहेभ्य:तर्पयामि।
दादी जी के लिए:
ओम् भूर्भुव: स्व: मातामहीभ्य:तर्पयामि।
परदादा के लिए  प्रपितामहेभ्य:  बोलेंगे।
सभी पितरों के निमित्त तर्पण करने के लिए ओम् भूर्भुवः स्व:सर्वेभ्य:पितरेभ्य: तर्पयामि। कहते हुए सात बार तर्पण करें।
वैसे तो यदि विस्तार में जाएंगे तो   अपने पिता के कुल की 5 या7 पीढ़ियों के उच्चारण करके  तर्पण करते हैं और अपनी नाना पक्ष की भी पांच पीढ़ियों का उच्चारण करके तर्पण करना होता है। जो किसी विद्वान आचार्य के द्वारा ही कराया जा सकता है । 
जनसाधारण के लिए उपरोक्त विधि ही सबसे उपयुक्त है।।
तर्पण के पश्चात अपने  पूर्वज की रूचि का भोजन बनाकर थाली में रखें और 6 पूडी अथवा पराठे या रोटी  रखें।
उनके 6 भाग इस प्रकार करें। प्रत्येक पूडी पर जो भी वस्तुएं बनी है, सबको थोड़ा-थोड़ा रखें और उसके पश्चात उनके ऊपर से दो बार जल फेरें।
एक भाग गौ बलि
दूसरा भाग काक(कौवे हेतु) बलि
 तीसरा भाग स्वान(कुत्ते हेतु) बलि चौथा भाग पिपिलिका बलि(चींटियों हेतु)
 पांचवा भाग विश्वे देवा(सभी देवताओं के लिए)
 और छठा भाग चांडाल बलि
कौवे के निमित्त एक भाग निकालकर घर की छत पर रख दें अथवा खुले मैदान में रख दें। बाकी सभी पूडियों को गाय को खिला दें।
पितृ विसर्जन को के लिए 16 पूडियां ,रोटी अलग से निकलनी चाहिए।
तत्पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराएं ब्राह्मण न मिले तो किसी धर्म प्रचारक या  योग्य पात्र को खाना खिलाएं।
उसके पश्चात ब्राह्मण को दक्षिणा आदि देकर विदा करें। उनके पैर छुए उसके पश्चात स्वयं भी भोजन करें।


पंडित शिवकुमार शर्मा ,आध्यात्मिक गुरु एवं ज्योतिषाचार्य गाजियाबाद
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