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गाज़ियाबाद :- विश्व ब्रह्मऋषि ब्राह्मण महासभा के संस्थापक अध्यक्ष ब्रह्मऋषि विभूति बीके शर्मा हनुमान ने कहा कि मेरा सपना तो एक है। मेरा अपना नहीं, सदियों पुराना, कहें कि सनातन है। कितने बुद्ध, महावीर, कितने कबीर, नानक, उस सपने के लिए प्राणों को न्योछावर कर गए। उस सपने को मैं अपना कैसे कहूं? वह सपना मनुष्य की अंतरात्मा का सपना है। हम उस सपने को भारत कहते हैं। भारत कोई भूखंड नहीं, ना ही कोई राजनैतिक इकाई है, भारत है एक अभीप्सा, एक प्यास, सत्य को पा लेने की। उस सत्य को, जो हमारे हृदय की हर धड़कन में बसा है। उसकी पुनरुद्घोषणा भारत है। 'अमृतस्य पुत्रः !' 'हे अमृत के पुत्रो !' जिन्होंने इस उद्घोषणा को सुना, वे भारत के नागरिक हैं। कोई किसी देश में, किसी भी सदी में हो, अगर उसकी खोज अंतस की खोज है, तो वह भारत का निवासी है। मेरे लिए भारत और अध्यात्म पर्यायवाची हैं। भारत और सनातन धर्म पर्यायवाची हैं।
भारत एक सनातन यात्रा है, एक अमृत-पथ है, जो अनंत तक फैला हुआ है। इसलिए भारत ने इतिहास नहीं लिखा, केवल उस चिरंतन की ही साधना की है। मैं भी उस अनंत यात्रा का छोटा-सा यात्री हूं। चाहता था कि जो भूल गए हैं, उन्हें याद दिला दूं, जो सो गए हैं उन्हें जगा दूं। चाहता था भारत अपनी गरिमा और गौरव पुनः पा ले, क्योंकि भारत के भाग्य के साथ पूरी मनुष्यता का भाग्य जुड़ा हुआ है, क्योंकि हमने जैसा मनुष्य की चेतना को चमकाया था, वैसा दुनिया में कोई देश नहीं कर सका था। यह कोई दस हजार साल पुरानी सतत साधना है। हमने चेतना के दीये को जलाए रखा है, भले ही उसकी लौ मद्धिम हो गई हो, लेकिन दीया अब भी जलता है। मैंने चाहा था कि हर आदमी प्रकाश स्तंभ बने। दुनिया की किसी भाषा में 'मनुष्य' जैसा शब्द नहीं है। अरबी और हिब्रू तथा इनसे उपजी भाषाओं में, जो भी शब्द हैं, उनका मतलब होता है: मिट्टी का पुतला मात्र 'मनुष्य' में इसकी स्वीकृति है कि तुम मिट्टी के पुतले नहीं, चैतन्य हो, अमृतधर्मा हो। मैं चाहता हूं कि तुम्हारी 'भूली संपदा की तुम्हें याद दिला दूं, ताकि तुम्हारे भीतर से भी आवाज उठे : अहं- ब्रह्मास्मि, मैं ईश्वर हूं।