10 नवंबर को है गोवत्स द्वादशी व्रत
रिपोर्ट :- अजय रावत
गाज़ियाबाद :- कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी का व्रत रखा जाता है। इस दिन गाय और उसके बछड़े का पूजन किया जाता है।
शास्त्रों में कहा गया की गाय के शरीर में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है। इसलिए गाय की पूजा, गाय की सेवा करने से बहुत ही सांसारिक , भौतिक और पारलौकिक सुख मिलता है। लेकिन देसी गाय ही इसके लिए होनी आवश्यक है। कामधेनु ,नंदिनी ,सुरभि आदि गाय हमारे देश में इच्छापूर्ति के लिए बहुत ही फलदायक रही हैं।
कामधेनु गाय महर्षि जमदग्नि के आश्रम में थी। महर्षि जमदग्नि उनकी खूब सेवा करते थे। जब क्षत्रिय राजा सहस्त्रबाहु उनके आश्रम में गए तो कामधेनु की कृपा से 56 व्यंजनों से उनकी सेवा की। जब सहस्त्रबाहु ने उनसे कामधेनु गाय छीनने की कोशिश की तो गाय के शरीर से विशाल सेना निकल करके सहस्त्रबाहु के सैनिकों को परास्त कर दिया ।
इक्ष्वाकु वंश में जब महाराज दिलीप को संतान नहीं हुई तो उन्हें ऋषियों कामधेनु की पुत्री नंदिनी की सेवा करने की आज्ञा दी। नन्दिनी की सेवा के फलस्वरूप उन्हें रघुवंश का उत्तराधिकारी मिला।
भारतीय संस्कृति में गाय को माता कहा गया है इसके सभी अवयवों से उपयोगी वस्तुएं बनती हैं।
गोमूत्र, गोमय,दूध दही, घृत,मक्खन आदि मानव के बहुत ही उपयोगी हैं और औषधि के रूप में भी प्रयोग होती हैं।
जिस घर में गौ माता की सेवा होती है उसे घर में नकारात्मक शक्तियां समाप्त हो जाती हैं। गोवत्स द्वादशी के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर किसी गौशाला में जाएं और गाय की भरपूर सेवा करें।उनको चारा दान करें। गाय के सम्मुख प्रणाम करें ।उसके माथे पर टीका लगाए और माला पहनाऐं । रोटियां या अन्य खाद्य वस्तुओं का गौशाला में गायों के उपयोग के लिए दान करें। शाम के समय व्रत का परायण करें। परायण के समय कामधेनु माता का अथवा नंदिनी गौ माता का ध्यान करके गौवंश के निमित्त संकल्प लें कि गौशाला में कुछ ना कुछ दान अवश्य करेंगे।
यदि आप गौशाला में नहीं जा सकते अथवा आपके यहां गाय नहीं है तो फिर कामधेनु गाय का एक स्वरूप अथवा प्रतिमा इसमें वह बछड़े सहित हो,अपने घर में स्थापित करके नित्य दर्शन करें तो घर में संतान वृद्धि होती है, संतान संस्कारी हो जाती है नि:संतान दंपतियों को भी संतान होने की संभावनाएं बन जाती हैं
आचार्य शिवकुमार शर्मा
आध्यात्मिक गुरु एवं ज्योतिषाचार्य गाजियाबाद