◼️षटतिला एकादशी के व्रत से जन्म जन्म की निर्धनता दूर हो जाती है



रिपोर्ट :- अजय रावत

गाज़ियाबाद :- षटतिला एकादशी माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहा जाता है।
इस वर्ष षट्तिला एकादशी 6 फरवरी को है।
इस दिन प्रात 7:34 से मंगलवार को मूल नक्षत्र भी होगा,यह छत्र योग बनाता है।
मंगलवार को एकादशी के दिन मूल नक्षत्र का आना बड़ा ही महत्वपूर्ण माना गया है।
शाम को 4:07 बजे से द्वादशी तिथि आएगी। इसलिए एकादशी रात्रि 6 फरवरी को ही रखा जाएगा।इस  एकादशी को तिल से बनी हुई वस्तु या मिष्ठान का दान करना चाहिए और उनका सेवन करना चाहिए।
एकादशी व्रत के पूजन में दिन में व्रत और रात्रि को जागरण करने का विधान है  ।यदि हवन करें तो अच्छा रहता है तिलयुक्त  लड्डू व मिष्ठान ,पेठा ,नारियल, सीताफल या सुपारी सहित भगवान को अर्पण कर अर्घ्य दें और फिर भगवान विष्णु की स्तुति करें। एकादशी की कहानी सुनी अथवा पढे। विष्णु भगवान की आरती करें।


 षटतिला एकादशी के दिन छ: प्रकार के तिलों   इस प्रकार वर्णन है।
1. तिल स्नान - स्नान के जल में काले तिल मिलाकर स्नान करें।
2. तिल का उबटन- तिल का पेस्ट बनाकर उससे मुख, हाथ पैर पर उबटन करें।
3. तिल का हवन- इस दिन तिल युक्त सामग्री से हवन करना चाहिए।
4. तिलोदक- पीने के पानी में कुछ तिल मिला लेने चाहिए। उसी का सेवन करें।
5. तिल का भोजन - प्रयास करें कि इस दिन व्रत के पारायण के समय तिल युक्त भोजन करें अथवा तिल से बने हुए लड्डू या  मिष्ठान का सेवन करें।
6. तिल का दान- षटतिला एकादशी को तिल का दान करना बहुत ही महत्वपूर्ण है।  ऐसा कहा जाता है जितने तिलों का दान इस दिन करते हैं उतने ही वर्ष वह व्यक्ति स्वर्ग में निवास करता है।
उपरोक्त 6 प्रकार के तिलों के प्रयोग से इसका नाम षट्तिला  एकादशी है।
षटतिला  एकादशी का अनुष्ठान करने से मनुष्य की जन्म-जन्म की दरिद्रता नष्ट हो जाती है और समस्त पाप नष्ट होकर करके भगवान विष्णु के धाम को चला जाता है।


आचार्य शिवकुमार शर्मा,
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु कंसलटेंट,
गाजियाबाद।
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