मां का यह रूप भयंकर होने के साथ भक्तों को अभय प्रदान करने वाला है
मां तारा को भगवान शिव की माता होने की उपाधि भी प्राप्त है
श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में रविवार को मां तारा की विशेष आराधना होगी
रिपोर्ट :- अजय रावत
गाजियाबाद :- श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता, दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने कहा कि दस महाविद्याओं में माँ तारा महाविद्या को द्वितीय विद्या के रूप में जाना जाता है। तारा माता की पूजा आराधना करने से आर्थिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मां तारा की सबसे पहले पूजा-अर्चना महर्षि वशिष्ठ ने की थी। रविवार को सिद्धपहीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में मां तारा की विशेष आराधना होगी और उन्हें सरसों के तेल से बने व्यंजनों का भोग लगाया जाएगा। श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने कहा कि समुद्र मंथन के दौरान जब समुद्र से कोलाहल निकला और भगवान शिव ने उसका पान किया तो उन्हें मूर्च्छा आने लगी थी।
इस पर माँ तारा ने भगवान शिव को स्तनपान करवाया जिससे विष का प्रभाव कम हुआ। इसी कारण मां तारा को भगवान शिव की माँ की उपाधि भी प्राप्त है। इसी कारण भक्तगण माँ तारा को मातृत्व भाव से देखते हैं और उसी रूप में उनकी साधना करते हैं। माँ काली व माँ तारा दोनों के भयंकर रूप हैं मगर माँ तारा का वर्ण नीला है, इसी कारण इन्हें मां नील सरस्वती भी कहा जाता है। इनके सिर पर एक मुकुट है, जिस पर अर्ध चंद्रमा हैं। इनके केश खुले व बिखरे हुए हैं। मुख थोड़ा सा खुला हुआ व आश्चर्यचकित मुद्रा में हैं। माँ खुले मुख से हँसते हुए भी दिखाई देती हैं। माँ अपने चार हाथों में खड्ग, तलवार, कमल का फूल व कैंची धारण किए हुए हैं। माँ के गले में राक्षसों के कटे हुए सिर की माला है तो वे वस्त्र के रूप में बाघ की खाल लपेटे हुए हैं। माँ का यह रूप भीषण होने के साथ-साथ अपने भक्तों को अभय प्रदान करने वाला है।
तारा माता का बीज मंत्र. ऊँ ह्नीं स्त्रीं हुं फट्।। है।
तारा का अर्थ तारने वाली यानि पार कराने वाली भी है। तारा देवी का सबसे प्रसिद्ध मन्दिर और शम्शान तारापीठ में है।