रिपोर्ट :- विकास शर्मा
हरिद्वार :- देशभर में अपनी प्राकृतिक वन संपदा सौंदर्य के लिए मशहूर उत्तराखंड में जंगल को अग्नि से बचने के लिए वनों की आग के प्रभावी प्रबंधन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की कमी है। यह बात राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में पेश की गई एमिकस क्यूरी रिपोर्ट में सामने आई है। 14 अक्टूबर एनजीटी को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में वनों की आग के प्रभावी प्रबंधन में बाधा डालने वाली महत्वपूर्ण कमियों और उल्लंघनों को दूर करना आवश्यक है।
उत्तराखंड राज्य वनों की आग के प्रभावी प्रबंधन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की कमी से जूझ रहा है। इसमें अग्निशमन उपकरणों (जैसे सुरक्षात्मक चश्मे, सुरक्षात्मक गियर, हथियार आदि) की कमी, दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए अपर्याप्त गश्ती वाहन और आग की आपात स्थिति के दौरान समन्वय और समय पर प्रतिक्रिया के लिए आवश्यक वायरलेस और सैटेलाइट फोन जैसे संचार उपकरणों की कमी शामिल है।" रिपोर्ट में कहा गया है कि वन विभाग बुनियादी ढांचे की चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसमें बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए नए ढांचे की कमी और कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि और बुनियादी सुविधाओं के बिना दूरदराज के इलाकों में स्थित वन रक्षक या वनपाल चौकियां शामिल हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, हर 2,448 हेक्टेयर वन क्षेत्र के लिए केवल एक वन रक्षक है, जो अवैध कटाई, खनन, वन्यजीव शिकार और अन्य वन और वन्यजीव संबंधी अपराधों को नियंत्रित करने के लिए भी जिम्मेदार है।उत्तराखंड में वन रक्षकों या वनपालों के वेतन से अवैध कटाई के कारण राजस्व के नुकसान की 'वसूली' की व्यवस्था है। राज्य में वन संपदा को बचने हेतु कड़े नियम वह आवश्यक संसाधन जुटाने की आवश्यकता है।