रिपोर्ट :- अजय रावत


गाजियाबाद :-
         लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया तथा सरकार मैं कैबिनेट मंत्री रामविलास पासवान द्वारा जातिगत आरक्षण को 9वीं अनुसूची में डालने को लेकर दिए गए बयान पर जन अधिकार मोर्चा ने दी आंदोलन करने की चेतावनी जन अधिकार मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पं राजेश शर्मा ने कहा कैबिनेट मंत्री रामविलास पासवान द्वारा एससी एसटी एक्ट काला कानून बनवाने के बाद जातिगत आरक्षण को 9वी अनुसूची में डालने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों से एकजुट होने की अपील करना देश के अंदर जातिगत आरक्षण जैसे नासूर को अमर करना तथा जातिवाद को बढ़ावा देना है यह कार्य कर जातिवाद के बलबूते अपनी राजनीति दुकान चलाने वाले रामविलास पासवान अपने बाद अपने बेटे को भी स्थाई रुप से राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय आरक्षण का लाभ देश के कुछ चुनिंदा धनाढ्य परिवारों को छोड़कर देश के गरीब अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के वास्तविक लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है सरकार इस बात की समीक्षा कराएं तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की नई सूची सरकार तैयार करें सर्वोच्च न्यायालय के दखल देने के बाद दलित नेताओं को यह निर्णय हजम नहीं हो रहा है इनको नजर आने लगा है जातिवाद के बलबूते चलने वाली इनकी राजनीति दुकान अब ज्यादा समय नहीं चलने वाली इसलिए यह लोग आरक्षण को भारतीय संविधान की 9वीं अनुसूची में डालकर उसको अमर करना चाहते हैं

जातिगत आरक्षण का विरोध करने से पहले यह समझना आवश्यक है भारतीय संविधान की 9वीं अनुसूची क्या है,1951 में केंद्र सरकार ने संविधान में संशोधन करके 9वी अनुसूची का प्रावधान किया था ताकि उसके द्वारा किये जाने वाले भूमि सुधारों को अदालत में चुनौती न दी जा सके।उस समय सरकार द्वारा शुरू किये गए भूमि सुधारों को मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार की  अदालतों में चुनौती दी गई थी, जिसमें से बिहार में इस कानून को अदालत ने अवैध ठहराया था। इस विषम स्थिति से बचने और सुधारों को जारी रखने के लिये सरकार ने संविधान में यह 9वी अनुसूची प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 के द्वारा जोड़ी गयी थी विदित हो कि वर्तमान में 9वीं अनुसूची में लगभग 284 कानून हैं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस फैसले से यह तो स्पष्ट हो गया था कि सुप्रीम कोर्ट 9वीं अनुसूची के राजनीतिक इस्तेमाल को रोकना चाहता है। देश में कई ऐसे कानून बनाए गए हैं जो संविधान के प्रावधानों या सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विपरीत जाते हैं। उदाहरण के तौर पर, संविधान के तहत अधिकतम 50% आरक्षण का प्रावधान है, लेकिन तमिलनाडु में एक कानून बनाकर सरकारी नौकरियों में 61% आरक्षण दिया जा रहा है। तमिलनाडु सरकार के इस कदम को अदालत में चुनौती इसलिये नहीं दी जा सकी थी क्योंकि उसे 9वीं अनुसूची में डाला गया है लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार दिये गए हैं और कानून के समक्ष भी सभी को समान माना गया है। ऐसे में किसी भी नागरिक के अधिकारों का हनन अनुचित है फिर चाहे वह सवर्ण हो या दलित।
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