रिपोर्ट :- सिटी न्यूज़ हिंदी


गाजियाबाद :-
      दादा परदादा की विरासत में मिले शवों की क्रिया कर्म के पुरोहित काम को वर्षों से संभाल रहे एक हिंदू परिवार को एक बार फिर एक विशेष समुदाय के लकड़ी माफिया को संरक्षण देकर हथियाने की नाकाम साजिश रची जा रही है। ताज्जुब इस बात का है कि संरक्षणदाता नगर निगम के कंधे पर बंदूक रखकर एक गैर समुदाय को लाभ पहुंचाने की चाल चल रहे हैं। अंदर से छन छन कर आ रही खबरों में सुलगते शवो की तरह षड्यंत्र की बू आ रही है। जबकि सूत्र बताते हैं श्मशान घाट पर दशकों से एक ब्राह्मण परिवार शवो का अंतिम संस्कार करता आ रहा है जो उनका पैतृक पुश्तैनी कर्म है। जो नगर निगम के हस्तक्षेप से परे है। नगर निगम लोगों की सुविधा के लिए सुलभ शौचालय, पानी की व्यवस्था अपने स्तर से करवा सकता है। लेकिन यहां कुछ लोग साजिश के तहत नगर निगम का सहारा लेकर हिंदू धर्म के कर्मकांड को एक विशेष समुदाय के हाथ सौंपने की साजिश रच रहे है जैसा कि पूर्व में भी किया जा चुका है। वर्षों तक हिंडन श्मशानघाट पर काबिज रहने वाला शख्स लकड़ी कारोबारियों का लाखों रुपया घोटाला कर डकार गया। कोर्ट कचहरी की लंबी लड़ाई के बाद क्रिया कर्मकांड का पुश्तैनी काम शहर के उसी ब्राह्मण परिवार के द्वारा संचालित है जो कुछ लोगों की आंखों की किरकिरी बन गया। जिले में श्मशान घाट और भी है जहां हिंडन से अधिक मूल्य पर लकड़ी के पैसे वसूले जा रहे हैं। लेकिन घमासान हिंडन मोक्षस्थली को लेकर ही क्यों ? पता चला है कि नगर निगम को विश्व हरि निस्वार्थ सेवा समिति की ओर से श्मशान घाट पर लकड़ी का ठेका देने की मांग की गई है।

   बता दें यह वही समिति है जिसने पूर्व में निस्वार्थ शब्द की आड़ में लाखों  के भ्रष्टाचार को जन्म दिया था। निगम को यह बताना जरूरी है कि यह वही समिति है जिसे अब किसी अन्य के नाम की आड़ लेकर कुछ अन्य लोगो के संरक्षण में बदनाम कर हथियाना चाहता है। यह वही शख्स हैजिसके खिलाफ नगर निगम ने साल 2012 में अर्थला झील को पाटकर खसरा नंबर 1445, 1446 भूमि को अबैध रूप से बेचने के मामले में साहिबाबाद थाने में मुकदमा दर्ज कराया था।

कुछ दिन मामला शांत रहने के बाद हाल ही में एक मामला फिर सिर उठाकर खड़ा हो गया। दरअसल थाना निवाड़ी देहात से हिंडन श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार को आए एक लावारिस शव के संस्कार में पुलिसकर्मी ने चौकी से मिले ढाई हजार रुपए शमशान घाट पर दिए जिसकी बाकायदा रसीद दी गई। उसी रसीद को आधार बनाकर शव पर सियासत होने लगी। क्रिया कर्म में लगे लोगों को बदनाम करने के लिए न सिर्फ खबर प्रकाशित कराई गई बल्कि फेसबुक पर कमेंट्सबाजी होने लगी। सवाल उठता है कि उक्त रसीद उस शख्स को ही क्यों मिली जिसने फेसबुक पर प्रसारित की। उसी के द्वारा एक प्रतिनिधि को पहुंचे गई। आखिर दोनों लोगों को ही हिंडन श्मशान घाट को लेकर इतनी दिलचस्पी क्यो? 

लावारिस शव का दाह संस्कार कराने आए पुलिस कर्मी ने साफ कहा है कि श्मशान घाट पर उससे पैसे की किसी ने मांग नहीं की उन्होंने स्वेच्छा से दान के रूप में पैसे दिए जिसकी उन्हें रसीद दी गई तो घोटाले का सवाल ही नही। शव के संस्कार के लिए उन्हें उनके अधिकारी ने पैसे दिए थे। उन्होंने कहा कि हिडन घाट पर सभी इंतजाम सही है ऐसी जगह के लिए राजनीति करना गलत है। 

फेसबुक पर कमेंट्स में कहा गया कि आप क़ब्रिस्तान में मुस्लिम शवों के दफनाने की व्यवस्था देखें तो बेहतर है श्मशानघाट हिन्दू धर्मस्थल है वहां व्यक्ति विशेष की सेवाओं पर आपत्तिजनक टिपणी कर बदनाम करना उचित नही। एक जवाब में कहा गया कि लगता है श्मशान घाट को बदनाम करने के लिए खुद समाजसेवी बनकर पुलिस को पैसे देकर रसीद ली और दुष्प्रचार के लिए फेसबुक पर खुद व पार्षद के माध्यम से पोस्ट कर दी । इससे हिन्दू समाज मे रोष है ।
कुल मिलाकर शवों पर सियासत कर मोक्षस्थली को बदनाम करना किसी साजिश का हिस्सा लगता है और येन केन  प्रकारेण एक विशेष समुदाय के व्यक्ति को ढाल बनाकर श्मशानघाट पर लकड़ी की मैं कब्जा करना चाहते हैं
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