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गाजियाबाद :- बीते 20 वर्षों में तीसरी बार जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट सामान्य (अनारक्षित) श्रेणी में जाने से सभी दावेदारों के लिए रास्ता खुल गया है। अब हर वार्ड सदस्य जीते के बाद अध्यक्ष पद पर अपनी किस्मत आजमा सकेगा। ऐसे में अध्यक्ष पद के लिए दावेदारों की संख्या बढ़ने की संभावना है, जिससे चुनाव काफी दिलचस्प होने की संभावना है। इसे विधानसभा चुनाव के रिहर्सल के तौर पर भी देखा जा रहा है। खासकर भाजपा के अंदर अध्यक्ष पद के उम्मीदवारों की लंबी फेहरिस्त है। पंचायत चुनाव का बिगुल बजने के साथ ही भावी उम्मीदवारों ने राजनीतिक रूप से अपने समीकरण बैठाने भी शुरू कर दिए हैं। इस बार सबसे ज्यादा दावेदार सत्ताधारी भाजपा में हैं। साथ ही रालोद, सपा और अन्य दल भी चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं।

गाजियाबाद में जिला पंचायत का इतिहास रहा है कि अध्यक्ष कुर्सी पर अधिकांश समय सत्ता पक्ष ही काबिज रहा है। कई बार राज्य में सत्ता परिवर्तन होने के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष को अपनी कुर्सी गवानी पड़ी और फिर सत्ताधारी पार्टी से जुड़े उम्मीदवार पद पर काबिज हुए। वर्ष 2010 में प्रदेश में बसपा की सरकार थी। उस वक्त तत्कालीन बसपा नेता मलूक नागर की पत्नी सुधा नागर जिला पंचायत अध्यक्ष बनीं लेकिन 2012 में हापुड़ अलग जिला बना और प्रदेश में सपा सरकार बनी। इसके बाद अध्यक्ष पद के लिए उपचुनाव कराए गए, जिसमें मौजूदा मुरादनगर विधायक अजीत पाल त्यागी अध्यक्ष बने। उस वक्त अजीत पाल त्यागी और उनके पिता एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री राजपाल त्यागी की सपा से खासी नजदीकी थी। हालांकि अजीत पाल त्यागी ने सदस्य पद पर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। इसके बाद 2015 में जिला पंचायत के चुनाव हुए जिसमें अजीत पाल त्यागी ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया। ऐसे में सपा आलाकमान से खासे नजदीक माने जाने वाले एमएलसी आशु मलिक के भाई नूर हसन मलिक जिला पंचायत अध्यक्ष बन गए लेकिन वर्ष 2017 में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ। सपा की सरकार गिरने और भाजपा के सत्ता में आने पर नूर हसन को पद गवाना पड़ा।

अनिल कसाना लाए थे अविश्वास प्रस्ताव, पवन मावी ने मारी बाजी

नूर हसन को अध्यक्ष पद से हटाने के लिए वर्ष 2017 में भाजपा समर्थित अनिल कसाना सबसे पहले अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए। उस वक्त माना जा रहा था कि अनिल कसाना ही अगले अध्यक्ष बनेंगे। संगठन से जुड़े एक बड़े नेता से नजदीकी के चलते भी उन्हें प्रबल दावेदार माना गया लेकिन बीच में बड़ा उलटफेर हो गया। पार्टी से जुड़े कुछ नेता बताते हैं कि उस वक्त स्थानीय स्तर पर कुछ विधायक खुलकर पवन मावी के खेमे में चले गए थे जिसके चलते एन वक्त पर पवन मावी की पत्नी लक्ष्मी मावी को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने पर सहमति बनानी पड़ी।

आसान नहीं इस बार की राह, दावेदारों की लंबी फेहरिस्त

भाजपा के अंदर इस बार दावेदारों की लिस्ट काफी लंबी है। स्वयं पवन मावी तीन वार्डों से चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। उधर, अनिल कसाना भी मजबूत दावेदारों की लिस्ट में बताए जा रहे हैं। पार्टी के एक पूर्व जिलाध्यक्ष भी इस बार चुनाव में उतरने की तैयारी में हैं। उनकी पत्नी पहले भी जिला पंचायत सदस्य रह चुकी हैं। इसके साथ ही पूर्व कैबिनेट मंत्री राजपाल त्यागी पहले से अपने पौत्र को चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रहे हैं। उधर, बसपा से पूर्व एमएलसी रहे और वर्तमान में भाजपा में नेता के बेटे भी चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। बसपा से केडी त्यागी का नाम भी अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल माना जा रहा है। रालोद से भी एक पूर्व विधायक को दावेदार हैं।

जिला पंचायत से निकले बड़े चेहरे
जिला पंचायत चुनाव के रास्ते कई बड़े चेहरे निकले हैं। 

मुरादनगर विधायक अजीत पाल त्यागी से लेकर धौलाना के पूर्व विधायक धर्मेश तोमर भी जिला पंचायत से ही निकले। वर्ष 1997 में तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष जुगेंद्र सिंह की हत्या होने पर वर्ष 1998 में उपचुनाव हुए जिसमें धर्मेश तोमर अध्यक्ष बनें। उस वक्त धर्मेश तोमर भाजपा के साथ चुनाव लड़े थे जिसमें पूर्व सांसद रमेश चंद्र तोमर की भी अहम भूमिका मानी गई। कुल मिलाकर बीते 20 वर्ष तीन अध्यक्ष उपचुनाव से जीतकर बने। इनमें धर्मेश तोमर, अजीत पाल त्यागी और लक्ष्मी मावी शामिल हैं।

वार्ड आरक्षण से भी तय होंगे समीकरण

अभी भावी प्रत्याशियों की नजर वार्ड आरक्षण पर भी रहेंगी। क्योंकि जिला पंचायत अध्यक्ष का चयन सदस्यों की तरफ से किया जाता है। इसलिए वार्ड आरक्षण भी तय करेगा कि असल मैदान में कौन खिलाड़ी बचेंगे जो भविष्य में पंचायत अध्यक्ष की दौड़ में शामिल होंगे।

क्षेत्रवार वार्ड की संख्या
वार्ड संख्या क्षेत्र

एक से चार भोजपुर ब्लॉक
पांच भोजपुर व मुरादनगर
छह से सात मुरादनगर
आठ मुरादनगर व रजापुर
9 से 11 रजापुर ब्लॉक
12 से 14 लोनी

बीते 20 वर्षों में पंचायत अध्यक्ष पद का आरक्षण

वर्ष आरक्षण
1995 सामान्य
2000 ओबीसी महिला
2005 एससी महिला
2010 सामान्य
2015 ओबीसी
2021 सामान्य
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