◼️"जिनको पकड़ा हाथ समझ कर, वो केवल दस्ताने निकले" 

◼️विज्ञान व्रत सिया, गुलशन, मासूम, सुरेंद्र, उर्वी, तारा, रमा, तरुणा, सुहासिनी, माला, तूलिका, अंजू, वीना, ज़िया, कीर्ति ने किया इंसानी रिश्तों को बुलंद
 
 
सिटी न्यूज़ | हिंदी.....✍🏻


गाजियाबाद :- मशहूर शायर विज्ञान व्रत ने अपने दोहों और शेरों से "महफ़िल ए बारादरी" के वसंतोत्सव को यादगार बना दिया। कार्यक्रम अध्यक्ष विज्ञान व्रत ने अपने दोहों "एक जिंदगी जिंदगी, एक जिंदगी मौत, दोनों मेरी ब्याहता एक दूजे की सौत," और "ज्यों पानी पर आग हो, छांव पहन ले धूप, सागर में सहरा दिखे, ऐसा तेरा रूप" पर जमकर वाहवाही बटोरी। अपने संबोधन में विज्ञान व्रत ने कहा कि इस आयोजन ने अपना नाम "बारादरी" सार्थक कर दिया। पांच घंटे से अधिक समय तक चलने के बावजूद कहने और सुनने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। 
  
नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित महफिल में विज्ञान व्रत ने अपने शेरों "जुगनू ही दीवाने निकले, अंधियारा झुठलाने निकले," "ऊंचे लोग सियाने निकले, महलों में तहखाने निकले", "जिन को पकड़ा हाथ समझ कर, वह केवल दस्ताने निकले" पर जमकर दाद बटोरी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बी. एल. गौड़ ने कहा "पत्थर की काट से जो शोर होता है, समझ लीजिए कहीं पर निर्माण होता है।" प्रेम को परिभाषित करते हुए श्री गौड़ ने कहा "प्यार वही जो चलकर आए, आ कर गले मिले, फिर दोनों को लगे कि हम सदियों बाद मिले। कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि सिया सचदेव के अधिकांश शेरों ने श्रोताओं की आंखें नम कर दीं। उन्होंने कहा "जो जिम्मेदारियां किस्मत ने मेरे सर रख दीं, तो फिर नज़ाकतें मैंने उठा कर घर रख दीं।" उन्होंने कहा "सीख कर आते हैं किस शहर से अय्यारी लोग, किस कदर करते हैं इश्क में अदाकारी लोग।"   
  
महफिल को ऊंचाइयों पर पहुंचाते हुए मासूम गाजियाबाद ने कहा "उसूली, अदबी, तहज़ीबी, रूहानी कौन देखेगा, नुमाइश में भला चीजें पुरानी कौन देखेगा?" "वो पगली इसलिए शायद ठहाकों पर उतर आई, जवानी में तेरी आंखो का पानी कौन देखेगा?" मशहूर शायर गोविंद गुलशन ने भी अपने शेरों "सहर से मुलाकात चाहता है यह चराग, तभी तो रोज़ नई रात चाहता है चराग", "हवा भी साथ अगर दे एतराज़ है क्या, मुखालफत ही सही, साथ चाहता है चराग," "बुझा दिया है यही सोचकर हवा ने उसे, सुकून के लिए लम्हात चाहता है चराग" से महफिल को और बुलंद किया। 
 
 "मी टू" रचना के माध्यम से शोहरत बटोरने वाली प्रख्यात कवयित्री उर्वशी अग्रवाल "उर्वी" ने भी अपने दोहों, शेरों और मुक्तक से जमकर वाहवाही बटोरी। "उर्वी" ने फरमाया "गिरती झक मार के, चढ़ती हूं सौ बार, मेरे सपनों के महल की, ऊंची मीनार।" "ना वो कमतर, ना मैं बेहतर, ना वो कमतर, ना में बेहतर, वह है मिश्री मैं हूं शक्कर, नर्तन करती तेरी यादें, सिलवट सिलवट मेरा बिस्तर।" तीखे अंदाज के लिए पहचाने जाने वाले शायर सुरेंद्र सिंघल के शेर "मुझ जैसा शख्स कोई अगर बेअदब हुआ है, कमियां जरूर होंगी महफिल के कायदों में" ने आवाम की बात कहने की कोशिश की। कार्यक्रम का शुभारंभ सुप्रसिद्ध ईएनटी सर्जन डॉ. बीपी त्यागी की सरस्वती वंदना से हुआ। 

महफिल का आगाज करते हुए अल्पना सुहासिनी ने कहा "जब भी होता है जहां होता है इश्क इबादत का बयां होता है, है जरूरत ही कहां लफ्ज़ों की, इश्क आंखों से बयां होता है।" डॉ. रमा सिंह ने कहा "बंद खुलती खिड़कियां आंखों में हैं, उसमें उठती तल्ख़ियां आंखों में हैं, चाह कर भी भूलना चाही न जिन्हें, दो तड़पती मछलियां आंखों में है।" अंजू जैन, डॉ. तारा गुप्ता, तरुणा मिश्रा, तूलिका सेठ, बी. एल. बत्रा "अमित्र", डॉ. वीना मित्तल, वी. के. शेखर, टेक चंद, अमूल्य मिश्रा, आशीष मित्तल, कीर्ति रतन, डॉ. संजय शर्मा, आलोक यात्री, प्रीति कौशिक, सुभाष अखिल ने अपने कलाम पर जमकर वाहवाही बटोरी। अंजू जैन ने फरमाया "हमारे बिना यूं कटी कैसे रातें, हमें चांद तारे खबर कर रहे हैं।" महफ़िल ए बारादरी की संस्थापिका डॉ. माला कपूर ने फरमाया "मशहूर हो रहे हैं अगर महफ़िल में हम, ये किसी की हुस्न ए नज़र का कमाल है।" कार्यक्रम का संचालन दीपाली जैन ज़िया ने किया। इस अवसर पर शिवराज सिंह, बांके बिहारी भारती, सुशील शर्मा, वरदान, सचिन त्यागी, अजय वर्मा, वागीश शर्मा, राकेश सेठ, पवन अग्रवाल, डॉ. अतुल कुमार जैन, ललित चौधरी, अपूर्वा चौधरी, आभा श्रृंखल, रेखा शर्मा, पराग कौशिक, डॉ. वीना शर्मा सहित बड़ी संख्या में श्रोता उपस्थित थे।
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