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गाज़ियाबाद :- समाज में जो देख रहा हूं, उससे ऐसा महसूस होता है कि समाज में जिस प्रकार की कार्य प्रणाली व व्यवस्था है, उस प्रणाली से बहुत से लोग शायद सहमत नहीं है।  मन में विचार आता है की यह जो व्यवस्था चली आ रही है, इसमें परिवर्तन कौन लाएगा ? शासन-प्रशासन सरकार या कोई और।

तिलक राज अरोड़ा ने बताया कि ऐसा लगता है कि शासन-प्रशासन तो हम पर हुकूमत करने के लिए है। यह कानून के माध्यम से हमें यह बताते रहते हैं कि आप क्या नहीं कर सकते। हमारे चुने हुए प्रतिनिधि कई बार प्रशासन के आगे असमर्थ प्रतीत होते है। क्या करना, कैसे आगे बढ़ना, विकास और प्रगति का रास्ता कैसे व किस नियम से करना ? यह कौन समझाएगा ?  क्या चालू व्यवस्था में उपयुक्त फेरबदल की आवश्कता है। अगर है तो निश्चित रूप से, समाज में परिवर्तन वही कर सकता है जो समाज में रह रहा है। जमीनी हकीकत से जो परिचित है। 

मेरी, तिलक राज अरोड़ा की सोच है की हमारी सामाजिक संस्थाएं, समाज के अनुभवी व विचारक  लोगों की जवाबदारी बहुत बड़ी हो जाती है। इन्हीं लोगों को सक्रिय भूमिका निभाते हुए समाज में दूरगामी सोच रखते हुए परिवर्तन लाकर, देश को तेज गति से आगे बढ़ाने का कार्य करना होगा। देश चलाना भी एक व्यवसाय चलाने के समान ही है। जिस तरह से एक व्यवसाई, अपने व्यवसाय की  रचना करता है, उसे आगे कैसे बढ़ाना और उसका विस्तार कैसे करना, अपनी आने वाली पीढ़ी के रोजगार को कैसे निर्मित करना। समाज के लोगों के लिए रोजगार कैसे तैयार करना। सामाजिक कार्य कैसे करना। समाज को किन-किन वस्तुओं की जरूरत है उन सब की परिकल्पना करके उसे उपलब्ध कराना, दूर दृष्टि रखते हुए आने वाला समय कैसा रहेगा और उस समय की जरूरतें क्या रहेगी। उस को ध्यान में रखते हुए अपने व्यवसाय का संचालन करना। यह सब कार्य, एक सुनियोजित व्यवस्था के अनुसार ही सुचारू रूप से कर सकता है।

मेरा यह सोचना है की नौकरशाही किसी भी आदेश का पालन अच्छे से अच्छा कर सकती है। राजनीतिज्ञ किस तरीके से हमें चुनाव लड़ना है, अगर विपक्ष में रहे तो सरकार के ऊपर अंकुश किस प्रकार लगाना कि सरकार आम जनता के हित में निर्णय लें और कार्य करें। आम जनता की बात सुनना, समझना और उन्हें समझना  है। मगर एक व्यवसाई ही ऐसा है जो पूरे संगठन को दूर दृष्टि रखते हुए आगे बढ़ाता है।

कानून चुने हुए प्रतिनिधि पारित करते है। कानून लोक लुभावने लगते हैं नियम अधिकारी बनाते है। सारा कारोबार नियम से चलता है। आप आदमी सोच में है की नीतियां कौन बना रहा है और किस की चल रही है। हमें सोचना पड़ेगा की देश की बागडोर किन लोगों के हाथ में देना चाहिए। देश की नीति समाज के कौन कौन- से घटक के लोग सुचारू रूप से दूर दृष्टि रखते हुए आगे बढ़ा सकते हैं। यही मेरी एक सोच है।
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