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गाजियाबाद :- कोरोना संक्रमण से उबरने के बाद डायबिटीज मरीजों के लिए ब्लैक फंगस (म्यूकर माइकोसिस) बड़ी आफत के रूप में सामने आ रहा है। इस बीमारी की चपेट में आने पर सरकारी अस्पतालों में इलाज की व्यवस्था नहीं है और प्राइवेट में इसका खर्च 20 से 21 लाख रुपये का आ रहा है। जिले में 25 मरीजों का इलाज चल रहा है और एक मरीज की मौत हो गई। इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े अभी तक शून्य हैं।

जिले में ब्लैक फंगस से पीड़ित एक मरीज की इलाज न मिलने से मौत हो गई। नूरनगर सिहानी में रहने वाले पुष्पेंद्र ने बताया कि उनके पिता राजाराम (57) को 24 अप्रैल को बुखार आया था। दो मई को कोरोना की पुष्टि हुई। संजयनगर स्थित कोविड लेवल-2 में भर्ती कराया। उन्होंने आरोप लगाया कि अस्पताल में इलाज में लापरवाही से सांस की दिक्कत होने लगी। इसके बाद वसुंधरा के निजी अस्पताल में भर्ती कराया। जहां उन्हें इलाज के दौरान स्टेरॉयड दिया गया था। धीरे-धीरे उनकी आंखों की पुतलियां टेढ़ी हो गईं। डाक्टरों ने कहा कि ईएनटी सर्जन को दिखाइए। परिजन उन्हें राजनगर ईएनटी अस्पताल में ले गए, लेकिन दवा उपलब्ध नहीं हो पाई। इंजेक्शन लाने के लिए बोला गया। आरोप है कि परिजन प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग के चक्कर काटते रहे, लेकिन कहीं इसकी दवा नहीं मिल सकी। बृहस्पतिवार को राजाराम की इलाज के दौरान मौत हो गई।

21 मरीजों का चल रहा इलाज
अस्पताल के एमडी डॉ. बीपी त्यागी ने बताया कि 5 मरीज ऑपरेशन के बाद घर पहुंच गए हैं और 16 मरीजों का इलाज चल रहा है। तीन मरीज नेहरूनगर स्थित एक प्राइवेट अस्पताल व एक मरीज कविनगर के एक अस्पताल में भर्ती है। इस बीमारी में अगर समय से इलाज नहीं मिला तो 90 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है।

महिलाओं की अपेक्षा में पुरुषों में अधिक परेशानी
डॉ. त्यागी ने बताया कि अब तक जितने मरीजों में म्यूकर माइकोसिस मिला है, सभी डायबिटिक हैं। संक्रमित मरीजों की उम्र भी 40 से 68 के बीच है। 21 मरीजों में सिर्फ तीन महिलाएं हैं। अब तक संक्रमित 99 फीसदी मरीजों में बाईं आंख और नाक संक्रमण की चपेट में आए हैं, जबकि एक महिला की दाईं आंख संक्रमित हुई है। एक सप्ताह में उपचार मिल जाए तो उसके बचने की उम्मीद 70 प्रतिशत होती है, लेकिन इलाज में विलंब हो जाए और संक्रमण दिमाग तक पहुंच जाए तो मौत हो जाती है।

20 से 21 लाख रुपये है इलाज का खर्च
संक्रमित मरीज को 5 एमजी प्रति किग्रा के अनुसार दिया जाता है। 50 किग्रा वाले मरीज को 50 एमजी की तीन खुराक एक दिन में दी जाती है। एक इंजेक्शन 6 हजार रुपये का आता है। मरीज का एक दिन में 30 हजार रुपये का इंजेक्शन लगता है, जबकि अन्य दवाइयां और अस्पताल का खर्च जोड़कर लगभग एक लाख रुपये प्रतिदिन का होता है। उन्होंने बताया कि नेफ्रोटॉक्सिन इंजेक्शन 1750 रुपये का आता है। इस इंजेक्शन का सबसे अधिक साइड इफेक्ट किडनी पर होता है, इसलिए इसके प्रयोग से डाक्टर बचते हैं। एक और इंजेक्शन एनीडुला फंगिन 17 हजार रुपये का आता है, आपरेशन न होने वाले मरीजों में इस इंजेक्शन के प्रयोग से इंफेक्शन रोका जा सकता है। डॉ. त्यागी ने बताया कि मरीजों का खर्च बचाने के लिए कुछ दवाइयों को मिलाकर अलग से प्रयोग कर इलाज कर रहे हैं। इससे मरीजों का एक दिन का इंजेक्शन का खर्च 2500 रुपये में हो जाता है। उन्होंने बताया कि जो मरीज पैसे खर्च नहीं कर सकते हैं, उनकी मदद के लिए कुछ संस्थाओं की सहायता ली जा रही है।

सरकारी मदद में मेरठ जाकर लेनी होगी इंजेक्शन लेने की अनुमति
अगर मरीज में ब्लैक फंगस की पुष्टि होती है तो उसे डाक्टर के पर्चे पर सीएमओ से संस्तुति कराने के बाद मेरठ जाकर अपर निदेशक स्वास्थ्य या मंडलायुक्त से इंजेक्शन लेने की अनुमति लेनी होगी, इसके बाद लाइपोसोमल इंजेक्शन 6 हजार रुपये (बाजार में 16000 रुपये) और इमल्सन 1500 रुपये (तीन हजार) में मिलेगा। एम्फोटेरेसीन-बी इंजेक्शन सिर्फ महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं की अनुमति पर सरकारी अस्पताल एवं मेडिकल कॉलेज को मिलेगी।

अभी तक सरकारी स्तर पर एक भी मरीज नहीं आया है। अगर कोई मरीज आता है तो उसे रामा मेडिकल कॉलेज या संतोष अस्पताल में भर्ती कराया जाएगा। इंजेक्शन की मांग शासन से की गई है। किसी मरीज के मौत के बारे में जानकारी नहीं है।
डॉ. एनके गुप्ता, सीएमओ
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