रिपोर्ट :- सोबरन सिंह


गाजियाबाद :- चुनाव के दौरान अपने क्षेत्र की जनता की जी भर कर सेवा करने एवं उनके हर सुख दुख में हरदम साए की तरह खड़े होने का दम भरने वाले जनप्रतिनिधियों ने उसी जनता को चुनाव जीतने के बाद लावारिस सा छोड़ दिया। मदद करना तो दूर  सीधे मुंह कोई बात करने को राजी नहीं है।सत्ताधारी प्रतिनिधियों की ऐसी लाचारी इससे पहले कभी नही देखी। सरकार पर तोहमत लगाने वाली आम जनता को सबसे पहले अपने प्रतिनिधि की कार्यशैली पर गौर करना चाहिए। क्योंकि हर जगह मुख्यमंत्री ही नहीं जा सकते। जनता द्वारा चुने गए नुमाइंदे ही सच्चे सेवक होते हैं लेकिन कोरोना काल में लोग बिना अस्पताल बेड, ऑक्सीजन के दम तोड़ रहे हैं। जिन्हें जिताकर सदन में भेजा उनसे अपनों के प्राणों की भीख मांग रहे लेकिन जनप्रतिनिधि ऐसे नदारद है जैसे गधा के सिर से सीग गायब है। सत्ता के गलियारों में बैठे शासक अपने नुमाइंदों को लोगों की समस्या हल करने के आदेश दे रहे जबकि सांसद विधायक मंत्री नेता घरों में दुबके बैठे हैं। क्या इसीलिए जनता ने चुन कर भेजा था कि परेशानी आने पर वह मुंह मोड़ ले।

 बता दें कि गाजियाबाद में भाजपा के सांसद पांच विधायक राज्यसभा सांसद एमएलसी महापौर दर्जनों पार्षद एक विधायक स्वास्थ्य मंत्री सपा के एमएलसी बाबजूद इसके टूटती सांसों की डोर को कोई रोकने वाला नहीं। सत्ताधारी नेताओं की फौज उनके अलग-अलग प्रतिनिधि जो बात बात पर शान से कालर खड़े कर रौब झाड़ते हैं। मगर बेड ऑक्सीजन ना मिलने पर दम तोड़ रहे लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। जिन्होंने अपनों को खोया वहीं अब डबडबाई आंखों से पूछ रहे हैं कि क्या इसीलिए चुनकर भेजा था। जब से बीमारी ने अपना विकराल रूप दिखाया है किसी भी जनप्रतिनिधि ने बाहर निकल कर किसी अस्पताल का निरीक्षण नहीं किया कि वास्तव में वहां बेड है या नहीं है, नहीं है तो क्या इंतजाम किया जा सकता है। 

अपनों को खो चुके लोगों का कहना है कि सांसद विधायक यदि घर से निकलकर पीड़ितों की मदद के लिए अस्पतालों का निरीक्षण करते और लोगों की मदद करते तो शायद इतने लोगों की जान नही जाती विधायक सांसद मंत्री यदि अपनी जेब से कुछ खर्च नहीं कर सकते तो कम से कम क्षेत्र के विकास शिक्षा चिकित्सा पर मिलने वाली निधि का कुछ हिस्सा पीड़ितों की मदद में खर्च करते तो शायद इतनी किरकिरी ना होती। लेकिन घर से निकलना तो दूर सरकार से जनहित में मिलने वाली धनराशि को भी दवाए बैठे हैं। भला हो विधायक अजीत पाल त्यागी का जिन्होंने अपनी निधि से 50 लाख खर्च करने की घोषणा तो की। कुल मिलाकर तिल तिल कर मर रही जनता आने वाले चुनाव में सबक जरूर सिखाएगी मौजूदा वक्त में जो दुख जनता सहन कर रही है उसका बड़ा खामियाजा जनप्रतिनिधियों को खासकर भाजपा को झेलना पड़ सकता है।
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