रिपोर्ट :- नासिर खान


प्रयागराज :- इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा लिव-इन में रहे जोड़े को सुरक्षा देने से इंकार करने का बड़ा मामला सामने आया है। हाईकोर्ट ने मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर इस तरह से लिव इन रिलेशनशिप में रहने वालों को साथ रहने और सुरक्षा देने की अनुमति दे दी जाएगी तो इससे पूरा सामाजिक ताना-बाना ही बिगड़ जाएगा, इसलिए संरक्षण देने का कोई आधार नहीं बनता। कोर्ट ने प्रेमी युगल की सुरक्षा देने की मांग की याचिका को खारिज करते दोनों पर 5 हजार रुपये का अर्थदंड भी लगाया।

न्यायमूर्ति डॉ. कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति दिनेश पाठक की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि “दोनों याची वयस्क हैं, तो क्या हम इन लोगों को सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं, जो ऐसा करना चाहते हैं जिसे हिंदू विवाह अधिनियम के जनादेश के खिलाफ कहा जा सकता है।" 

प्रेमी जोड़े को सुरक्षा देने से हाईकोर्ट ने किया इनकार
बता दें कि घर से भागे हुए जोड़े में लड़की पहले से ही शादीशुदा है। जिसके चलते याचिका में यह मांग की गयी थी कि कोर्ट यह आदेश जारी करें कि याची के शांतिपूर्ण लिव-इन-रिलेशन में हस्तक्षेप न किया जाए और पुलिस जबरदस्ती परेशान न करे। इसके अलावा पुलिस की सुरक्षा मुहैया कराई जाए। महिला याची ने कहा था कि वह प्रतिवादी संख्या 5 की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है और उसने कुछ कारणों से अपने पति से दूर जाने का फैसला किया है।

कोर्ट ने खारीज की अर्जी 
इस पर कोर्ट ने कहा कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 किसी व्यक्ति को अपनी स्वतंत्रता की अनुमति देता है, लेकिन स्वतंत्रता उस कानून के दायरे में होनी चाहिए जहां वो लागू होती है। पीठ ने कहा कि क्या हम इन्हें जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की आड़ में लिव-इन-रिलेशन की अनुमति दे सकते हैं। क्या उसके पति ने ऐसा कृत्य किया था, जिसे धारा 377 आईपीसी के तहत अपराध कहा जा सकता है, जिसके लिए उसने कभी शिकायत नहीं की है। ये सभी तथ्यों के विवादित प्रश्न हैं।

पीठ ने कहा कि मामले में कोई प्राथमिकी भी नहीं है इसलिए, हम यह समझने में विफल हैं कि इस तरह की याचिका से समाज में अवैधता की अनुमति कैसे दी जा सकती है। ऐसे में रिट याचिका को 5 हजार के अर्थदंड के साथ खारिज किया जाता है।
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