◼️ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे।  विनम्र श्रद्धांजलि।


सुशील शर्मा 
मेरे अभिन्न मित्र रहे  तथा 1981 से 1995 तक दै.  हिन्दुस्तान के संवाददाता रहे विधान चन्द्र  गर्ग ( सर्राफ) से मिले मुझे लगभग तीन वर्ष से अधिक समय हो गया।आज  मेरे मित्र वरिष्ठ पत्रकार  अशोक निर्वाण ने मुझे सूचित किया है कि वह नहीं रहे । मेरा उनके पिता के समय से बहुत लम्बा साथ रहा है। मेरे लिए उनका निधन व्यक्तिगत क्षति है। उल्लेखनीय है इस परिवार की तीन पीढी लगातार 7 दशक  तक पत्रकारिता से जुडी रही हैं।   विधान जी के  पिता स्व.  चन्द्र भान गर्ग (1907-1981) इस महानगर के पहले  पत्रकार थे ।जो 1936 में दै.  हिन्दुस्तान,  नवभारत टाइम्स के अलावा उर्दू के मिलाप,  प्रताप और तेज के भी पहले  संवाददाता रहे थे। वह स्वतंत्रता आन्दोलन में 1932 से 1942 तक वह कई बार जेल में बंद रहे। जेल में चक्की पीसना व खाट के बान बटने का काम उनसे  लिया गया। उनके पैरों में बेडियाँ पडी होती थीं। वह सर्राफा एसो. के अध्यक्ष के अलावा श्रीकृष्ण गौशाला व वैश्य सभा के भी महामंत्री रहे। 

मुझे सौभाग्य प्राप्त है कि 1976 में गाजियाबाद जिला बनने से पूर्व से उनके  निधन तक गाजियाबाद पत्रकार संघ के वह अध्यक्ष  और मैं महामंत्री रहा । हम दोनों का उस समय विजिटिंग कार्ड भी एक होता था। मेरठ मंडल के वरिष्ठ पत्रकारों के अनेक सम्मेलनों में उनके  साथ पत्रकारों से मिलने का मुझे सौभाग्य मिला। उनके निधन  के बाद  उनके  पुत्र विधान चन्द्र गर्ग(84 वर्ष ) 1981 से 1995 तक दै.  हिन्दुस्तान के संवाददाता रहे । वह भी सर्राफा एसो.  के अध्यक्ष रहे हैं। विधान चन्द्र  गर्ग  के प्रतिभावान एक मात्र पुत्र स्व.  संदीप गर्ग (1966-2012) का निधन भी अल्पायु में हो गया था। वह एमएससी(आर्गेनिक कैमिस्ट्री) थे।वह भी सर्राफा एसो.  के  अध्यक्ष  रहे ।वह भी भारी मत से चुनाव जीत कर। परिवार की यह तीसरी पीढी भी पत्रकार रही।अपने अन्त समय वह दै.  पंजाब केसरी के ब्यूरो चीफ थे।

संदीप ने गाजियाबाद का पेज खुद बनाकर भेजने की शुरूआत की थी।संदीप के पुत्र कुशाग्र अपनी  उच्च  शिक्षा के साथ अपने बाबा के साथ सर्राफा  व्यवसाय में मदद करते  थे।विधान चन्द्र गर्ग की लैब का बना सोने का पावडर मार्किट में  प्रसिद्ध है। उल्लेखनीय है चन्द्र  भान गर्ग जी के पिता श्री दुर्गा प्रसाद 'सलिल' श्रीसुल्लामल  रामलीला की रामायण के रचियता थे।बताया जाता है श्री सुल्लामल जी  दृष्टीहीन थे अत: उन्होंने  बोलकर उनसे  लिखवायी। उन्होंने  सर्राफा  पर 'आईना  ए इल्मो हुनर सर्राफा' पुस्तक भी लिखी थी।
 
इस परिवार की एक और शख्सियत  चन्द्र  भान गर्ग  जी के छोटे भाई सूरज भान गर्ग (1925 से 1983) थे। वह अपने  जमाने में  दै.  हिन्दस्तान टाइम्स  सहित सात अंग्रेज़ी  अखबारों  के संवाददाता रहे। 1947 में विभाजन के समय दंगे  भडकने  के समय उनकी गढगंगा मेले की  रिपोर्टिंग पर उस समय अखबार के सम्पादक देवदास गांधी( महात्मा गांधी के पुत्र) ने उन्हें  50रू.  का पुरस्कार दिया था। सूरज भान गर्ग   'अग्रसेन धर्मशाला' के भी संस्थापकों में थे। स्व.  आशा राम पंसारी को साथ लेकर उन्होंने  ही इसकी स्थापना  की थी। वह जीवन पर्यन्त  श्री सुल्लामल रामलीला कमेटी  के उस्ताद और महामंत्री रहे ।उस समय  वैश्य वर्ग के वह एक मात्र दबंग नेता थे। उस समय शहर में लोकल गुंडागर्दी चर्म पर थी पर किसी बदमाश  की उनका  सामना करने  की हिम्मत नहीं होती थी।

पत्रकारिता के पुरोधा रहे चन्द्र भान गर्ग के इस यशस्वी  पुत्र विधान चन्द्र गर्ग के निधन से इस महानगर की पत्रकारिता को जो क्षति पहुंची है उसकी भरपाई असम्भव है। अपनी निडरता और साफगोई के कारण ही उन्हें दैनिक हिन्दुस्तान से लगभग 15 वर्ष की सेवा के बाद हटना पड़ा था। उसके बाद उनके यशस्वी पुत्र सन्दीप गर्ग ने पत्रकारिता का परचम कायम रखा। लेकिन दुर्भाग्यवश उसका अल्प आयु में ही निधन हो गया था। पुत्र के निधन के बाद से उन्होंनेअपने पौत्र और पौत्री को उच्च शिक्षा दिलाती। मेरा इस परिवार की तीन पीढ़ियों से दिल का नाता रहा है। विधान चन्द्र गर्ग जी को नमन है।
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