रिपोर्ट :- अजय रावत

गाज़ियाबाद :- लोक शिक्षण अभियान ट्रस्ट द्वारा संचालित पंडित महा, मना, मदन मोहन मालवीय निशुल्क पुस्तकालय, वाचनालय 5/65 वैशाली, जनपद गाजियाबाद के प्रांगण में विलक्षण प्रतिभावान, बेजोड़ लेखक, पाखंड, परम्पराओं तथा रूढ़िवाद के घोर विरोधी मुंशी प्रेमचंद का जन्म दिवस समारोह “वर्तमान समय में प्रेमचंद की प्रासंगिकता” विषय पर आयोजित किया गया, संस्था के संस्थापक/अध्यक्ष राम दुलार यादव मुख्य वक्ता के रूप में शामिल रहे, अध्यक्षता महिला उत्थान संस्था की राष्ट्रीय अध्यक्ष बिन्दू राय ने, आयोजन, संचालन गणमान्य विद्वान चक्रधारी दूबे ने किया| कार्यक्रम में प्रसिद्ध साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें स्मरण किया गया, तथा समाज में व्याप्त शोषण, अन्याय, रूढ़िवाद और पाखंड का अनवरत विरोध करने का संकल्प लिया गया। उन्होंने अपनी लेखनी से जो प्रेरणा दी है उनके विचार पर चलने का संकल्प लिया गया|
       
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए समाजवादी चिंतक, शिक्षाविद रामदुलार यादव ने कहा कि कठिन परिस्थितियों में मुंशी प्रेमचंद्र ने शिक्षा प्राप्त कर लेखन का कार्य 13 वर्ष की अवस्था में ही शुरू कर दिया था, कहा जाता है कि साहित्य, समाज का दर्पण है। मुंशी प्रेमचंद ने अपने जीवन काल में समाज में जो घटित हो रहा था, उसका ही चित्रण किया है। वह हर तरह के शोषण, अन्याय, अत्याचार को समाज का कोढ मानते थे, दलितों, किसानों, मजदूरों, महिलाओं के साथ हो रहे शोषण को तथा सूदखोरों, सामंतों द्वारा समाज के कमजोर वर्गों का आर्थिक शोषण, सूद पर सूद की व्यवस्था के घोर विरोधी अपनी कहानियों और उपन्यासों में स्थान दिया, उनका काल भारत में स्वतंत्रता आंदोलन का काल रहा है, उस समय जमींदारों द्वारा किसानों पर अत्याचार, अनाचार, वह गरीबी में अपने प्राण भी त्याग देता था, आज भी किसानों, मजदूरों के साथ उसी तरह का शोषण और अन्याय हो रहा है, पूरे देश में किसान आत्महत्या कर रहा है, उसे न उचित मूल्य फसल का मिल रहा है न सम्मान, 21वीं सदी में भी प्रेमचंद जी द्वारा जो लिखा गया वह आज भी समाज में रूढ़िवाद, पाखंड, भ्रम, शोषण, असमानता, जातिवादी वर्चस्व के रूप में विद्यमान है, इस व्यवस्था को बदलने की आवश्यकता है, तभी अंतिम पायदान पर जीवन यापन करने वाला व्यक्ति गौरवान्वित महसूस करेगा। लेकिन वर्तमान में हम मुंशी प्रेमचंद के विचार का भारत नहीं बना पाये

विद्वान, चक्रधारी दूबे ने कहा कि शोषित, पीड़ित, दलित के कष्ट से द्रवित हो उन्होंने उनको अपनी कहानियों, उपन्यासों में स्थान दिया, उन्होंने 300 के करीब कहानी और 12 उपन्यास लिखे, उन्होंने नाटक भी लिखा, वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित हो नौकरी छोड़ दी, अनेकों कष्ट झेले कभी हार नहीं मानी, उन्होंने कहा है कि “मैं भी एक मजदूर हूं जब तक न लिखूं हमें रोटी खाने का अधिकार नहीं”, समाज को संदेश दिया कि जो हमें काम मिला है, हम उसे कठिन परिश्रम करके संपन्न करें| हम प्रेमचंद को स्मरण करते हैं गर्व है|
       
महिला उत्थान संस्था की राष्ट्रीय अध्यक्ष बिन्दू राय ने कहा कि “मुंशी प्रेमचंद बाल विवाह के घोर विरोधी, विधवा विवाह के समर्थक थे, उन्होंने महिलाओं के शोषण के विरुद्ध रुढ़िवादी समाज को ललकारा तथा उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने के अधिकार मिले, अपनी लेखनी का आधार बनाया| मठाधीशों, सामंतों, शोषकों के विरुद्ध समाज को जागरूक किया, मुंशी प्रेमचंद 21वी सदी में भी प्रासंगिक हैं।
        
कार्यक्रम में शामिल रहे, रामदुलार यादव, चक्रधारी दुबे, बिंदु राय, फराह,  सोनित सोम, प्रज्ञान, अंकुश, प्रतिमा, ऋचा, प्रिया, अमर बहादुर आदि ने  चित्र पर मुंशी प्रेमचन्द के पुष्प अर्पित किया।
Previous Post Next Post