रिपोर्ट :- अजय रावत

गाज़ियाबाद :- यद्यपि प्रत्येक मास की चतुर्थी को गणेश अथवा विनायक चतुर्थी कहते हैं। लेकिन भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी का विशेष महत्व है। गणेश चतुर्थी विशेष रूप से भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मनाई जाती है। 

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
इतिहास के पन्नों में विवरण है कि छत्रपति महाराज शिवाजी ने 1630 के पश्चात 1680 के बीच मराठा साम्राज्य को सुदृढ़ करने के लिए और जनमानस में गणेश जी को विघ्न विनाशक मानते हुए इस पर्व के आयोजन आरंभ कराया था। किंतु यह आयोजन महाराष्ट्र में केवल घरों में ही सीमित था। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इस गणेश चतुर्थी को गणेशोत्सव के माध्यम से सामूहिक आयोजनों का आरंभ किया था। क्योंकि अंग्रेज सरकार ने उनके भाषणों पर प्रतिबंध लगा दिया था ।इसलिए इन धार्मिक आयोजनों के माध्यम से और जनता को अंग्रेजों के विरुद्ध संगठित होने के लिए  उनके अंदर देशभक्ति व धर्म के प्रति आस्था को बढ़ाने के  लिए किया गया। यह आयोजन हमारे घरों से निकल कर सामूहिक आयोजनों के रूप में मनाया जाएगा। जिससे लोगों के अन्दर धर्म के प्रति आस्था राष्ट्रभक्ति का जागरण हो। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् गणेश उत्सव का प्रचार उत्तर भारत में भी तेजी से बढा।

किस प्रकार करें गणेश विराजमान
31 अगस्त को गणेश चतुर्थी गणेश महोत्सव के रूप में मनाई जाएगी। हिंदू समाज में मिट्टी के बने गणेश जी का आह्वान करके उनकी प्रतिमा को लाते हैं और विधिवत घर में पूजा ,आरती, भोग आदि की व्यवस्था करते हैं। गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश का आगमन या विराजमान करना और अनंत चतुर्दशी को गणेश का विसर्जन करने का महत्व है। किंतु कुछ लोग थोड़े समय के लिए ही गणेश जी अपने घरों में विराजमान करते हैं।
 कोई 3 दिन, कोई 5 दिन, कोई 7 दिन ।
इसी प्रकार से इनको विराजमान करना चाहिए। 

गणेश जी विराजमान के लिए कुछ नियम
गणेश जी को संकल्प पूर्वक अपने घर में आने के लिए निमंत्रण दे।
उन्हें श्रद्धा भाव से लेकर आए ,घर आने पर उनका स्वागत करें।
 
फूलों से उनका स्वागत करें ।
 विशेष स्थान पर उनका विराजमान करें। धूप, दीप, नैवेद्य, आरती आदि से उनकी पूजा करें।
उसके पश्चात प्रतिदिन सुबह शाम की आरती, भोग ,प्रसाद की व्यवस्था करें । जितने दिनों के लिए आप गणेश जी को लाए हैं, उसके बाद उन्हें  विशेष आयोजनों के द्वारा उन्हें नदी, तालाब आदि ने विसर्जित कर दें।
किंतु आज प्रदूषण को देखते हुए सरकार गणेश विसर्जन का विशेष स्थानों पर व्यवस्था करती है ।उसी के अनुकूल आप गणेश जी का विसर्जन करें। घर से मंगल गान गाते हुए पुष्प वर्षा करते हुए भगवान को आदर पूर्वक विदा करें और अगले साल आने के लिए पुनः कहें।

भारतीय संस्कृति में गणेश जी का विसर्जन करना उचित नहीं है
यद्यपि यह सब लोग विसर्जन करते हैं, लेकिन यह परंपरा उचित नहीं है। गणेश जी को लाने के पश्चात उनको स्थाई रूप से घर में निवास करना कराना चाहिए। क्योंकि वह तो हमेशा घर में ही विराजित रहते हैं। जैसा कि किसी भी हवन ,पूजन आदि के बाद पंडित जी यह कहते हैं कि लक्ष्मी गणेश जी हमारे यहां सदैव विराजमान रहे। इसलिए गणेश जी के विसर्जन का औचित्य नहीं बनता।इसलिए जो भी आपके उचित लगे करें। किंतु भगवान लक्ष्मी गणेश जी तो हमारे घरों में नित्य ही विराजित रहते हैं।

गणेश स्थापना के शुभ मुहूर्त
इस वर्ष 31अगस्त को यद्यपि अच्छा योग नहीं बन रहा है।
 किंतु 12:00 बजे के पश्चात में आप गणेश जी को अपने घरों में विराजित करें।
क्योंकि यह प्रचलन भगवान को विराजित करने  और विसर्जन करने का है। 
इसलिए चर लग्न का मुहूर्त श्रेष्ठ माना है। घर में लक्ष्मी गणेश तो पहले से ही स्थाई रूप से विराजित होते हैं।
31 अगस्त को चर लग्न ( मकर लग्न )शाम 14:10 बजे से 16:56 बजे तक रहेगा। उसके पश्चात शाम 20:50 से 22:25 बजे तक भी मेष लग्न (चर लग्न) है। उसमें भी आप इनकी स्थापना या विराजमान कर सकते हैं।
जो व्यक्ति अपने घर में  गणेश जी विराजमान हो। उस समयावधि में अपने घर में सात्विक वातावरण, नियम ,संयम का पालन अवश्य होना चाहिए। 
मांसाहार ,असत्य भाषण ,काम ,क्रोध लोभ से बचना चाहिए।
 वाणी पर नियंत्रण रखें।
 किसी को अभद्र भाषा का प्रयोग ना करें।
  नियमित रूप से भगवान जी के दर्शन, पूजन व आरती का आयोजन करते रहे ।
सामूहिक कीर्तन भी करा सकते हैं।
*ओम् गं गणपतये नमः।*
*ओम् विघ्नविनाशकाय नमः*।
 *ओम् ऋद्धिसिद्धि पतये नमः*।
इन विशेष मंत्रों का जाप नियमित करते रहे। भगवान को मोदक अर्थात लड्डू प्रिय हैं ।इसलिए रोजाना उनको मोदक का प्रसाद का भोग लगाएं।
इस प्रकार किए गए गणपति विराजमान से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

पंडित शिवकुमार शर्मा ,आध्यात्मिक गुरु एवं ज्योतिषाचार्य 
अध्यक्ष- शिवशंकर ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र, गाजियाबाद
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