रिपोर्ट :- अजय रावत

गाजियाबाद :- बीके शर्मा हनुमान ने बताया कि गुरु शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ शिक्षक, एक्सपर्ट और मार्गदर्शक होता है। शिक्षक को मुख्य तौर पर मार्गदर्शक इसलिए कहा जाता है क्योंकि एक शिक्षक ही होते हैं जो अपने ज्ञान का सारा भंडार अपने छात्रों को दे देते हैं। वह छात्रों को उनके भविष्य के लिए तैयार करते हैं। विश्व शिक्षक दिवस हर वर्ष 5 अक्टूबर को 1994 से मनाया जा रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर भारत में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है। इस दिन भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। उनके जन्म दिवस को भारत शिक्षक दिवस के रूप में हर वर्ष मनाया जाता है।                                   

बीके शर्मा हनुमान ने यह भी बताया कि सम और विषम परिस्थितियों का सामना मनुष्य ही नहीं, बल्कि भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम और योगेश्वर श्रीकृष्ण तक को मनुष्य रूप में जन्म लेने पर करना पड़ा था। अयोध्या के महल में सम परिस्थितियां थी, पर केकई के चलते 14 वर्ष का वनवास विषम परिस्थितियों में बदल गया, फिर भी श्रीराम ने मर्यादा का भाव बनाए रखा। बाल्यकाल में विद्याध्ययन के दौरान गुरु वशिष्ठ ने श्रीराम को बहुमुखी ज्ञान, लोकाचार और अंतर्मन में व्याप्त शक्तियों की जानकारियां दी थी। साथ ही उन्हें आदर्श जीवन के मानदंडों से भी अवगत कराया था। भगवान श्री राम ने वनवास के दौरान जगह-जगह ज्ञान का ही प्रसार किया। बाली और रावण का वध किया, फिर भी उन्हें सद्ज्ञान ही दिया। श्री राम का लक्ष्मण, सीता, हनुमान, विभीषण आदि को दिए गए ज्ञान को विद्या की पाठशाला भी मानना चाहिए। 

इसी परिप्रेक्ष्य में द्वापरयुग में श्री कृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान सम विषम परिस्थितियों में अर्जुन के मन को सशक्त बनाने का भरपूर ज्ञान दिया, जिसके चलते महासंग्राम के मैदान में अर्जुन का पलायन रुक गया। जन्म के बाद बच्चे को विद्याध्ययन के साथ अंतजरगत की शक्तियों का पता बताने वाला शिक्षक होता है। शिक्षा शिक्ष धातु और अ प्रत्यय से बना है, जिसका अर्थ सीखना और सिखाना होता है। अर्जुन सामान्य परिवार के नहीं थे। विद्याध्ययन की दृष्टि से योग्य भी थे, किंतु विषम परिस्थितियां आने पर विचलित होने लगे। इसी विचलन को रोकने का काम मनुष्य के जीवन में योग्य शिक्षक करता है। 

जीवन में भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति और उसके निमित्त होने वाली परीक्षा उत्तीण कराने की दृष्टि से शिक्षा देने वाला शिक्षक है, लेकिन यह अधूरा शिक्षक है। अर्थात शिक्षक का दायित्व है कि पल भर के लिए भी शिष्य सानिध्य में आए तो खुद के अपने सत् चरण का प्रत्यारोपण शिष्य में कर दे।
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