रिपोर्ट :- संजय चौहान

उत्तराखण्ड/हरिद्वार :- आज यानी 13 अक्टूबर को देश भर में करवाचौथ का त्योहार मनाया गया। करवाचौथ पर सुहागिन महिलाएं अपनी पति की दीर्घायु की कामना की और चांद ‌निकलने के बाद छल्नी में पहले चांद को देखने के बाद फिर पति को देखकर व्रत पूर्ण किया। करवाचौथ के इस व्रत को करक चतुर्थी, दशरथ चतुर्थी, संकष्टि चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन करवा माता के साथ मां पार्वती, भगवान शिव और गणेश जी की पूजा करने का भी विधान है। करवा चौथ सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास पर्व है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए करवा माता की पूजा अर्चना पूरी श्रद्धा भाव से करती हैं। ऐसी मान्यता हैं, कि करवा माता प्रसन्न होकर पति की दीर्घायु करती है। 

आपको बता दें करवा चौथ इस बार रोहिणी नक्षत्र में पूजा गया। शास्त्र के अनुसार रोहिणी नक्षत्र यानी रविवार का दिन सूर्य देवता का दिन होता है और यह व्रत करने से महिलाओं को सूर्य देवता का भी आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इस दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रख कर चांद देखने के बाद अपने अपने व्रत पूर्ण किए। करवाचौथ व्रत को लेकर गुरुवार को महिलाएं खासी उत्साहित दिखीं। सुबह से महिलाएं व्रत के विधि-विधान में जुटती दिखी। व्रत करने वालीं महिलाओं ने ब्रह्म मुहूर्त में स्नान-ध्यान के बाद व्रत की तैयारियां शुरू की। करवाचौथ व्रत के लिए महिलाओं ने ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर सास या जेठानी के जरिए दी सरगी का सेवन किया। सूर्योदय से पूर्व ही सरगी का सेवन किया जाता है। जिसके बाद निर्जल व्रत का संकल्प लिया। दिनभर में पूजा की पूरी तैयारी की गयी। 

करवाचौथ व्रत में दिन में सोना वर्जित है। इसलिए ऐसे में अपना पूरा समय भगवान की भक्ति व ध्यान में महिलाओं ने लगाने का काम किया। मंदिरों में जाकर भगवान की पूजा-अर्चना भी की। शाम को सोलह श्रृंगार कर शुभ मुहूर्त में पूरे विधि विधान से शिव परिवार और करवा माता की पूजा कर व्रत की कथा का श्रवण व पाठ भी किया। चंद्रोदय के समय उत्तर पश्चिम दिशा में मुख कर चंद्रमा की पूजा की। करवे से अर्घ्य देकर और फिर छलनी से चांद को देखने के बाद पति का चेहरा देखते हुए व्रत की रश्म को अदा किया।
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