रिपोर्ट :- अजय रावत

गाज़ियाबाद :- भारतीय सांस्कृतिक पर्व विक्रम संवत अर्थात भारतीय पंचांग में वर्णित चंद्रमास के अनुसार मनाए जाते हैं। जिनमें मुख्य रूप से होली, दीपावली, दशहरा  ,रक्षाबंधन  जन्माष्टमी ,नवरात्र ,पितृपक्ष आदि त्यौहार होते हैं। 
लेकिन वैवाहिक कार्य अथवा भूमि भवन से संबंधित कार्य नींव पूजन ,गृह प्रवेश आदि सौर सक्रांति के अनुसार होते हैं।
हिंदी महीने कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से और पूर्णिमा तक चंद्रमा की कलाओं के अनुसार होते हैं।

हिंदी महीने 12 इस प्रकार हैं :

चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ ,आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद ,आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष ,पौष, माघ, फाल्गुन

सौर मास भी दो प्रकार की गणनाओं पर आधारित है है। निरयण और सायन। निरयण गणना के अनुसार संक्रांति  अंग्रेजी मास की  प्रत्येक चौदह या पंद्रह तारीख से आरंभ होती है। भारतवर्ष के पंचांगों में अधिकतर निरयण सक्रांति का प्रयोग किया जाता है। निरयण सक्रांति के अनुसार ही वैवाहिक  मुहूर्तों का निर्णय होता है। भारतीय समाज में लोकाचार के अनुसार चैत्र एवं पौष मास को खर अथवा मल मास माना जाता है। क्योंकि जब सूर्य बृहस्पति की राशि मीन और धनु में होते हैं तो उसमें वैवाहिक कार्य करना निषेध है।
किंतु समाज में व्याप्त भ्रांतियां हैं कि पौष के महीने में शादी नही करनी चाहिए।

जिस प्रकार इस बार पौष मास की सक्रांति 16 दिसंबर से 13 जनवरी तक रहेगी। इसमें सूर्य धनु संक्रांति में रहेंगे। इस समयावधि में ही खर अथवा मलमास माना जाएगा। मीन की संक्रांति  चैत्र मास 14 मार्च से 13 अप्रैल तक होती है।
मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा 8 दिसबर को है। चंद्रमास की गणना के अनुसार 9 दिसंबर से पौष माह का प्रारंभ होगा। जबकि वैवाहिक मुहूर्त उसके पश्चात भी हैं। यह वैवाहिक मुहूर्त इसलिए हैं क्योंकि सक्रांति के अनुसार मल मास 16 दिसंबर से लगेगा। इसलिए हमें ध्यान रखना पड़ेगा कि सौर सक्रांति के अनुसार ही वैवाहिक मुहूर्त दिए जाते हैं ना कि चन्द्र मास के अनुसार।

आचार्य शिव कुमार शर्मा ,
आध्यात्मिक गुरु एवं ज्योतिषाचार्य, गाजियाबाद
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