रिपोर्ट :- वेद प्रकाश चौहान

उत्तराखण्ड/हरिद्वार :- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी ने कहा कि भारतीय शिक्षा का मूल अध्यात्म रहा है। हमारे सभी प्राचीन ग्रंथ इसी बात का संदेश देते हैं। प्रौद्योगिकी एक सीमा पर जाकर समाप्त हो जाती है, जबकि अध्यात्म की कोई सीमा नहीं है।

सोमवार को विद्या भारती उत्तराखंड की ओर से सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज मायापुर में प्रौद्योगिक एवं आध्यात्म द्वारा सशक्तीकृत शिक्षा पर आयोजित विशेष व्याख्यान में मुख्य अतिथि सुरेश सोनी ने कहा कि मानव समाज की आज की समस्याओं का हल करना और मानव कल्याण के लिए कोई परिस्थिति उत्पन्न करनी है तो प्रौद्योगिक और आध्यात्म दोनों को एक साथ व्यवहार में लाने की प्रक्रिया शुरू करनी होगी। उन्होंने कहा कि भारत की आजादी के समय देश में 17 विश्वविद्यालय थे। जिनकी संख्या बढ़कर आज 1000 हो गई है। शिक्षा का विस्तार तेजी से हो रहा है, तो समस्याओं का विस्तार भी तेजी से हो रहा है। विकसित देशों में हिंसक और सामाजिक पतन की घटनाएं सामने आ रही है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि शिक्षा के अंदर यदि आध्यात्मिक नहीं है तो वह जीवन निर्वाह के साधन के अतिरिक्त कुछ नहीं है। हमें एक दूसरे से संस्कृति के आदान-प्रदान का नया स्वरूप बनाना होगा, ताकि भारतीय संस्कृति और उसके मूल्यों को पूरी दुनिया में पहुंचाया जा सके। विशिष्ट अतिथि भारतीय शिक्षा समिति के राष्ट्रीय मंत्री शिव कुमार ने विचार रखे।संचालन अभिषेक ने किया। अतिथियों का परिचय विद्या भारती के प्रान्त निरीक्षक डॉ. विजयपाल तथा स्वागत भारतीय शिक्षा समिति के प्रांत मंत्री डॉ रजनीकांत शुक्ला ने किया। 

इस अवसर पर सरस्वती विद्या मन्दिर के प्रबंधक जयपाल, पृथ्वीकुल कॉन्क्लेव राष्ट्रीय सयोंजक सुनीत, आरएसएस के क्षेत्र प्रचारक महेंद्र, क्षेत्र प्रचार प्रमुख पदम्, विद्या भारती के प्रांत संगठन मंत्री भुवन चंद, विभाग प्रचारक चिरंजीवी, पतंजलि आयुवेदिक विवि के प्रति कुलप्रति प्रो.महावीर अग्रवाल, संस्कृत विवि के कुलप्रति प्रो.दिनेश चंद्र शास्त्री, गुरुकुल कांगड़ी विवि के कुलप्रति प्रो.सोमदेव शतांश, ईश्वर भारद्वाज आदि मौजूद थे।
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