◼️क्या उत्तरी हरिद्वार का एक संत व नाटू काका भी इस मामले में उक्त महंत का नाम हटवाने की सेटिंग,गेटिंग में थे शामिल ?

◼️चर्चाः उक्त महंत उस दौरान विदेश की यात्रा पर भी चला गया था ? 

◼️क्या पूर्व एसएसपी की इस मामले में निष्पक्षता व कडाई से की जा रही कार्रवाई के चलते ही किया गया था ट्रांसफर ?



वेद प्रकाश चौहान

उत्तराखण्ड/हरिद्वार :- आशीष शर्मा उर्फ टुल्ली को भले ही कोर्ट ने महानिर्वाणी अखाड़ा महंत सुधीर गिरि हत्याकांड में आजीवन कारावास करार दे दिया गया हो। लेकिन इसी हत्या कांड में एक सवाल जो स्थानीय लोगो के जहन में है कि आखिर टुल्ली ने सर इल्जाम अपने ऊपर लेकर उक्त महंत को क्यूं बचाया होगा ? सवाल यह भी है कि क्या टुल्ली इधर मुंह खोलता तो उधर उक्त महंत पर भी हो सकती कानूनी कार्रवाई ? और सबसे बडी चर्चा जो है वह यह है कि क्या महंत ने अपना नाम केस में न खोले जाने को लेकर टुल्ली से कोई समझौता किया था ? यह सवाल इसलिए भी उठ रहे कि टुल्ली महंत का सबसे खास और करीबी माना जाता था। 

सुधीर गिरी महंत हत्याकांड के बाद भले ही अखाड़े से प्रत्यक्ष रूप में टुल्ली से कोई वास्ता न हो परन्तु टुल्ली के रिशतेदार आज भी उक्त महंत के खासमखास माने जाते हैं और चर्चा शहर भर में जोरों पर है कि कहीं न कहीं सुधीर गिरि से उक्त महंत भी परेशान था। क्योंकि अखाड़े की जमीनी उक्त महंत और टुल्ली दोनों मिलकर खरीदने बेचने का कार्य तो नहीं करते थे‍ ?  हालांकि बताया जाता है कि सुधीर गिरि इस बात के विरोध में था। बहरहाल सुधीर गिरि का यही विरोध टुल्ली और उक्त महंत को पसंद नहीं था, जिसकी चर्चा टुल्ली को आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद शहरभर में तेज हो गयी है। उधर, चर्चा तो यह भी खूब रही है कि सुधीर गिरी हत्याकांड में किसी एक महंत का नाम भी उस दौरान चर्चा में आया था। लेकिन बाद में सब आरोप टुल्लू द्वारा अपने ऊपर ले लिए गए। 

आखिर ऐसा क्या हुआ उक्त महंत व टुल्लू के बीच, जोकि आज भी एक बड़ा सवाल बना हुआ है जिसे पुलिस भी बाहर ना निकाल पाई। जिसकी सीबीआई मांग लम्बे समय तक बड़ा उदासीन के एक महंत द्वारा भी की गई, जिसे सिरे नहीं चढ़ने दिया गया।शर्मा कंस्ट्रक्शन कंपनी का स्वामी आशीष शर्मा उर्फ टुल्ली (पुत्र सुभाष चंद्र शर्मा निवासी मोहल्ला म्याना, कनखल, हरिद्वार) कई वर्ष से महानिर्वाणी अखाडे़ में बतौर मुंशी कार्यरत था।

अखाडे़ के संतों से कम दामों में भूमि खरीदकर वह महंगे दामों में बेचता था। कॉलोनियों, अपार्टमेंट और दुकानें आदि बनाकर भी बेचता रहता था।

वर्ष 2004 में संत सुधीर गिरि ने सस्ते रेट में भूमि देने का विरोध किया। दोनों में इस बात को लेकर तकरार भी हुई और आशीष शर्मा को मुंशी पद से हाथ धोना पड़ा।
2006 में टुल्ली ने अखाड़े में वापसी की। वर्ष 2006 में टुल्ली ने फिर मुंशी के तौर पर अखाडे़ में वापसी की। एसएसपी ने बताया कि कुछ समय बाद टुल्ली ने स्वेच्छा से मुंशी पद छोड़ दिया। लेकिन रंजिश बरकरार रही।
टुल्ली ने अपने परिचित प्रॉपर्टी हाजी नौशाद (पुत्र मसीतुल्ला निवासी मॉडल टाउन, सरकुलर रोड, सिविल लाइन, मुजफ्फरनगर) से संपर्क साधा।

उसने टुल्ली की मुलाकात शूटर इमत्याज उर्फ जुगनू (पुत्र अशफाक निवासी खालापार रहमतनगर आजा मॉन्टेसरी स्कूल के पास मुजफ्फरनगर) और महताब उर्फ काला उर्फ शानू (पुत्र अनीस निवासी सूजडडू चुंगी मॉडल टाउन सिविल लाइन मुजफ्फरनगर) से कराई।

2012 में गोलियों से भूनकर कर दी थी
घटना से कई माह पूर्व तक शूटर महताब एवं इमत्याज बतौर ड्राइवर के तौर पर प्रॉपर्टी डीलर टुल्ली के साथ रहे और 14 अप्रैल 2012 को कनखल से पीछा करते हुए बेलड़ा गांव पहुंचने पर कार में सवार महंत सुधीर गिरि की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी।
Previous Post Next Post