प्रियंका मिश्रा की कलम से .....✍🏻 


गाज़ियाबाद :- कोमल है, कमजोर नहीं तू, शक्ति  का नाम ही नारी है | जग को जीवन देने वाली, मौत भी तुझसे हारी है | 
मेरी मातृभूमि भारत सहित, दुनिया की समस्त मातृशक्ति को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की अग्रिम शुभकामनाओं सहित, मेरा सादर प्रणाम | मैं प्रियंका मिश्रा, एक भारतीय नारी, बहनों, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस दुनिया भर में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है | यह महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाने और महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता हैं | दरअसल न्यूयॉर्क में यह महिलाओं का एक श्रम आंदोलन था, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने सालाना आयोजन के तौर पर स्वीकृति दी थी | न्यूयॉर्क शहर में महिलाओं ने अपने काम के घंटे कम करने और बेहतर वेतन और वोट देने की माँग के साथ एक विरोध प्रदर्शन किया था | जबकि भारत में  राष्ट्रीय महिला दिवस सरोजिनी नायडू को समर्पित है। वह बचपन से ही बड़ी बुद्धिमान थीं | और उन्होंने देश की आजादी और महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया था | 

आजादी के बाद वे पहली महिला राज्यपाल भी बनी, उनके कार्यों और महिलाओं के अधिकारों के लिए, उनकी भूमिका को देखते हुए सरोजिनी नायडू के जन्मदिन पर भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है | बहनों, इस बात को नकारा नहीं जा सकता की आज के समाज में महिलाओं का योगदान पुरुषों के बराबर ही है | बल्कि कुछ क्षेत्रों में वे पुरुषों से भी आगे निकल गयी हैं। शिक्षा के क्षेत्र से लेकर हेल्थ सेक्टर और ऐसे ही कई क्षेत्रों में जिसकी परिकल्पना पहले की सामाजिक स्थिति में करना भी नामुमकिन सा था | आज उन सभी क्षेत्रों में महिलाओं का विशेष योगदान है। किन्तु अभी भी समाज में कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हे महिलायें सिर्फ घर की चार दीवारी में ही अच्छी लगती हैं। अभी भी भारत ही नहीं बल्कि विकासशील देशों में भी महिलाओं की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है। समाज में फैली कुरूतियों का सबसे अधिक प्रभाव यदि किसी पर पड़ा है तो वह महिलाएं ही हैं | सभी देशों में महिलाओं की स्थिति विचार करने योग्य है | 21 वी शताब्दी में भी अधिकांश महिलाएं अपने अधिकारों से वंचित ही हैं। महिलाओं द्वारा भी अपने अधिकारों के लिए अनैकों प्रयास कई सदियों से किये जा रहे हैं | और आज भी वे अपने मूलभूत अधिकारों के लिए लड़ रही हैं। 

भारत एक ऐसा देश हैं जहाँ शुरू से ही पुरुषों का वर्चश्व रहा है | यानि यह समाज पुरुष प्रधान रहा है | और अभी भी लगभग यही स्थति है | महिलाओं के वजूद को दरकिनार पहले से ही किया जाता रहा है। उनको सदैव ही अनदेखा किया जाता रहा है चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो, महिलाओं को सिर्फ घर की साफ़ सफाई और चौका, बर्तन तक ही सीमित किया गया है। शायद हमे अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की आवश्यकता नहीं होती यदि महिलाओं की स्थिति प्रारम्भ से ही अच्छी होती। इतने सालों में न जाने कितनी बार हम अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना चुके हैं | पर सच्चाई तो यही है की महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों में कोई परिवर्तन विशेष रूप से नहीं आया है | बहनों, सिर्फ एक दिन अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मन लेने से सभी महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं आ जाएगा, और ना ही उनका विकास होगा | जरुरी है, हर दिन उनका सम्मान किया जाए, आज भी भारत में फैली हुई कई ऐसी प्रथाएं हैं, जो महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन करती हैं | हर धर्म में यह देखा गया है कि महिलाओं को वो सम्मान नहीं प्राप्त हुआ है जिनकी वो हकदार रही हैं। वह सभी प्रथाएं जो महिलाओं के अधिकारों को कुचल रही हैं उनमे समय के साथ साथ कुछ परिवर्तन किये तो गए हैं | पर जमीनी तौर पर उनपर कार्य नहीं किया जाता है। 

भारत ही नहीं अन्य विकसित देशों की महिलाओं की स्थिति कुछ ऐसे ही दिखाई पड़ती हैं | किन्तु कहा जा सकता है की समयानुसार वहां पहले की तुलना में महिलाओं का अच्छा खासा महत्त्व है | उनका सामजिक और शैक्षिक दृष्टि से उत्थान हुआ है समय-समय पर महिलाओं ने देश की उन्नति में अपना विशेष महत्त्व दिया है। भारत में कुछ हद तक महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन आया है पर यह काफी नहीं है। कई महिलाएं अभी भी अशिक्षित, घरेलु हिंसा से पीड़ित और कुपोषित हैं उनकी स्थिति में अभी तक कोई परिवर्तन नहीं आया है | हमारा देश एक ऐसा देश है जहाँ नारी को देवी स्वरुप मन जाता है। नवरात्रे पर कन्याओं की पूजा की जाती है | अपनी परंपराओं तथा अपने सहिष्णुता के लिए यह देश पूरे विश्व में अपनी पहचान बना चूका है | परन्तु असल मायने में अभी भी हम नारियों को वह सम्मान नहीं दिला पाए, जिनकी उन्हें आवश्यकता है। शिक्षा के अधिकार से अभी भी न जाने कितनी ही बालिकाएं कोषों दूर हैं। बालिकाओं को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है या उन्हें बेच दिया जाता है उन्हें बोझ समझा जाता है जो की अभी भी समाज में चल रहा है। साल में एक बार इस दिवस को मना लेने के बाद इसे भुला दिया जाता है क्या सम्मान पाने के लिए एक दिन ही काफी है, यदि हर रोज ही महिलाओं का सम्मान किया जाता, तो शायद इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को 8 मार्च को मनाया ही न जाता। बहनों, हम माहिलायें भी अपनी तरफ से कुछ कदम उठायें। महिलायें भी महिलाओं का सम्मान करें सिर्फ पुरूषों पर ही दोषारोपण ना करें, तभी सही मायनो में महिलाओं को समाज में उचित स्थान प्राप्त होगा | 

हम मातायें भी अपने पुत्रों को घर से ही अपनी माता और बहनो को सम्मान और स्नेह देना सिखायें | हमने, महिलाओं को कितना सम्मान दिया है और उनके उत्थान और विकास के लिए हमने क्या कदम उठाये हैं। इसका आंकलन भी हम महिलाओं को करना होगा | बेशक सरकार की ओर से हमारे, उचित सम्मान और अधिकारों के लिए महिला एवं बाल कल्याण विभाग का भी गठन किया गया है। किन्तु हम विभाग के भरोसे नहीं रह सकतीं है | जरुरत है खुद से शुरुआत करने की। आज के इस दौर में जब इंसान चाँद पर पहुंच गया है | और कई क्षेत्रों में अपना डंका बजा रहा है | फिर भी आज तक महिलाओं के प्रति कुंठित सोच रखी जा रही है। उनके लिबास और उनके जोर जोर से हंस लेने भर से उनका चरितार्थ किया जाता है | जो की इस समाज की विकलांग सोच का ही नतीजा है | आज अधिकांश महिलाएं जब खुद के पैरों पर खड़ी हो चुकी है | 

जब महिलाएं घर से लेकर कार्यालय तक सब कुछ संभाल रही हैं | और किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं पायी जाती है तो क्यों , उनको पुरुष प्रधान समाज की बेडियों में जकडा जाता है | क्यों उनके साथ भेद-भाव किया जाता है। बालिकाओं को अभी भी बोझ समझा जाता है | आइये हम सब मिलकर महिलाओं के उत्थान और उनके स्वाभिमान की रक्षा के लिए इस दिन प्रण ले, कि हम यथा संभव प्रत्येक महिलाओं के सम्मान की रक्षा करेंगी, और स्वयं भी उनका सम्मान करेंगी और उनके उनको आगे बढ़ने के लिए सदैव प्रेरित करेंगी। यदि हर व्यक्ति यह संकल्प ले ले तो आने वाले समय में वह दिन दूर नहीं जब सही मायने में महिलाओं को उनका अधिकार और सम्मान प्राप्त होगा और वे देश की प्रगति में अपना महत्वपूर्ण योगदान बढ़-चढ़ कर दे सकेंगी। अपने शब्दों को विराम देते हुए मैं आप सभी को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष में ढेर सारी बधाइयां देती हूँ।
" प्रियंका मिश्रा एक नारी "
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